कांग्रेस असमंजस में है। गांधी परिवार से बाहर वो अध्यक्ष चुने तो किसे चुने। कौन ऐसा है जो सर्वमान्य हो सकता है। मंथन चल रहा है। आज सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई जिसमें पांच उपसमितियां बनाई गयी हैं जिन्हें शाम आठ बजे तक अपनी राय बतानी है। राहुल गांधी ने अपने फैसले पर दृढ़ रहते हुए साफ़ कर दिया है वे अपना इस्तीफा वापस नहीं लेंगे। गांधी परिवार ने खुद को नया अध्यक्ष, भले कार्यवाहक ही, चुनने की प्रक्रिया से भी अलग कर लिया है। कांग्रेस में ”लौट आओ गांधी” की पुकार है, लेकिन गांधी तटस्थ मुद्रा में हैं।
अभी तक गांधी परिवार के कंधों पर अपना सुख-दुःख ढोती रही कांग्रेस के पास लोकतांत्रिक तरीके से अपना अध्यक्ष चुनने का अवसर है। यदि वो गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष आज चुनती है तो उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक प्रतिद्वंदी – भाजपा – का कांग्रेस के खिलाफ सबसे बड़ा ”परिवार निंदा हथियार” कुंद हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के लोक सभा चुनाव में अपनी जनसभाओं में बार-बार जब भी कांग्रेस की आलोचना की थी, उसमें ”गांधी परिवार” उनके निशाने पर सबसे ऊपर रहा था।
हो सकता है अध्यक्ष पद गांधी परिवार से बाहर जाने से कांग्रेस के भीतर सत्ता संघर्ष जैसी स्थिति भी बने, तो भी कांग्रेस को आज इस खतरे का सामना करते हुए और हिम्मत दिखाते हुए बाहर अध्यक्ष चुन लेना चाहिए। राहुल गांधी ने जिस तरह लोक सभा चुनाव में हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और तमाम भीतरी दबावों बावजूद उस फैसले पर दृढ रहे, उससे जनता में उनके प्रति सकारात्मक संदेश गया है।
राहुल गांधी ऐसे नेता नहीं हैं जो अध्यक्ष नहीं रहने पर पार्टी में अप्रसांगिक हो जायेंगे। पिछले लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता थे। उनके नेतृत्व में कांग्रेस को १२ करोड़ से कुछ ज्यादा लोगों का समर्थन मिला है जो कि भाजपा के २२ करोड़ से दस करोड़ ही कम है। कांग्रेस को भले सीटें ५५ ही मिलीं, १२ करोड़ लोगों का समर्थन पार्टी को कोइ छोटा समर्थन नहीं है। यह भी कि २०१४ में कांग्रेस को करीब १० करोड़ मत मिले थे, यानि इस बार उसे २ करोड़ ज्यादा लोगों ने पसंद किया। यह राहुल नेतृत्व में हुआ है।
बहुत से राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पुलवामा घटना नहीं हुई होती तो कांग्रेस के लिए सत्ता वापसी का अवसर भी बन सकता था। बहुत से निष्पक्ष विश्लेषक यह भी मानते है कि एक बड़े मीडिया वर्ग के चुनाव के समय ”पक्षपाती” हो जाने और पूरे लोक सभा चुनाव की धारा ”हिन्दू-मुस्लिम” और ”भारत पाकिस्तान” में बदल देने के बावजूद, सिर्फ राहुल गांधी ही ऐसे नेता थे जिन्होंने अकेले अपने बूते ताकतवर मोदी से मुकाबला किया। देश के ज्वलंत मुद्दों के नेपथ्य में चले जाने और ”धर्म और उग्र राष्ट्रवाद” के बहुत भावनात्मक मुद्दे के बावजूद राहुल जनता से जुड़े मुद्दों पर प्रचार करते रहे।
