‘वजन कम करने के चमत्कारी दावों से सावधान रहें’

हमारी तरफ मोटे को मोटा नहीं कहते. कहते हैं यार तुम ‘हेल्दी’ हो रहे हो. ऐसा हम ‘हेल्दी’ शब्द का अर्थ न जानने के कारण करते हैं या कि अपनी उस सांस्कृतिक विरासत के कारण जहां ‘अंधे को अंधा’ न कहकर ‘सूरदास’ कहने का रिवाज है.  बहरहाल, वास्तविकता, बल्कि कटु वास्तविकता यही है कि समाज में ऐसे ‘हेल्दी’ (मोटे) लोग बढ़ रहे हैं. मोटे आदमी (इसमें औरतें भी शामिल हैं और खास तौर पर शामिल हैं) की हार्दिक तमन्ना होती है कि वे छरहरे बदन के हो जाएं और यह भी कि यह सब काम खटिया पर पड़े-पड़े हो. वे भोजन की मात्रा या उसके ‘गिजा वाले तत्व’ को कम करना अपने पेट पर लात मारना मानते हैं. ये लोग पूड़ी, परांठे, अंडा, मुर्गा इत्यादि भकोसते हुए वजन कम कर सकने वाले चमत्कारी फॉर्मूले की तलाश में रहते हैं.

‘सालों में बढ़ाए वजन को हफ्तों में कम करने के दावे जानलेवा साबित हो सकते हैं’

यही लोग हैं जो रातोंरात मोटे आदमी को दुबला बनाने का दावा करने वाली दुुकानों के चक्कर में फंसते हैं. क्या चार सप्ताह में ‌दस किलो वजन कम करने की कोई जादुई डाइट या प्रोग्राम हो सकता है? यदि ऐसा हो भी जाए तो क्या यह सुरक्षित है? और क्या ऐसा करने वाले का वजन यह ‘विशेष डाइट’ छोड़ने पर वापस ‘अपनी पुरानी वाली’ पर नहीं आ जाएगा? क्या यह संभव है कि जो वजन आपने वर्षों तक ठूंस कर, अल्लम-गल्लम खाकर तथा आरामतलबी का एक अपनी तरह का सुनहरा जीवन बिताकर हासिल किया है, उसे रातोंरात कम किया जा सके? इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है जो आप भी खूब जानते हैं. ऐसी कुछ भी जादुई चीज नहीं है और जो बताई जाती है उसका आज तक कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. वैसे भी जो बात स्वयंसिद्घ है उसके लिए वैज्ञानिक क्यों समय खराब करें? दूसरी बात यह कि दुबला करने, तेजी से छरहरा बनाने और इसी तरह के चमत्कारिक परिणाम देने वाली एक बड़ी ‘हेल्थ इंडस्ट्री’ खड़ी हो गई है. यह धंधे के सारे हथकंडे अपनाकर अपने ग्राहकों को यह भ्रम देती रहती है कि वे एक सिद्घ वैज्ञानिक गणित पर चलते हुए गोलमटोल को सरल रेखा में तब्दील कर देंगे. अच्छी तरह जान लें कि रातोंरात वजन कम नहीं किया जाता. करने की कोशिश भी नहीं की जानी चाहिए. वे सटीक, आकर्षक विज्ञापन जिनमें एक तरफ एक थुलथुल भद्दी-सी मोटी महिला की तसवीर होती है और दूसरी ओर चार सप्ताह का कोर्स लेने के बाद इसी महिला की छरहरी सुंदर काया वाली कामिनी की तसवीर होती है – कृपया इनके चक्कर में न पड़ें. हमें ये प्रस्ताव लुभाते अवश्य हैं क्योंकि आदमी की मानसिकता शार्टकट्स तलाशने और चोर रास्तों पर चलने की बन गई है. मैं इन चोर रास्तों से आपको आगाह करने के लिए ही यह लेख लिख रहा हूं.

