आयुर्वेदाचार्य डाँ हरीश वर्मा का कहना है कि सीजनल वायरल इंफैक्शन और कोरोनावायरस के लक्षण एक जैसे होते है।जैसे बुखार , गले में खराश, सर्दी , कमजोरी और बदन टूटना इत्यादि । लक्षण एक जैसे होने की वजह से डाँक्टर कोरोना का जांच को प्राथमिकता दे रहे है। जो लोगों के लिये मानसिक तनाव का कारण बन रही है। ऐसे में सावधानी और सतर्कता बहुत जरूरी है।
डाँ हरीश वर्मा ने आयुर्वेद के प्राचीन चिकित्सा ग्रन्थों के आधार पर आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी ईजाद की है। जो सीजनल वायरल इंफैक्शन, कोरोनावायरस, डेंगू वायरस और हेपेटाइटिस वायरस सहित कई तरह के रोगियों के लिये काफी कारगर है।
डाँ वर्मा ने बताया कि इस थैरेपी के दौरान दो प्रकार की जड़ी बूटियों के समूह एक ही समय पर दिये जाते है। प्रथम समूह में अश्वगंधा तुलसी, गिलोय और कालमेघ आदि से रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। तथा क्षति ग्रस्त कोशिकाओं को नई बनाती है। दूसरे समूह में हल्दी ,वसाका कंटकारी आदि दिये जाते है। जो कि अंदर की सूजन को कम करती है।डाँवर्मा ने कहा कि अब तक आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी से सीजनल वायरल इंफैक्शन, कोरोनावायरस, डेंगू वायरस और हेपेटाइटिस वायरस के रोगियों को लाभ हुआ है।डाँ वर्मा का कहना है कि हमारे किसी भी मरीज को ना तो आँक्सीजन की कमी हुई और ना ही किसी भी मरीज को आई सी यू में भर्ती होना पड़ा है।
डाँ वर्मा ने कहा कि वायरल इंफैक्शन के रोगियों के लिये आयुर्वेदिक वायरोफ्लैम थैरेपी ऐलोपेथिक दवाईयों के मुकाबलें में बहुत ही सस्ती है तथा उनका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।डाँ का कहना है कि आईसीएमआर जैसी संस्थाओं को अश्वगंधा, तुलसी, गिलोय,हल्दी,वसाका कंटकरी और कालमेघ आदि पर रिसर्च करके उन्हें पेटेन्ट कर लेना चाहिये। अन्यथा यह जड़ी बूटियां भी नीम और हल्दी की तरह विदेशियों के हाथ में चली जायेगी।