भारतीय जनता पार्टी पर अपना वर्चस्व कायम करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों ने शायद ही सोचा होगा कि उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी युग की ओर लौटना होगा। लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री का आखिरी भाषण तो कम से कम इसकी तस्दीक करता ही है। मोदी न केवल अटल बिहारी वाजपेयी के शाइनिंग इंडिया की ओर लौटे बल्कि उन्होंने कश्मीर के मामले में वाजपेयी का तरीका अपनाने की घोषणा भी कर डाली। यह निश्चित तौर पर राजनीति की उनकी शैली के विपरीत था। सवाल उठता है कि क्या मोदी उस शाइनिंग इंडिया के सहारे 2019 की चुनावी जंग जीत पांएंगे जो 2004 में भाजपा हार गई थी। शायद उन्हें अपने मीडिया प्रबंधन और कारपोरेट के पूर्ण समर्थन का भरोसा है।
वैसे मोदी ने अपने भाषण में शाइनिंग इंडिया का नारा नहीं दोहराया, लेकिन उन्होंने ऐसे भारत की तस्वीर खींची जो विकास के रास्ते पर तेजी से भाग रहा है। इसी तस्वीर को ही शाइनिंग इंडिया का नाम दिया गया था। उन्होंने कहा, ”आज देश एक आत्मविश्वास से भरा हुआ है। सपनों को संकल्प के साथ परिश्रम की पराकाष्ठा पार करके देश नई ऊंचाईयों को पार कर रहा है। आज का सूर्योदय एक नई चेतना, नई उमंग, नया उत्साह, नई ऊर्जा ले कर आया है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा,” हम आज उस समय आजादी का पर्व मना रहे हैं, जब हमारे देश में उन खबरों से चेतना आई, जिनसे हर भारतीय जो दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहता हो, आज इस बात का गर्व कर रहा है,कि भारत ने विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था में अपना नाम दर्ज करा दिया है। ऐसे एक सकारात्मक माहौल में, सकारात्मक घटनाओं की श्रृंखला के बीच आज हम आजादी का पर्व मना रहे हैं।’’ ”लेकिन वही दुनिया, वही लोग, वही दुनिया को मार्ग दर्शन करने वाले लोग इन दिनों कह रहे हैं कि सोया हुआ हाथी अब जग चुका है, चल पड़ा है। सोए हुए हाथी ने अपनी दौड़ शुरू कर दी है। दुनिया के अर्थवेत्ता कह रहे हैं कि आने वाले तीन दशक तक, यानि 30 साल तक, विश्व की अर्थव्यवस्था की ताकत को भारत गति देने वाला है। भारत विश्व के विकास का एक नया स्रोत बनने वाला है। ऐसा विश्वास आज भारत के लिए पैदा हुआ है,’’ मोदी ने दावा किया।
उन्होंने उगते भारत की ऐसी तस्वीर खींची जिसमें धरती से लेकर अंतरिक्ष तक भारत अपने झंडे गाड़ रहा है। इस चमकते भारत को अपने पीछे ले जाने के आग्रह को कैसे मजबूत बनाया जाए, यह भी कोशिश प्रधानमंत्री के भाषण में दिखाई देती हैं।
उन्होंने चुनावी घोषणा-पत्र वाले मुद्दे गिना दिए और सपनों की नई सूची जनता के सामने रख दी। उन्होंने देश के हर नागरिक को घर, बिजली, स्वास्थ्य सुरक्षा, शौचालय और इंटरनेट कनेक्शन देने का वायदा किया। ”हर भारतीय के पास अपना घर हो, हर घर के पास बिजली कनेक्शन हो, हर भारतीय को धुंए से मुक्ति मिले रसोई में और इसलिए हर भारतीय को जरूरत के मुताबिक जल मिले और इसलिए हर भारतीय को शौचालय मिले और इसलिए हर भारतीय को कुशलता मिले और इसलिये हर भारतीय को अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं मिले, इसलिये हर भारतीय को सुरक्षा मिले, सुरक्षा का बीमा सुरक्षा कवच मिले और इसलिए हर भारतीय को इंटरनेट की सेवा मिलें और इस मंत्र को लेकर हम देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं,’’ मोदी ने घोषणा की।
इसी क्रम में उन्होंने आयुष्मान भारत के लोक-लुभावन कार्यक्रम भी घोषित कर दिया।
” देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को, सामान्य जन को, आरोग्य की सुविधा मिले, इसलिए गंभीर बीमारियों के लिए और बड़े अस्पतालों में सामान्य मानव को भी आरोग्य की सुविधा मिले, मुफ्त में मिले और इसलिए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री जनआरोग्य अभियान प्रारंभ करने का तय किया है।
प्रधानमंत्री जनआरोग्य अभियान के तहत आयुष्मान भारत योजना के तहत, इस देश के 10 करोड़ परिवारों को लाभ मिलेगा। यह शुरूआत है, आने वाले दिनों में निम्न मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग को भी इसका लाभ मिलने वाला है। इसलिए 10 करोड़ परिवारों को, यानी करीब-करीब 50 करोड़ नागरिक, हर परिवार को पांच लाख रुपया सालाना देने की योजना है। यह हम इस देश को देने वाले हैं। किसी सामान्य व्यक्ति को यह अवसर पाने में दिक्कत न हो, रुकावट न हो यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए टूल बने हैं,’’ उन्होने कहा।