आपका वजन हड्डियों, फैट (वसा), प्रोटीन (मांसपेशियां) तथा पानी से बनता है. जब आप वजन बढ़ा लेते हैं तो यह मूलतः फैट अर्थात् चर्बी के कारण ही बढ़ता है. शरीर को चर्बी का गोदाम बना लेना न केवल शरीर को यहां-वहां से बेडौल बनाता है वरन कैंसर, डायबिटीज, हार्ट-अटैक तथा आर्थराइटिस आदि बीमारियों को न्योता भी देता है.  अब यदि आप आज अपना वजन कम करना चाहेंगे तो कायदे से इसी चर्बी को कम करने की कोशिश करनी होगी. वजन भी कम होगा और आप उक्त बीमारियों से भी बचेंगे. परंतु चर्बी कम करना, वह भी रातोंरात, लगभग असंभव बात है. तो ये लोग जो रातोंरात वजन कम कर देते हैं वह कहां से कम होता है? वह कितना सुरक्षित है? यह जान लें कि आधा किलो चर्बी का मतलब है चार हजार पांच सौ कैलोरी जबकि आधा किलो प्रोटीन का मतलब है मात्र दो सौ कैलोरी. तो जो तुरंत वजन कम कर देने वाले फॉर्मूले हैं वे शरीर की मांसपेशियों और पानी को कम करके वजन कम करते हैं. चर्बी पर उनका प्रभाव बहुत कम होता है. यह नुकसानदायक है. कुछ ऐसे फॉर्मूलों में ‘हाई प्रोटीन डाइट’ दी जाती है जो लिवर तथा किडनी पर इतना लोड डाल सकती है कि गॉल ब्लेडर की पथरी से लगाकर, पोटैशियम में तब्दीली लाकर दिमाग तथा दिल पर जानलेवा प्रभाव पड़ सकता है. मार्च, 1990 में अमेरिकी संसद की सब-कमेटी ने इस तरह के डाइट प्रोग्रामों को ‘अवैज्ञानिक’ तथा ‘खतरनाक’ बताया था. उस कमेटी में 48 वर्षीय एक कॉलेज प्रोफेसर का केस भी प्रस्तुत हुआ था जिसका मस्तिष्क प्रोटीन तथा पोटैशियम की कमी के कारण हमेशा के लिए डैमेज हो गया था – वे ऐसे ही ‘रातोंरात वजन कम करने’ की किसी क्लीनिक में ऐसा करते हुए कोमा में चले गए थे और फिर स्थायी रूप से मानसिक विकलांग हो गए. ऐसे ही अनगिन केस गॉल ब्लेडर में पथरी के भी हुए थे. जिसके लिए ‘कोर्ट के बाहर’ लाखों रुपयों की क्षतिपूर्ति भी हुई थी.

एक जमाने में मोटापा पश्चिमी जगत की समस्या थी, खासकर अमेरिका वालों की. अब यह हमारी भी समस्या बन गई है. ‘मोटापा कम करना’  एक बड़े बाजार की संभावना भी बनी है. तभी तो भोपाल, ग्वालियर और रायपुर जैसे शहरों तक ‘रातोंरात वजन घटाने’ की दुकानें खुल गई हैं. तरह-तरह के विज्ञापन हैं. बिना हिले-डुले, बिना खाना कम किए ही वजन कम करने के दावे हैं. पढ़कर अच्छा भी लगता है. विश्वास करने का मन भी करता है. लोग करते भी हैं. पैसे भी फूंकते हैं. जबकि कौन नहीं जानता कि ठीक से भोजन की मात्रा, मीठे व्यंजनों तथा तेल-घी की मात्रा पर समझदारी से नियंत्रण किया जाए और बीस-पच्चीस मिनट का व्यायाम हो तो प्राय: केसों में मोटापा कम किया जा सकता है. इनके बारे में मैं आगे आपको बताऊंगा. अभी तो बस यह संदेश पर्याप्त है कि रातोंरात  दुबला कर देने वाले मायावी झांसों में न आएं.