डॉक्टरों के कोरोना की चपेट में आने से स्वास्थ्य महकमा सकते में
शंका-आशंका के बीच कोरोना यह अनुमान लगाने को विवश कर रहा है कि उसका कहर किस सीमा तक बढ़ेगा? लेकिन अनुमान तो अनुमान होता है, जो सर्वथा सत्य नहीं होता। वैसे भारत देश में हर रोज़ एक लाख से ज़्यादा कोरोना वायरस के मामले सामने आ रहे हैं। कोरोना क्यों बढ़ रहा है और कब तक इसका प्रकोप रहेगा? इसे लेकर ‘तहलका’ के विशेष संवाददाता ने विशेषज्ञों से बात की, जिन्होंने कोरोना के नये वायरस ओमिक्रॉन को लेकर काफ़ी कुछ बताया।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) के वाइस प्रेसीडेंट डॉक्टर नरेश चावला ने कहा कि कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर दिल्ली सरकार ने तो तामाम पाबंदियाँ लगा दी हैं और सप्ताह में दो दिन का लॉकडाउन (तालाबंदी) भी लगा दिया है। लेकिन लोगों की लापरवाही का आलम यह है कि वे बिना मास्क के जगह-जगह दिख रहे हैं, जिससे कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। डॉक्टर चावला का कहना है कि सरकार तो लॉकडाउन लगा देती है। लेकिन लॉकडाउन का पालन सही तरीक़े से नहीं होता है। ऐसे में लोगों को स्वयं अपने मन में लॉकडाउन लगाना चाहिए और लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। कहने का मतलब है कि लोगों को दिशा-निर्देशों के पालन के लिए संकल्प लेना होगा, तभी कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोका जा सकता है। क्योंकि जिस रफ़्तार से कोरोना बढ़ रहा है, अगर समय रहते लोगों ने स्वयं पर क़ाबू नहीं पाया, तो कोरोना का कोहराम घातक साबित होगा।
नेशनल मेडिकल फोरम के चेयरमैन डॉक्टर प्रेम अग्रवाल का कहना है कि कोरोना के नये स्वरूप ओमिक्रॉन के चलते देश-दुनिया में हड़कम्प मचा हुआ है। लोगों में कोरोना के नये-नये वारियंट के आने से डर सता रहा है कि कोरोना फिर से उसी तरह लोगों पर कहर बनकर न टूट पड़े, जिस तरह 2021 के मार्च और मई के बीच दूसरी लहर के रूप में टूटा था। डॉक्टर प्रेम अग्रवाल का कहना है कि कोरोना के नये स्वरूप ओमिक्रॉन को लेकर कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना अप्रैल में समाप्त हो जाएगा, जबकि कई विशेषज्ञ इस बात का दावा भी कर रहे हैं कि कोरोना के रहने की कोई सीमा नहीं है कि यह कब तक, और किस रूप में रहेगा। ऐसे में किसी प्रकार की लापरवाही करके इसे नज़रअंदाज़ करना घातक होगा। क्योंकि भारत में आये दिन कोरोना के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं और हर रोज़ एक लाख से ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं। हालाँकि राहत वाली बात यह है कि कोरोना मरीज़ों की संख्या तो बढ़ रही है; लेकिन जान गँवाने के मामलें कम आ रहे हैं, साथ ही पिछली बार की तरह अस्पतालों में हाय-तौबा नहीं मच रही है। लेकिन फिर भी इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर पूनम क्षेत्रपाल का कहना है कि जिस तरीक़े से अस्पतालों में मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है, अगर यही हाल रहा, तो अस्पतालों में मरीज़ों को इलाज कराना मुश्किल होगा। इसलिए जहाँ पर स्वास्थ्य ढाँचा कमज़ोर है, वहाँ पर उसे मज़बूत करने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि कोरोना की रफ़्तार को कम करने के लिए टीकाकरण अभियान तेज़ करना होगा। साथ ही जिन लोगों ने दोनों टीके लगवाये हैं, उनको भी अपने बचाव के लिए विशेष ध्यान देना होगा।
आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि भारत में कोरोना के मामले बढऩे की वजह साफ़ है कि लापरवाही की सारी हदें पार की जा रही हैं। सरकार कहती है कि कोरोना की रोकथाम की जा रही है। लेकिन ख़ुद ग़लती-पर-ग़लती किये जा रही है, जिसके कारण देश में कोरोना का तांडव सामने है। डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि इटली से अमृतसर जो यात्री विमान आया है, उसमें 179 यात्रियों में से 125 कोरोना संक्रमित पाये गये हैं। इटली दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहाँ शुरुआती दौर में कोरोना का विस्फोट हुआ था। कोरोना से इटली का बुरा हाल है। ऐसे में इटली से भारत आने पर हवाई सेवा को कैसे मंज़ूरी दे दी गयी है। इटली और भारतीय विमान सेवा के अधिकारियों पर कार्रवाई होना चाहिए। डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि इस तरह की लापरवाही ही कोरोना विस्फोट कर रही है। लापरवाही का अंदाज़ा तो इस बात से लगाया जाता है कि जो लोग विदेश से कोरोना लेकर आते हैं, फिर वे अचानक हवाई अड्डे से ग़ायब हो जाते हैं। उसको हवाई अड्डे के अन्दर तो पकड़ नहीं पाते हैं, फिर कई-कई दिनों तक उसको पकडऩे में लगा देते हैं, जिससे कोरोना का विस्तार हो जाता है।
