हमारे यहाँ कुछ प्रसिद्ध कहावतें हैं- ‘प्रसन्न रहो, स्वस्थ रहो।’ ‘परिश्रम से मन और शरीर स्वस्थ रहते हैं।’ ‘अपना आज सँभालो, आपका कल सुरक्षित हो जाएगा।’ ‘आज बूँद-बूँद घड़ा भरो, कल वह घड़ा आपके काम आएगा।’ ‘जवानी सँभाल कर रखो, बुढ़ापा सँवर जाएगा।’ इन कहावतों पर भले ही बहुत कम लोग अमल करते हैं, लेकिन जो इन पर अमल करते हैं, वे वाकई लम्बी और स्वस्थ ज़िन्दगी जीते हैं। 100 वर्ष जीने वालों के सर्वे से पता चला है कि ऐसे लोगों ने जवानी में भरपूर स्वास्थ्य वद्र्धक पौष्टिक भोजन किया, परिश्रम किया, व्यायाम किया और चिन्तामुक्त जीवन बिताया।
आपने देखा होगा कि जो लोग आलसी नहीं हैं, वे हर समय उत्साह से भरे रहते हैं। जो किसी-न-किसी कार्य में संलग्न रहते हैं, वे प्राय: दीर्घजीवी होते हैं। वैसे तो मृत्यु और जीवन का समय निश्चित है। इसे घटाना या बढ़ाना किसी के बस में नहीं। लेकिन जीवन को सुन्दर बनाना, सफर को सुहावना और आनन्दमय बनाना और स्वस्थ रहना तो आपके बस में है।
आर्युवेदाचार्य कहते हैं कि कोई भी बीमारी अकस्मात् नहीं आती। पहले वह इतने कम प्रभाव से आती है कि शुरू में उसका पता तक नहीं चलता। बाद में उसकी जड़ बनती है और धीरे-धीरे वह शरीर में पनपती है। एक सत्य यह भी है कि कोई बीमारी कभी अपने आप नहीं आती, उसे हम निमंत्रण देते हैं; तभी वह हमारे शरीर को आ घेरती है।
अधिक आराम करने से बचें
यह प्रकृति के अनुसार ही है कि जीवेम् शरद:शतम्। चलता हुआ आदमी और दौड़ता हुआ घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता। इसलिए हमेशा किसी-न-किसी काम में शरीर को उलझाये रहना चाहिए। लेकिन ऐसे कामों में ही, जिनसे शरीर को और हमें नुकसान न हो। शरीर को आराम देने का मतलब है- शरीर के साथ-साथ जीवन के सुखों को क्षीण करना। आप सोच रहे होंगे कि आराम करने से शरीर का कौन-सा नुकसान होगा? तो यह भी जान लीजिए- जब आप ज़रूरत से ज़्यादा आराम करने लगते हैं, तब शरीर की मांसपेशियाँ, नसें, इंद्रियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, जिससे शरीर में रक्त का दौड़ान कम होता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों को भरपूर रक्त और पोषक तत्त्व नहीं मिलते, जिसके चलते शरीर कमज़ोर होने लगता है; हड्डियाँ और मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं और कमज़ोरी महसूस होने लगती है। और अधिक विश्राम करने के बाद काम करने की इच्छा शक्ति खत्म हो जाती है। इसके साथ ही धीरे-धीरे शरीर विभिन्न रोगों से घिर जाता है। वहीं, काम न करके हम उत्पादन भी कम करते हैं यानी धन आदि का अर्जन भी नहीं होता। दरअसल, हमारे शरीर की शिथिलता हमें जल्द ही बीमार, बूढ़ा और कमज़ोर बना देती है।
मन के बुढ़ापे से तन का बुढ़ापा
यह भी कही जाती है कि मन का बुढ़ापा ही तन का बुढ़ापा लाता है। यह बात बिल्कुल सही है। जब हमारा मन कमज़ोर या आलसी होता है, तो उसका असर हमारे काम करने की क्षमता पर पडऩे लगता है। दरअसल, मन का आलस भी शरीर को आराम देने की कोशिशों का ही नतीजा होता है। इसी तरह शारीरिक थकान से मानसिक थकान भी आती है। लेकिन अधिकतर मानसिक परेशानियाँ, तनाव भी मानसिक थकान का कारण बनते हैं, जिससे शरीर थकान महसूस करता है और फिर काम न करने से वह जर्जर और खण्डहर-सा बनने लगता है।
क्या करना चाहिए?
सबसे पहले तो शरीर से भरपूर काम लें, ताकि अच्छी तरह भोजन कर सकें और उसे पचा भी सकें। शरीर जब मेहनत कर चुका होता है, तो उसमें भोजन को पचाने की भरपूर क्षमता होती है। हमेशा प्रसन्न मन से रसास्वादन में डूबकर भोजन करना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि हम पोष्टिक भोजन नहीं करते, लेकिन जब बीमार पड़ते हैं, तो महँगी-से-महँगी दवा खाते हैं। क्यों न पहले से ही पोष्टिक भोजन करें। इसके अलावा जहाँ तक सम्भव हो बासी भोजन न करें। खासतौर पर रात का रखे भोजन को सुबह गर्म करके तो बिल्कुल न खाएँ। इससे न केवल हमारी सेहत खराब होगी, बल्कि भोजन से अरुचि भी पैदा होगी, जिससे हमारी स्वाद ग्रंथियाँ कमज़ोर होने लगेंगी और हमारी भोजन के प्रति अरुचि बढ़ती जाएगी।
इसके अलावा चिड़चिड़ा स्वभाव रखने, बात-बात पर झुंझलाने, बात-बात पर गुस्सा करने, हर चीड़ में कमियाँ निकालने से बचें। क्योंकि यह भी एक प्रकार का रोग है, जिसे मानसिक रोगों की श्रेणी में रखा गया है। अगर ये आदतें आपमें हैं, तो इनसे जितनी जल्दी हो सके, छुटकारा पा लीजिए, अन्यथा अनेक बीमारियाँ आपको घेर सकती हैं। इसके अलावा हमेशा सुखद और अच्छे विचार कीजिए, सकारात्मक और सुन्दर कल्पनाएँ मन में सँजोकर रखिए, हर किसी से उत्तम व्यवहार कीजिए और मधुर बोलिए।
आर्युवेदाचार्यों और वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर दिल-ओ-दिमाग में कुविचार में आयें, तो उनका विपरीत प्रभाव शरीर की कोशिकाओं पर ज़रूर पड़ता है। यह भी कहा गया है कि अगर मन प्रसन्न रहता है, तो शरीर कोशिकाओं पर अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार अधिक बोलने वाले लोगों की अपेक्षा कम बोलने वाले और शान्त रहने वाले लोग ज़्यादा लम्बी उम्र जीते हैं।