लिव-इन रिलेशनशिप को शादी की मान्यता नहीं, कपल नहीं मांग सकते तलाक- केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि कानून लिव इन रिलेशनशिप को शादी की मान्यता नहीं देता है। जब दो लोग केवल एक समझौते के आधार पर साथ रहने का फैसला करते हैं, तो वे शादी होने का दावा नहीं कर सकते हैं और न ही इसमें तलाक की मांग कर सकते हैं।

कोर्ट ने कहा कि, वह केवल पर्सनल लॉ या धर्मनिरपेक्ष कानूनों के अनुसार होने वाली शादियों को ही लीगल मानता है। यदि दो लेग केवल आपसी समझौते के आधार पर एक साथ रहते हैं तो इसका ये मतलब नहीं है कि वो विवाह अधिनियम के दायरे में आते हैं।

यह टिप्पणी कोर्ट ने उस समय दी जब एक कपल जो कि एक एग्रीमेंट के जरिए लिव इन में रह रहे थे और उन्होंने तलाक के लिए फैमिली कोर्ट के खिलाफ अपील दायर की थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि इस संबंध को शादी नहीं मान सकते और न ही इसमें तलाक मांग सकते है।

कोर्ट ने आगे कहा कि, सामाजिक संस्था के रूप में विवाह सामाजिक और नैतिक आदर्शों को दर्शाता है, जहां इनका पालन किया जाता है कानून में भी इसे पुष्ट किया गया है व मान्यता दी गई है। वर्तमान में कानूनी रूप से लिव-इन रिलेशनशिप के विवाह का दर्जा नहीं दिया गया है। कानून तभी मान्यता देता है जब विवाह को व्यक्तिगत कानून के अनुसार या विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार संपन्न किया जाता है।

आपको बता दें, याचिकाकर्ता कपल में एक हिंदू और दूसरा ईसाई है। जोड़ा एक सहमति से वर्ष 2006 से एक साथ रह रहा था। और दोनों का 16 साल का बच्चा भी है।