कोरोना को लेकर आयुर्वेदाचार्य एवं कैनेडियन कॉलेज ऑफ आयुर्वेद ऐंड योग के प्रमुख डॉक्टर हरीश वर्मा का कहना है कि कोई भी बीमारी तब तक घातक नहीं होती है, जब तक लापरवाही न बरती जाए। कोरोना के नये-नये रूप में फैलने से बचने के लिए हमें वहीं सब कुछ करना है, जो 2020 में कोरोना की दस्तक के बाद किया था। जैसे सामाजिक दूरी बनाकर रहना, मास्क लगाकर रखना, साफ़-सफ़ार्इ रखना, सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना, सर्दी-जुकाम, बुख़ार होने या साँस लेने में दिक़्क़्त होने पर तुरन्त कोरोना जाँच कराना। अगर कोरोना नहीं है, तो भी उचित इलाज कराना। अगर किसी को कोरोना सम्बन्धी लक्षण दिखायी दें, तो उसे छिपाये नहीं, बल्कि उपचार करवाएँ। डॉक्टर वर्मा ने बताया कि आयुर्वेद में इलाज है और जो लोग नियमित योग-व्यायाम करते हैं, उनको कोरोना होने का ख़तरा न के बराबर होता है।
बताते चलें आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर महेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि और उनका अनुमान है कि कोरोना का जब चरम पर होगा, तब देश में कोरोना के मामलें चार से आठ लाख तक आ सकते हैं। ऐसे में बचाव के तौर पर सम्पूर्ण लॉकडाउन से ज़्यादा ज़रूरी है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं का वितार करे, ताकि इलाज के अभाव में मरीज़ों को भटकना न पड़े।
साकेत मैक्स अस्पताल के कैथ लेब के डायरेक्टर डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना वायरस को लेकर सचेत रहने की ज़रूरत है। हृदय रोगी, दमा रोगी और लीवर-किडनी के रोगियों को विशेष सावधानी बरतने की ज़रूरत है। क्योंकि कई बार लोगों को यह भ्रम रहता है कि उनका इलाज चल रहा है और वे कोरोना की चपेट में नहीं आएँगे, जबकि सच्चाई यह है कि जो बीमार हैं, कोरोना उनको आसानी से अपनी चपेट में ले रहा है।
मौज़ूदा समय में भारत के महानगरों में तो कोरोना मामलों की जाँच हो रही है, जिससे कोरोना की पुष्टि भी हो रही है। लेकिन गाँव-क़स्बों में कोरोना की जाँच न के बराबर हो रही है। इससे वहाँ पर कोरोना के मामले सामने नहीं आ रहे हैं। यानी वहाँ पर छिपा हुआ कोरोना कब विस्फोट कर दे, इसका कोई पता नहीं। ऐसे हालात से निपटने में लिए कड़े बंदोबस्त की ज़रूरत है। क्योंकि जिस गति से हर रोज़ कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, उससे अब गाँव और क़स्बों के लोग भी नहीं बच पा रहे हैं। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के चपेट में भी शहरों से लेकर गाँव-क़स्बों तक के लोग आये थे। पहली और दूसरी लहर से सबक़ लेना ज़रूरी है। महानगरों की तरह ज़िला स्तरीय अस्पतालों में भी पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि किसी को ऑक्सीजन गैस के भटकना न पड़े और उसके लिए लाखों रुपये न चुकाने पड़ें। कोरोना के बढ़ते प्रकोप को लेकर सबसे ज़्यादा चिन्ता की बात यह है कि इस बार कोरोना के ओमिक्रॉन वायरस का संक्रमण डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों को अपनी चपेट में ले रहा है। अगर इसी तरह स्वास्थ्य कर्मचारियों में संक्रमण फैलता रहा, तो कहीं ऐसा न हो कि लोगों को डॉक्टरों के अभाव में भटकना पड़े। ऐसे में सरकार को डॉक्टरों के स्वास्थ्य को लेकर भी सजग रहना होगा और डॉक्टरों को अधिक-से-अधिक सुविधा देनी होगी, ताकि लोगों की जान बचाने वाले बीमार न पड़ें।
चौंकाने वाली बात यह है कि देश में ड्रग माफिया भी सुनियोजित तरीक़े से कोरोना को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके कारण देश में कोरोना को लेकर डर और भय का माहौल बना हुआ है। दिल्ली से लेकर अन्य महानगरों में बड़े-बड़े मेडिकल स्टोरों में कोरोना से बचाव के सारे सामानों की उपलब्धता दर्शायी जा रही है। और तो और कई मेडिकल वाले तो यह भी दावा कर सामान बेच रहे हैं कि कोरोना के पीक आवर के समय फलाँ-फलाँ सामान की क़िल्लत हो सकती है। ऐसे में एक बार फिर 2021 की तरह बहुत-सी ज़रूरी दवाओं और वस्तुओं की जमाख़ोरी होने लगी है।
दरअसल कोरोना की दस्तक को लोगों ने अपने तरीक़े से अवसर में बदलने की परिभाषा गढ़ ली है। ये लोग जमाख़ोरी करके कोरोनारोधी चीज़ों के दामों को मनमर्ज़ी से बढ़ाकर बेचते हैं। ओमिक्रॉन की दस्तक के बाद एक बार फिर सैनिटाइजर और मास्क के दाम बढऩे लगे हैं। फार्मास्युटिकल से जुड़े आलोक कुमार का कहना है कि जब 2021 के अप्रैल-मई में करोना की दूसरी लहर के दौरान कहा गया था कि रेमडेसिविर ही आपकी जान बचा सकती है, तो यह दवा मेडिकलों पर अचानक आयी थी और रेमडेसिविर को लेकर हाहाकार मचा था। इसी तरह अब जब कोरोना चरम पर होगा, तब रेमडेसिविर की तरह किसी दवा को लॉन्च किया जाएगा। इससे फिर से दवा की कालाबाज़ारी भी बढ़ेगी और मुनाफ़ाख़ोरी भी होगी।