भाजपा की उपचुनावों में हार, एनडीए गठबंधन में टूट, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैलियों में भीड़ के बावजूद ऐसा अंदेशा है कि 2019 में भाजपा शायद ही हारे। इसकी वजह यही है कि विपक्ष अभी एकजुट नहीं है। वजह अभी भी नरेंद्र दामोदर दास मोदी तमाम विपक्षी दलों के नेताओं के बरक्स काफी ताकतवर हैं, मन से, धन से, और प्रभाव से। यह अनुमान है भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के नेताओं का। इन नेताओं का कहना है कि भारत के विपक्षी दलों में भाजपा को हराने के लिए जो एकता ज़रूरी है वह नहीं बन पा रही है।
इस साल या फिर अगले साल होने वाले आम चुनाव में भाजपा को परास्त करने में विपक्ष कामयाब नहीं होगा। वजह यह है लोकसभा चुनावों में राज्यवार तरीके से जब तक भाजपा विरोधी मतों को इक_ा नहीं किया जाता तब तक 2019 में जीत की उम्मीद पालना बेकार है। विपक्ष के बड़े नेताओं की यह आलोचना भले ही विपक्षी एकता की बात कर रहे नेताओं और बुद्धिजीवियों को नागवार लगे लेकिन इसमें दम है। अमेरिकी संवाद एजेंसी ब्लूमबर्ग का तो कहना है कि यदि विपक्ष का ऐसा हाल रहा तो 2029 तक भाजपा राज करेगी।
अभी पिछले दिनों त्रिपुरा में पराजय के बाद नई दिल्ली में माकपा की पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी की बैठक हुई। इस बैठक में भी शामिल माकपा के बड़े नेताओं ने देश की हालत और विपक्षी पार्टियों का पूरा रवैया जाना-परखा। हालांकि पार्टी ने कोई प्रेस बयान नहीं जारी किया। प्रेस कांफ्रेंस भी नहीं की। लेकिन पार्टी मुख्यपत्र, ‘पीपुल्स डेमोक्रेसीÓ के संपादकीय से यह जान पड़ता है कि पार्टी में महासचिव सीता राम येचुरी अब एक किनारे हो गए हैं। वे पहले यह मानते थे कि भाजपा को परास्त करने के लिए कांग्रेस के साथ न्यूनतम कार्यक्रम पर तालमेल रखा जा सकता है। त्रिपुरा में हुई करारी हार भी बदलाव एक वजह हो सकती है।
माकपा का यह कहना है कि टीडीपी, टीआरएस, और बीजेडी भी कांग्रेस के नेत्तृव में आपसी तालमेल नहीं चाहती। खुद माकपा भी कांग्रेस के साथ भाजपा विरोधी एकता के पक्ष में नहीं रही है। केरल में कांग्रेस और माकपा का सीधा-सीधा मुकाबला रहा है। यानी क्षेत्रीय पार्टियों का जहां कांग्रेस से मुकाबला है वे कतई सीटों पर तालमेल या कांग्रेस से तालमेल नहीं रखेंगी। हालांकि तृणमूल का नाम नहीं लिया गया है। फिर भी पश्चिम बंगाल में तो टीएमसी की प्रमुख प्रतिद्वंदी माकपा-कांग्रेस ही है। जाहिर है ममता बनर्जी ऐसा कभी नहीं चाहेंगी। इसलिए वे भाजपा- कांग्रेस के बिना वैकल्पिक मोर्चे के पक्ष में उत्साहित भी दिखती हैं।
तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में वैकल्पिक मोर्चा पर भी माकपा खासे संदेह में है। वजह साफ है कि ममता ऐसा मोर्चा चाहती है जिसमें कांगे्रस न हो (सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं को भोजन पर बुलाया था उसमें वे शामिल भी नहीं हुई थीं)। भाजपा विरोधी वोट जुटाने में राजद और द्रमुक पार्टियां ज़रूर कामयाब होंगी क्योंकि वे कांग्रेस विरोधी हमेशा रही हैं। इनकी राजनीति भी बड़ी साफ है।
