विपक्ष की साजिश नाकाम करने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चेहरा ही सारी कहानी कह रहा था। उनके चेहरे पर रंगों की सुनहरी आभा उतर आयी थी। 19 जून का दिन उनके लिए सबसे अभिमानास्पद दिन था। पिछले तीन महीनों से राज्य सभा चुनावों को लेकर अनहोनी की आशंकाओं के दहकते उफान को उन्होंने पत्रकारों के सामने अपने सिर पर पानी की बोतल उड़ेलते हुए धो डाला। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस की विचारधारा की जीत है। सभी विधायकों को बधाई! जिन्होंने भाजपा के लुभावने के प्रयासों के बावजूद हमारा समर्थन किया। हमने उन्हें विफल किया, जिन्होंने धनबल के आधार पर लोकतंत्र के खिलाफ साजिश रची। राजस्थान में अपनी ताकत के बूते तय दो सीटें जीतीं।
प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के चुनाव के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बाड़ाबंदी सफल रही। कांग्रेस और सहयोगी दलों का एक भी वोट नहीं घटा। कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी वेणुगोपाल और नीरज डांगी जीत गये, जबकि भाजपा के राजेन्द्र गहलोत तो जीत गये, किन्तु घोड़े के व्यापार की घात में चुनावी रेसकोर्स में उतारे गये ओंकारसिंह लखावत हार गयेे। निर्दलीय विधायकों की खरीद-फरोख्त के झंझावातों के बीच आस्तीनें चढ़ाती भाजपा के प्रतिपक्षी नेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ आिखर सार्वजनिक इज़हार करते नज़र आये कि राज्य सभा चुनाव पूरा अंकगणितीय खेल है; लेकिन हमने अपना दूसरा उम्मीदवार खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ कि सरकार विपक्ष से डर गयी। यह हमारी रणनीति की सफलता है। भाजपा ने क्या वाकई निर्दलियों को रिझाने के लिए बड़े हौसले से तुरूप का पत्ता खेलते हुए सिक्कों की खनक दिखायी थी? राठौड़ इस बात की बडी बेबाकी से तस्दीक करते नज़र आते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि मौका देखकर हमला करना भाजपा की पुरानी आदत है। लेकिन गहलोत को भी जादूगर यों ही तो नहीं कहा जाता। इससे पहले कि भाजपा पासे बिछाकर गोटियाँ मारने का दाँव चलती, गहलोत अपना काम कर चुके थे। 4 जून की दोपहर बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सत्ता पक्ष और समर्थन दे रहे विधायकों से फोन पर संक्षेप में बातचीत की। गहलोत ने कहा कि हमें राजनीतिक नियुक्तियों के बारे में चर्चा करने की ज़रूरत है। कृपया कल शाम तक बंगले पर पहुँचे; हम आवश्यक मंत्रणा करेंगे। मुख्यमंत्री गहलोत के इस रहस्यमय संदेश की खबर प्रदेश के भाजपा नेताओं को भी लगी। उत्सुक भाजपा नेताओं ने अपने सूत्रों से वजह जानने के लिए फोन भी किये, लेकिन सभी विधायकों ने अपने-अपने होंठ सिल लिये थे। 21 जून की शाम को सभी विधायक और मंत्री बैठक में शिरकत के लिए स्वाभाविक ढंग से मुख्यमंत्री निवास पर पहुँचे। मुख्यमंत्री ने सभी से एक-एक करके मुलाकात करते हुए कहा कि आपको यहाँ से सीधे होटल भिजवाने की व्यवस्था कर दी गयी है। अब राज्यसभा चुनावों तक वहीं रहना है। अपना ज़रूरी सामान मँगवा लें। सभी को पुलिस संरक्षण में होटल पहुँचाया गया।
बाड़ेबन्दी की सुगबुगाहट तक से बेखबर अचकचाये से विधायक जिस समय होटल पहुँच रहे थे, मुख्य सचेतक महेश जोशी एसीबी के डायरेक्टर जनरल से शिकायत कर रहे थे कि कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश में भी चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिए विधायकों को 25 करोड़ तक के ऑफर दिये जा रहे हैं। जोशी ने ऐसे तत्त्वों को चिह्नित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की माँग करते हुए सूचना दी कि जयपुर में इस साजिश के तहत एक बड़ा कैश ट्रांसफर किया (पैसा भेजा) गया है। कांग्रेस में अचानक मची इस अफरातफरी की क्या वजह रही? जोशी ने हालात पर स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि राजस्थान में भाजपा के पास जितने विधायक हैं, उसके हिसाब से वह एक ही सीट जीत सकती है; फिर दो प्रत्याशी