कोलकाता में एक ही पखवाड़े में हुई दो बड़ी रैलियां अलग-अलग विचार के लोग पूरे बंगाल और उत्तरपूर्व से आए। दोनों ही रैलियों में परिर्वतन यानी बदलाव पर जोर था। पहली महारैली तृणमूल कांग्रेस की ओर से 19 जनवरी को युनाइडेट इंडिया के तहत थी। दूसरी रैली महारैली थी जिसे वाम मोर्चा ने तीन फरवरी को आयोजित किया था।
कोलकाता के परेडग्रांउड में माकपा के नेतृत्व में बाम मोर्चा की इस महारैली में आते हुए लोग दिखते तो थे लेकिन रैली का आखिरी हिस्सा कहीं नहीं दिखता था। यह महारैली ममता बैनर्जी की पार्टी की ओर से 19 जनवरी को आयोजित युनाइटेड इंडिया रैली से किसी भी हालत में 19 नहीं थी। इस रैली में शामिल लोग नारे लगा रहे थे ‘भाजपा हटाओ, देश बचायो, तृणमूल हटाओ, बंगाल बचाओ।’ इसमें माकपा के अलावा माकपा, फारवर्ड ब्लॉक, आरएमपी और कम्युनिस्टों के विभिन्न छोटे दल थे।
इस रैली में कुल नौ वक्ता थे। लेकिन इनमें एक भी देश के प्रधानमंत्री पद की आस में नहीं था। पश्चिम बंगाल में माकपा के राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि इस रैली में पिछली रैली की तुलना में दो गुणे लोग आए हैं। यहां आई जनता यह जानती है कि क्या अंतर है उस रैली और इस रैली में। कौन उनके लिए कुछ कर सकता है और कौन सिर्फ सपने दिखा सकता है।
इस महारैली में कम्युनिस्ट पार्टी (माले)लिवरेशन के महासचिव दीपकर भट्टाचार्य मुख्य अतिथि थे। मुख्य अतिथि के तौर पर उनका आना वामपंथी तालमेल में एक विस्तार माना जा सकता है। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि आज ज़रूरत है कि इस पर सोचा जाए कि भाजपा किस तरह देश में हिंदुओं और मुसलमानों को बांट रही है। सिटिजंसशिप विधेयक के बहाने कथित अप्रवासी बाहर किए जा रहे हैं। उसका कैसे मुकाबला हो। बंगाल में उन्होंने नए वामपंथी विकल्प की मांग की जिससे अत्याचारी तृणमूल कांग्रेस की सत्ता खत्म हो और सांप्रदायिक भाजपा को राज्य में हावी न होने दिया जाए। आज इस बता की ज़रूरत है कि तमाम वामपंथी लोकतांत्रिक ताकतें एक हों और जन समर्थन से 2019 के लोकसभा चुनाव में वे मिल कर लड़ें।
माकपा (भाले) लिबरेशन वह लोकतांत्रिक राजनीतिक नक्सल पार्टी है जो बंगाल में वाममोर्चा सरकार की हमेशा खिलाफत करती रही। जब बाबरी ध्वंस हुआ तब माकपा (माले) लिबरेशन के नेतृत्व ने 1993 में हुई ब्रिगेड रैली में भाग लिया था। अब उस माले इसने तीन फरवरी 2019 को भाग लिया। यह संगठन, बंगाल-बिहार, झारखंड उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में सक्रिय है। इस वामपंथी महारैली में 17 छोटे वाम पंथी गुटों ने भी हिस्सेदारी की। इस रैली में बड़ी तादाद में नौजवान लोग थे। इससे एक संभावना ज़रूर बनी थी कि आगे वाले चुनावों में वामपंथी दलों का भी एक व्यापक मोर्चा बन सकता है। जब कोलकाता में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में 19 जनवरी और तीन फरवरी 2019 को हुई दोनों महारैलियों का आकलन होता है तो उससे जाहिर होता है कि देश में बदलाव की बयार जबर्दस्त है।