माकपा का मानना है कि मोदी विरोधी वोटों के लिए ज़रूरी है कि राज्यवार एका पर जोर गंभीरता से हो। उत्तरप्रदेश में सपा -बसपा तालमेल एक बेहतर नमूना है भाजपा को पलटी देने में। अगर उत्तरप्रदेश में ज़्यादातर सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार होती है तो सदन में उनका बहुमत नहीं हो सकता। लेकिन दिन बीतने के साथ पार्टियों के आपसी अंतर्विरोध बढ़ेगें। इन्हें तेज करने में तमाम ताकतों की मदद ली जाएगी और भाजपा कामयाब होगी अंतविरोधों की आंच पर अपनी रोटियां पकाने और खाने में। यादव अखिलेश-मायावती तालमेल भी टूट जाएगा। उत्तरप्रदेश में 80 सीटें हैं। सपा-बसपा में जातिवादी और वर्गवादी भेद परंपरा से बहुत गहरे हैं। सपा के यादवों के ओबीसी एलायंस और बसपा के दलितों में गठबंधन को कभी भी टिकाऊ न होने देने में भाजपा और कांग्रेस के जातिवादी नेता हमेशा अड़ेंगे लगाएंगे। इसकी वजह जनता का पढ़ा-लिखा न होना और गंगा जमुनी तहजीब को अनिवार्य न मानना है। भाजपा ने चार साल मे जो गलतियां सुशासन के तौर पर की हैं और पूरे देश में असंतोष फैलाया है। उससे जनता केा गुमराह करने में भाजपा और संघ परिवार तमाम राज्यों में लगातार सक्रिय है।
लगभग ऐसी ही समस्या बिहार में राजद और जद(यू) के साथ है। पहले एक महा-गठबंधन बना था लेकिन भाजपा-संघ परिवार के नेताओं का प्रयास कामयाब नहीं रहा।
यह सही लगता है कि कांग्रेस भाजपा को कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की कुल 65 सीटों पर जोरदार टक्कर दे। इन राज्यों में कांग्रेस का लगभग सीधा मुकाबला है। लेकिन इन राज्यों की जनता के बीच अन्य विपक्षी दलों ने कभी ज़मीनी स्तर पर न संपर्क बनाए हैं और न उनकी दिलचस्पी ही रही। इन सभी प्रदेशों में मोदी के पुराने भाषणों से ही काम चल जाएगा। जमीनी स्तर पर संघ परिवार लंबे समय से सक्रिय है ही।
विपक्ष में आज भी नेताओं में परस्पर ईगो जनता के बीच निष्क्रियता, और क्षेत्रीय किस्म के दबावों और जातिवादी उन्मादों का असर ज़्यादा है। इसके चलते भाजपा और संघ परिवार की सक्रियता के चलते 2019 में भी मोदी -शाह की जोड़ी कामयाब रहेगी।
भाजपा का राज्यसभा में अब बहुमत
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का अब लोकसभा ही नहीं, राज्यसभा में भी अच्छा खासा बहुमत है। उत्तर भारत और उत्तर पूर्व में भाजपा की ऐतिहासिक विजय के चलते भाजपा सदन में बहुत अच्छी स्थिति मेें है। राज्यसभा में यह अब बड़ी पार्टी है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेतली, भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिंह राव, सपा की जया बच्चन (सभी उत्तरप्रदेश से), कांगे्रस के नेता अभिषेक मल्ल सिंघवी (पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांगेे्रस के समर्थन से) और राजीव चंद्रशेखर (कर्नाटक से)विजयी हुए। माकपा के नेतृत्व वाले एलडीएफ के वीरेंद्र कुमार जो जनतादल (यू) की केरल इकाई के अध्यक्ष हैं वे कांग्रेस को हराकर जीते।
उत्तरप्रदेश में राज्यसभा की दस सीटों में से आठ तो भाजपा को मिलनी ही थीं। नौंवी सीट पर विधायकों के दिल शायद नहीं मिले इसलिए बसपा के ही विधायक ने पार्टी ह्विप का उल्लंघन किया और भाजपा को अपना वोट दिया। निर्दलीय राजा भैया पहले शायद इस गठबंधन के हक मेें थे लेकिन बाद में उन्होंने मतदान में भाग ही नहीं लिया। लाभ भाजपा को हुआ। व्यक्तिगत नफा नुकसान और बदलती राजनीति के गुणाभाग में भाजपा को उत्तरप्रदेश से राज्यसभा में एक और सीट पर कामयाबी हासिल हुई।
भाजपा के प्रत्याशी अनिल अग्रवाल ने बसपा उम्मीदवार भीमाराव अंबेडकर को हराया। इस एक सीट को पाने के लिए सपा-बसपा-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा व समर्थकों के बीच क्रासवोटिंग और दूसरे प्रबंधन प्रयास भरपूर हुए लेकिन जीत भाजपा प्रत्याशी की ही हुई।