क्यों खड़े किये गये? उन्होंने अंदेशा जताया कि क्या दूसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए भाजपा जोड़-तोड़ नहीं करेगी? राजस्थान में कांग्रेस के चुनाव पर्यवेक्षक रणदीप सुरजेवाला ने दो टूक कहा कि भाजपा का जनमत में विश्वास नहीं है। उसका चरित्र ही चीरहरण करने का रहा है। इस पूरे मामले को लेकर विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता राजेन्द्र राठौड़ काफी उग्र नज़र आये। तंज करने के अंदाज़ में उन्होंने कहा कि काग्रेस को अपने ही विधायकों के सम्भावित विद्रोह और आंतरिक गुटबंदी से मजबूर होकर यह कदम उठाना पड़ रहा है।
हालाँकि इस घटनाक्रम पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया आर-पार की भाषा बोलते नज़र आये। उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोगों को इतनी फुरसत कहाँ हैं कि अनावश्यक मुद्दों को तवज्जो देने में समय गँवायें? लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब दो पारम्परिक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एक ही मेज़बानी का आनन्द लेते हुए उसकी सीमाओं में दखलंदाज़ी करें, तो कोई हिन्डोले (झूले) में तो बैठा नहीं रह सकता। फिर यह तो कांग्रेस की सरहदों में भाजपा द्वारा तम्बू लगाने की कोशिश हो रही थी। भारतीय लोकतंत्र का विराट और रहस्यमय रसायन अनोखे तरीके से बदलाव के अनर्थकारी अंधड़ों का रुख मोड़ता रहा है। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को औंधा कर चुके अनिश्चितता के अपशकुनी गिद्ध ने पिछले दिनों राजस्थान की गहलोत सरकार की मुँडेर पर बैठने की कोशिश तो की, लेकिन चोंच मारने से पहले ही उसके डैने (पंख) उमेठ दिये गये। राजस्थान में राज्यसभा चुनाव के दौरान जो कुछ घटा, वह सूबे की मरुस्थलीय राजनीति में पहली बार था। इससे पहले देश ऐसे नज़ारे पिछले कुछ वर्षों में गोवा, कर्नाटक, उतराखण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मध्य प्रदेश में देख चुका था। अब तक आयाराम-गयाराम की निर्लज्ज सियासी संस्कृति से दूर रहे राजस्थान में इसकी दस्तक राज्य सभा चुनावों में सुनायी दी।
एक नेता ने कहा कि दरअसल विधायकों की खरीद-फरोख्त का षड्यंत्र बड़े ही अनगढ़ और भदेस ढंग से बुना गया था। नतीजतन इसका रिसाव होते देर नहीं लगी कि भाजपा उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट केा रिझाकर सत्ता हथियाने की कोशिश में जुटी है। भाँडा फूटने के बाद बेशक साजिश के गिद्ध चोंच बन्द कर चुके थे; लेकिन मिमियाने से अब भी बाज़ नहीं आ रहे हैं कि अपने विधायकों पर ही भरोसा नहीं तो भाजपा पर तोहमत क्यों? सियासत के इस नामाकूल दौर में सयाने िकस्म के राजनीतिक योद्धा को क्या करना चाहिए था? इस मामले में गहलोत को किसी गर्वीली चेतावनी की दरकार नहीं थी। इतना अनुभव उनके पास उपलब्ध था, जिससे वह अपनी समझ और फैसलों पर गर्व कर पाते। नतीजतन विधायकों की बाड़ाबन्दी करते हुए दो टूक लफ्ज़ों में कह दिया कि सरकार के खिलाफ खुला षड्यंत्र रचकर विपक्ष के लोग विधायकों की खरीद-फरोख्त का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने खुफिया एजेंसियों की खबरों का हवाला देते हुए कहा कि जयपुर में दिल्ली से बड़ा कैश पहुँचा है। इस षड्यंत्र में केंद्र और राज्य के लोग शामिल हैं। विधायकों को खरीदने के लिए 35-35 करोड़ रुपये तक ऑफर किये गये हैं। इन आरोपों में कितना दम है? सूत्र इस खेल में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री शेखावत की तरफ इशारा करते हैं। सूत्रों का कहना है कि इस पूरी कवायद में भाजपा नेताओं ने पूरी सावधानी बरती; ताकि इस बात की भनक भी न लगे कि पायलट कांग्रेस को धत्ता बताने जा रहे हैं। लेकिन प्रलय का खेल खेलने वाले इतिहास से गुफ्तगू नहीं कर पाये। नतीजतन शिद्दत से रचा गया फरेब कई गुना गम्भीरता से ध्वस्त हो गया कि भाजपा के पास एक ही सीट जीतने लायक विधायक थे और उसने प्रत्याशी दो खड़े किये। ज़ाहिर है कि भाजपा दूसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए कांग्रेस में तोड़-फोड़ का जाल बुन चुकी थी। इससे पहले कि भाजपा की काठ की हाँडी चूल्हे चढ़ती, भाँडा फूट चुका था। बहरहाल भाजपा अपने हज़ार हाथों से सच छिपाने और भरमाने में जुटी है। लेकिन सच अँधेरे में नहीं छिपाया जा सकता। इसलिए भाजपा नेता गुलाब चंद कटारिया और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया कूटनीतिक करवट लेते नज़र आये कि झूठे आरोपों के लिए कांग्रेस को कानूनी कार्रवाई भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। सूत्रों का कहना है कि करोड़ों लो, इस्तीफा दो’ की तस्दीक बड़े कैश ट्रांसफर के लिंक से हो चुकी थी। ऐसे में अब तो सब कुछ भाजपा को भुगतना था।
बहरहाल ताकत दिखाने की बाज़ीगरी में सचिन पायलट कहाँ खड़े थे? बेशक वह कहते नहीं अघाते कि बेवजह भ्रम फैलाया जा रहा है। किसी को चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। बहुमत किसके पास है? सबको पता है। तो फिर पत्रकार रेणु मित्तल की इस बात को, जो उन्होंने एक खबरिया चैनल में मुख्यमंत्री गहलोत पर बरस-बरस कर कही; भाजपा तो केवल थाह ले रही थी। लेकिन गहलोत सचिन पायलट के विरुद्ध कहानियाँ गढऩे में जुटे हैं। सूत्रों का कहना है कि अगर लोकतंत्र में प्रश्नों का चिरंतन आयोजन ज़रूरी है, तो इस सवाल का जवाब भी होना चािहए कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले भाजपा नेता जफर इस्माइल के साथ सचिन पायलट की गुप्त मंत्रणा का क्या मतलब था? एक खबरिया चैनल के उस दावे का क्या मतलब था, जिसमें कहा गया था कि सचिन पायलट अपने कुछ विधायकों को लेकर मानेसर जाने वाले थे। होटल बुक हो चुका था; लेकिन ऐन मौके पर विधायक ही बिदक गये। पायलट अपने बंगले में खास एकांत क्यों चाहते थे कि अपने स्टॉफ को छ: दिन के लिए छुट्टी पर भेज दिया। जयपुर का वह भाजपा सांसद कौन था? जिसके पास दिल्ली से वैन में भारी रकम पहुँची। लेकिन भनक लगने पर रकम दूसरे स्थान पर उतारी गयी।
सूत्र कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार गिराने और अपने साथ बड़ी संख्या में विधायक ले जाने के बाद पायलट को केंद्र में कद्दावर मंत्री बनाने का प्रलोभन था। लेकिन पायलट की मंशा राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने की थी। पायलट चाहते थे कि पुन: चुनाव लडक़र विधायक बनें और भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बना दे। लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने साफ इन्कार कर दिया। सूत्रों का कहना कि बावूजद इसके पायलट तैयार हो गये, तो इसलिए कि एक तो वह गहलोत को मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते थे। दूसरा उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने के कारण आलाकमान को सबक देना चाहते थे। लेकिन गहलोत की चतुराई और चौकस निगाहों ने शतरंज की बिसात को ऐसा उलटा कि भाजपा आइंदा शायद ही फिर उसे बिछाने की सोच पाये। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अव्वल तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस छोडक़र शामिल हुए सिंधिया गुट के 22 विधायकों का भविष्य आज भी अधर में है; जिसे देखते हुए राजस्थान का कोई भी विधायक जोखिम उठाने को तैयार नहीं था। दूसरा, अगर पायलट ने कांग्रेस छोड़ी भी, तो वह भी भाजपा में उसी तरह गुम हो जाएँगे जैसे समंदर में बुलबुले की कोई बिसात नहीं होती। बहरहाल राज्यसभा में चुनावों में मिली जीत के बाद अब गहलोत कांग्रेस की राजनीति का सबसे महत्त्वपूर्ण चेहरा हो गये हैं। गहलोत ने यह साबित कर दिया है कि मैनेजमेंट में उनसे बेहतर खिलाड़ी फिलहाल दूसरा कोई नहीं। विश्लेषक कहते हैं कि राजनीति को जो समझते हैं, वे जानते हैं कि उनके हर कदम का अपना कोई मतलब होता है। विश्लेषक गहलोत के एतिहाती कदमों पर गालिब का एक शे’र में पिरोते हुए कहते हैं-
‘तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना,
कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।’