वायु प्रदूषण को लेकर आज पूरी दुनिया परेशान है। भारत में इसे लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) काफी सजग रहा है और समय-समय पर प्रकृति को हरा-भरा रखने तथा वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करता रहा है। अब भारत सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाने की तैयारी में है। हाल ही में इसके लिए सरकार ने देश भर में ग्रीन हाइड्रोजन कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (एचसीएनजी) के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का फैसला किया है। सम्भव है कि भारत में वायु प्रदूषण तेज़ी से घटे; क्योंकि सरकार ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए एचसीएनजी को पूरे देश में लागू करने का फैसला कर चुकी है। माना जा रहा है कि एचसीएनजी के उपयोग से 70 फीसदी वायु प्रदूषण कम होगा। इतना ही नहीं, इससे वाहनों के इंजनों की क्षमता भी बढ़ेगी और लोगों को अधिक माइलेज (कम लागत में अधिक सफर का फायदा) मिलेगा। बताया जा रहा है कि एचसीएनजी को सरकार भविष्य के हरित ईंधन के रूप में देख रही है।
इस बारे में 20 जुलाई को सडक़ परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने सुझावों और आपत्तियों के लिए अधिसूचना के तौर पर मसौदा जारी कर दिया है। इस मसौदे में कहा गया है कि ग्रीन एनर्जी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (एआर्ईएस) के नियमों- 24 व 28 के तहत सभी मानकों का पालन लोगों को करना होगा। सडक़ परिवहन मंत्रालय इस बारे में ग्रीन एनर्जी सीएनजी, एचसीएनजी और बॉयो-सीएनजी को लेकर पहले ही गाइडलाइन तैयार कर चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली, कानपुर, मुम्बई और अन्य कई अधिक वायु प्रदूषण वाले शहरों में बढ़ते प्रदूषण को लेकर माननीय उच्च अदालत के आदेश पर केंद्र सरकार देश भर में एचसीएनजी लागू करने की तैयारी कर रही है। बता दें कि देश की राजधानी दिल्ली में एचसीएनजी बसें चलाने का ट्रॉयल सफल हो चुका है, जिसे देखते हुए अब इसे पूरे देश में लागू करने की योजना तैयार की जाएगी।
इंजनों की बढ़ेगी क्षमता
विशेषज्ञों का कहना है कि एचसीएनजी से न केवल 70 फीसदी प्रदूषण कम होगा, बल्कि इंजन की क्षमता बढ़ेगी। एचसीएनजी सीएनजी से केवल दो-तीन रुपये महँगी हो सकती है। लेकिन इसके लिए कारों के इंजनों में कोई विशेष बदलाव करने की ज़रूरत नहीं होगी। ट्रायल रिपोर्ट कहती है कि एक बार की फुल टैंक एचसीएनजी से कोई कार 600 से 800 किलोमीटर चलेगी। पिछले साल विशेषज्ञों की एक समिति ने वायु प्रदूषण घटाने के लिए सीएनजी में 18 फीसदी हाइड्रोजन मिलाने का सुझाव दिया था। इस सुझाव के पीछे ईंधन की लागत को घटाना था; क्योंकि केवल हाइड्रोजन का इस्तेमाल करने से वाहन चलाने का खर्चा अधिक आता है। इतना ही नहीं, हाइड्रोजन से चलने वाला कार का इंजन भी काफी महँगा पड़ता है; क्योंकि उच्चस्तरीय इंजन बनाने में निर्माता कम्पनियों को अधिक लागत लगानी पड़ती है।
घटेगी पेट्रोलियम पदार्थों की खपत
भारत में अधिकतर वाहन पेट्रोल-डीजल से चलते हैं। ऐसे में एचसीएनजी का उपयोग शुरू होगा, तो पेट्रोलियम पदार्थों की खपत बहुत घट जाएगी, जिससे भारत का पेट्रोलियम कारोबार काफी कम हो जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका, रूस, चीन, जापान, दुबई, कनाडा, ब्राजील, इजराइल, दक्षिण कोरिया जैसे देश ग्रीन एनर्जी की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए काफी उत्साहित हैं। विकसित देशों में बतौर वाहन ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के इस्तेमाल को लेकर लगातार ट्रॉयल हो रहे हैं। भारत भी पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता को कम करने के लिए सीएनजी, एचसीएनजी, एलपीजी, बॉयो फ्यूल आदि को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के विकल्प को चुनना अच्छा साबित हो सकता है।
आसान नहीं प्रदूषण घटाना
भारत में प्रदूषण कम करना उतना आसान नहीं है। हर साल जहाँ पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में किसान पराली जलाते हैं, वहीं गाँवों, कस्बों यहाँतक कि शहरों में भी लोग सर्दियों में जमकर आग जलाते हैं। गाँवों में तो अधिकतर घरों में आज भी लकड़ी-गोबर के कंडों आदि से खाना बनाया जाता है। इसके अलावा भारत में उद्योगों और फैक्ट्रियों से उठने वाले धुएँ से भी विकट वायु प्रदूषण फैलता है। चिकित्सा विशेषज्ञों और वायु प्रदूषण पर जारी रिपोर्टों की मानें तो वायु प्रदूषण इंसानों के स्वास्थ्य के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट (एचईआई) और इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूएशंस (आईएचएमई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषित हवा से जितनी मौतें हो रही हैं, उतनी तो धूम्रपान से भी नहीं हो रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में सन् 2017 में तकरीबन 49 लाख लोगों की मौत हुई थी। दुनिया भर में कुल मौतों में 8.7 फीसदी मौतें केवल वायु प्रदूषण से हो रही हैं।
भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें
अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट (एचईआई) और इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूएशंस (आईएचएमई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में लोग समय से पहले ही मौत के मुँह में समा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की आयु औसतन 2.6 साल कम हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में बाहरी वायु प्रदूषण के चलते लोगों की औसत आयु 18 महीने और घरेलू प्रदूषण के कारण औसत आयु 14 महीने कम हुई है। यह कम हो रही वैश्विक औसत आयु के औसत 20 महीने से काफी ज़्यादा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 2017 में भारत में वायु प्रदूषण से करीब 12 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद के आँकड़े हमें प्राप्त नहीं हुए हैं। क्योंकि यह 2019 के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट के हैं। यह मौतें बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के अलावा ओजोन प्रदूषण के मिले-जुले कारणों से हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया कि 12 लाख मौतों में से 6 लाख 73 हज़ार 100 मौतें बाहरी वायु प्रदूषण की वजह से और 4 लाख 81 हज़ार 7 सौ मौतें घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से हुई थीं। इसी तरह चीन में भी 2017 में 12 लाख, पाकिस्तान में एक लाख 28 हज़ार, इंडोनेशिया में एक लाख 24 हज़ार, बांग्लादेश में एक लाख 23 हज़ार, नाइजीरिया में एक लाख 14 हज़ार, अमेरिका में एक लाख 8 हज़ार, रूस में 99 हज़ार, ब्राजील में 66 हज़ार और फिलीपींस में 64 हज़ार मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ओजोन प्रदूषण पिछले एक दशक में बहुत बड़ा खतरा बनकर उभरा है। सन् 2017 में दुनिया भर में ओजोन प्रदूषण के कारण तकरीबन पाँच लाख लोग असमय मृत्यु को प्राप्त हुए। 1990 से 2017 तक इसमें 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
रिपोर्ट में किये गये विश्लेषण से पता चलता है कि दुनिया की अधिकतर आबादी अस्वस्थ है और प्रदूषण में जी रही है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित हवा के मानकों के अनुसार, 90 फीसदी से अधिक आबादी शुद्ध हवा में साँस नहीं ले रही है।
वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियाँ
वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियाँ भारत में तेज़ी से पाँव पसार रही हैं। आज हर आदमी थोड़ा-बहुत बीमार है, जिसका एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। वायु प्रदूषण से हृदयाघात, फेफड़ों की बीमारियाँ, कैंसर, मधुमेह, श्वसन सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं। स्वास्थय रिपोर्टों की मानें तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 49 फीसदी मौतें फेफड़ों और 33 फीसदी मौतें फेफड़ों के कैंसर, 22 फीसदी मौतें मधुमेह, 15 फीसदी मौतें हृदयाघात और 22 फीसदी मौतें हृदय की अन्य बीमारियों के चलते हुई हैं। अध्ययन में पहली बार वायु प्रदूषण को टाइप-2 मधुमेह से जोड़ा गया है। भारत में यह महामारी का रूप ले चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 में मधुमेह पर वैश्विक अर्थ-व्यवस्था का 1.8 फीसदी खर्च हुआ, जो कि सभी देशों के स्वास्थ्य तंत्र के लिए तेज़ी से बढ़ती चुनौती है। रिपोर्ट के नतीजों में कहा गया है कि पीएम-2.5 मधुमेह (टाइप-2) के मामलों के साथ-साथ मृत्यु दर को बढ़ाता है। ग्लोबल बर्डन डिसीज-2017 के एक विश्लेषण में उच्च रक्तचाप और मोटापे के बाद मधुमेह (टाइप-2) से होने वाली मौतों के लिए वायु प्रदूषण (पीएम-2.5) को तीसरा सबसे बड़ा खतरा बताया गया था। वर्ष 2017 में दुनिया भर में पीएम-2.5 से होने वाले मधुमेह (टाइप-2) से दो लाख 76 हज़ार मौतें हुईं। भारत में यह खतरा बहुत तेज़ी से बड़ा है और इस साल पीएम-2.5 के कारण 55,000 मौतें हुईं।
बचाव के रास्ते
आज वायु प्रदूषण सरकार के लिए चुनौती बन गया है। इसलिए भारत सरकार को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे; ताकि इससे फैलने वाली बीमारियों के संक्रमण को रोका जा सके। वैसे केंद्र सरकार के एचसीएनजी लागू करने के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। क्योंकि वायु प्रदूषण के स्तर को कम करना बहुत ज़रूरी हो गया है। इसके अलावा राज्य सरकारों, नेताओं, अभिनेताओं, अधिकारियों और लोगों को भी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आगे आना होगा। इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरत अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने की है; ताकि भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। साथ ही वनों और निर्माण के लिए जगह-जगह पेड़ों के कटान को एकदम रोकना होगा।