जाहिर है यह उनका चुनावी एजेंडा है और वह वाजपेयी की तरह नरम राजनीति नहीं करते हैं। उन्होंने कांग्रेस को इस हद तक निशाने पर लिया कि यही बता दिया कि 2013 में देश की तरक्की की जो रफ्तार थी उससे लोगों को शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा पाने में भी सदियां लग जाती। ” लेकिन हम आगे जा रहे हैं वह पता तब तक नहीं चलता है जब तक हम कहां से चले थे, उस पर अगर नजर न डाले, कहां से हमने यात्रा का आरंभ किया था, अगर उसकी ओर नहीं देखेंगे तो कहां गए हैं, कितना गए हैं, इसका शायद अंदाज नहीं लग पाएगा। इसलिए 2013 में हमारा देश जिस रफ्तार से चल रहा था, जीवन के हर क्षेत्र में 2013 की रफ्तार थी, उस 2013 की रफ्तार को अगर हम आधार मान कर सोचें और पिछले चार साल में जो काम हुए हैं, उन कामों का अगर लेखा-जोखा लें, तो आपको अचरज होगा कि देश की रफ्तार क्या है, गति क्या है, प्रगति कैसे आगे बढ़ रही है। शौचालय ही ले लें, अगर शौचालय बनाने में 2013 की जो रफ्तार थी, उसी रफ्तार से चलते तो शायद कितने दशक बीत जाते, शौचालय शत-प्रतिशत पूरा करने में,’’ मोदी ने कहा।
उनके भाषाण से यह भी साफ हो गया कि वह भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाएंगे। इसमें 2014 के मुकाबले यह फर्क होगा कि वह अब यह दावा भी करेंगे कि उन्होंने एक भ्रष्टाचार मुक्त शासन दिया। उन्होंने दावा किया कि उनके शासन में दलालों और कमीशनखोरों का सफाया हो गया है।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या उनकी इस तस्वीर को लोग स्वीकार करेंगे? क्या विपक्ष उनकी इस तस्वीर के सामने उस भारत की तस्वीर नहीं रखेंगे जिसमें किसान आत्महत्या कर रहे हैं और एक छोटी नौकरी के लिए भी बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फौज आ खड़ी होती है। किसानों की आय दुगना कर देने का जो दावा प्रधानमंत्री कर रहे हैं वह काफी विवादों में है। लालकिले के भाषण के बाद स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने उनके दावे को ”असत्य’’ करार दिया। यही नहीं, उन्होंने स्वच्छता अभियान से बच्चों की मौत में कमी होने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के बयान के बारे में भी दावा किया कि प्रधानमंत्री उसे गलत ढंग से पेश कर रहे हैं।
कांगे्रेस ने तो मोदी के दावों को ”जुमला’’ ही करार नहीं दिया बल्कि राहुल गांधी की चुनौती भी दोहरा दी कि प्रधानमंत्री खुले मंच पर बहस करें। रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मोदी को राफेल और व्यापम घोटाले की याद दिलाई। नीरव मोदी और मेहुल चौकसी को लेकर कांग्रेस पहले से आक्रामक है। सुरजेवाला ने डालर के मुकाबले रूपए की कीमत का सवाल भी उठाया।
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी व्यापार घाटे की बात उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था बहुत बुरी हालत में है। विपक्ष उन्हें लिंचिंग और औरतों पर अत्याचार पर भी घेर रहा है।
सवाल उठता है कि क्या मोदी सिर्फ उगते भारत पर टिके रहेंगे? ऐसा लगता नहीं हैं। लालकिले से भी उन्होंने इसके हल्के ही सही लेकिन संकेत तो दे ही दिए हैं। उनका भगवा साफा इसकी गवाही दे रहा था और उन्होंने तीन तलाक कानून को रोकने की विपक्ष की कोशिश का हवाला दिया। इसे सभी जानते हैं कि भाजपा का यह मुद्दा हिंदुत्व एजेंडे का ही हिस्सा है। उनका लिंचिंग को लेकर सीधा बयान नहीं देना भी इसी ओर इशारा करता है। मोदी का ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा हिंदुत्व के साथ ही चलेगा, यह तय है।
क्या कहते हैं पगड़ी के रंग!
भारतीय संस्कृति में पगड़ी या टोपी का अपना महत्व है। यहां सिर ढकने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस परंपरा को पूरी तरह निभाया है। हर स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने अलग-अलग तरह के साफों या पगडिय़ों को पहना।
2014 में उन्होंने गहरे लाल और हरे रंग के जोधपुरी साफे को पहना था। 2015 के 15 अगस्त को वह राजस्थानी साफा बांध कर आए थे, जिसकी पृष्ठभूमि पीली थी और उस पर पीले रंग के अलग ‘शेड्स’ की आड़ी तिरछी रेखाएं थी। इनमें से कुछ लाल और गहरे नीले रंग की भी थीं।
2016 में नरेंद्र मोदी ने पगड़ी को गुलाबी और पीले रंग मे रंगवाया था। जबकि 2017 में प्रधानमंत्री तीखे लाल और पीले रंग की पगड़ी में नज़र आए थे जिसमें सुनेहरी रंग की आड़ी-तिरछी रेखाएं भी थीं। इस साल (2018) प्रधानमंत्री ने केसरी रंग का साफा बांधा था। हमारे यहां केसरी रंग समर और बलिदान का प्रतीक है। इस साल के भाषण के दौरान प्रधानमंत्री की शरीरिक भाषा यह दिखा रही थी कि वे किसी ‘जंग’ के लिए तैयार हैं। ध्यान रहे कि कुछ ही महीनों में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आम चुनाव होने हैं और साथ ही 2019 में लोकसभा के लिए भी वोट डलने हैं। हो सकता है कि ‘केसरिया’ रंग इसी समर में उतरने का प्रतीक चिन्ह हो।