धारा ३७० पर जैसा साफ़ रुख राहुल गांधी ने दिखाया है, वह उन कांग्रेसियों के लिए सबक है जो ”वोट” के डर से अलग सुर अलापने लगे हैं। देश के क़ानून और संविधान की कीमत पर फैसले बाद में दुःख भी दे सकते हैं, लिहाजा राहुल के धारा ३७० पर रुख को देश में बहुत से चिंतक सही मानते हैं।
लेकिन इन सबके बावजूद राहुल और प्रियंका गांधी में से किसी को अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए। गांधी परिवार का फैसला कांग्रेस को मानना चाहिए। भाजपा को रणनीतिक रूप से भले गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष ज्यादा ”सूट” करता हो और भले उसे लगता हो कि इससे कांग्रेस में ”टूटफूट” का रास्ता खुल सकता है, कांग्रेस को इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए। उसे गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष बनाकर और फिर पूरी एकजुटता दिखाकर अपने विरोधी राजनीतिक दलों को यह बताना चाहिए कि उसे इतना कमजोर समझना गलत है।
भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है। वैसे ही जैसे कांग्रेस २००९ में आई थी। तब भाजपा में भी निचले स्तर तक काडर में गहरी निराशा थी। लेकिन भाजपा सत्ता में आई और लगातार दूसरी बार सरकार बनाई। इस देश की राजनीति में कोइ अपरिहार्य नहीं। जनता गुण-दोष देखकर फैसला करती है। देश में गंभीर आर्थिक चुनौतियों और मनमाने फैसलों से लेकर सरकारी प्रतिष्ठानों के दुरूपयोग के कई बड़े मुद्दे कांग्रेस के पास हैं। उसके पास देश के सामने खुद को दोबारा साबित करने के असंख्य मौके हैं।
राहुल ने कहा भी है कि अध्यक्ष न रहकर भी वे सक्रिय रहेंगे। अगले चुनाव में भी मोदी के मुकाबले जनता और कांग्रेस की स्वाभाविक पसंद राहुल ही रहेंगे। उनकी बहन प्रियंका भी लोकप्रियता में कम नहीं। लिहाजा कांग्रेस के पास ”क्रिस्मैटिक” और ”मास अपील वाली” लीडरशिप की कमी नहीं है। राहुल अध्यक्ष पद से मुक्त होकर जनता के बीच ज्यादा वक्त दे सकेंगे। सरकार की नीतियों पर ज्यादा आक्रमक होकर जनता के बीच जा सकेंगे।
इसलिए आज शाम कांग्रेस के पास एक बोल्ड फैसला लेने का अवसर है। उसके सामने दृढ इच्छाशक्ति और हिम्मत दिखाने का सुनहरा अवसर है। उसे यह अवसर और किसी ने नहीं गांधी परिवार ने ही दिया है। राहुल गांधी की मजबूत इच्छाशक्ति ने दिया है। कांग्रेस ”लौट आओ गांधी” का राग छोड़कर नया और गैर गांधी अध्यक्ष चुनती है तो यह कांग्रेस ही नहीं, गांधी परिवार की भी जीत होगी !
पांच-छह नाम हैं। मुकुल वासनिक से लेकर सुशील कुमार शिंदे तक। लेकिन कांग्रेस को ऐसा अध्यक्ष नहीं बनाना चाहिए जो ”कामचलाऊ” लगे। या ऐसा लगे कि उनके पीछे पार्टी को गांधी परिवार ही चलाएगा। सक्रिय अध्यक्ष चुनना ही कांग्रेस के लिए बेहतर होगा भले वो कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए। कांग्रेस ऐसा कर सकी तो लोगों में इससे बहुत बेहतर सन्देश जाएगा। पार्टी में से किसी ऐसे मध्य आयु के नेता को अध्यक्ष बनाना चाहिए जो सबको साथ लेकर चल सके और अध्यक्ष जैसा लग सके। वासनिक, शिंदे से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे, मीरा कुमार, ग़ुलाम नबी आज़ाद, ज्योतरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे नाम सामने हैं। देखते हैं कांग्रेस क्या फैसला करती है !