लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था

 

अगर सिस्टम में दोष हो और सरकारी नीतियों में भेदभाव हो तो भ्रष्टाचार फलता-फूलता है और देश की अर्थ-व्यवस्था में घुन की तरह लगकर आर्थिक दशा को कमज़ोर कर देता है। इन दिनों लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था को लेकर तहलका संवाददाता ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा के व्यापारियों से बात की। व्यापारियों ने बताया कि अर्थ-व्यवस्था बाज़ारबंदी और मंदी से ही नहीं लडख़ड़ाती है, बल्कि व्यापार में भ्रष्टाचार से भी बर्बाद होती है और बड़े स्तर पर काले धन के रूप में तब्दील हो जाती है। इससे बाज़ार में नकदी का अभाव होता है। कोरोना-काल में त्राहि-त्राहि मची हुई है। वहीं सत्ता से जुड़े व्यापारी जमकर चाँदी कूट रहे हैं और देश की अर्थ-व्यवस्था में सेंध लगा रहे हैं। दिल्ली के व्यापारी प्रमोद जैन का कहना है कि पुलिस के डण्डे के डर और कोरोना बीमारी के भय से कोरोना-काल में लॉकडाउन के चलते कपड़े का कारोबार पूरी तरह से बन्द रहा है। पर वहीं कुछ सत्ता में अपनी पकड़ के सहारे जमकर कोरोना वायरस से बचाव के लिए जारी दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ ही नहीं उड़ायीं, बल्कि अर्थ-व्यवस्था और जीएसटी को भी बट्टा लगाया है।

प्रमोद जैन का कहना है कि देश में शादी-विवाह का अवसर (मुहूर्त) चल रहा है। ऐसे में जिन परिवारों में पहले से शादी तय हो गयी है, वो हर हाल में येनकेन प्रकारेण शादी के लिए कपड़ों की ख़रीददारी के लिए बाज़ारों में निकलें कैसे? क्योंकि साधारण और ग़ैर-राजनीतिक व्यापारियों की दुकानें बन्द हैं। केवल सत्ता में पकड़ की दम पर दुकानों को खोला और जमकर कपड़ों का व्यापार किया। बिना बिल दिये बिक्री की वो भी औने-पौने दामों पर। ऐसे में सीधे तौर पर देश की अर्थ-व्यवस्था में सेंध लगी है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।

नोएडा के जूता व्यापारी आलोक कुमार का कहना है कि कोरोना महामारी, सियासी लोगों के बड़े काम आया है। ज़िला स्तर से लेकर राज्य स्तर के नेताओं ने अपने संगे सम्बन्धियों के काम-काज में और व्यापार पर आँच तक नहीं आने दी है। वजह सा$फ है कि चोर दरवाज़ो से व्यापार हुआ है। क्योंकि सत्ता से जुड़े लोग को किसी शासन-प्रशासन का भय नहीं है। वे भले ही दिखावे के तौर पर दुकानों की शटरों को बन्द किये रहे हैं, लेकिन धन्धा चलता रहा है। हरियाणा के जाट आर.के. सिंह का कहना है कि लॉकडाउन तो आम लोगों के लिए है। जिनकी सियासत में अच्छी पकड़ है, उन्हें कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। वे अपना काम-काज ख़ूब कर रहे हैं। वहीं जिनकी सियासी पहुँच अच्छी नहीं है, वे परेशान हो रहे हैं।

काम-काज करना दूर, दुकान के आस-पास भी दिखने पर वे पुलिस के कोपभाजन का शिकार हो रहे हैं, उनके चालान काटे जा रहे हैं। मध्य प्रदेश के दीपक शर्मा का कहना है कि यहाँ दो तरह का लॉकडाउन है। जो लोग किसी मंच से जुड़े हैं, उनके कारोबार को कोई आँच नहीं आयी है। जैसे राशन की दुकान में कपड़े से लेकर सारे सामान की बिक्री बड़े पैमाने पर हुई है। यहाँ कहीं पर कोई खाता न बही, जो दुकानदार ने ग्राहकों से कहा वही सही की व्यवस्था चल रही है।
आर्थिक मामलों के जानकार राजकुमार का कहना है कि देश में कोरोना महामारी से मज़दूरों का पलायन बढ़ा है। छोटे और मध्यम वर्ग का कारोबार मंदी और बंदी के कगार पर पहुँचा है। इससे लाखों युवाओं की नौकरी गयी है, जो सीधे तौर पर आर्थिक छति है। क्योंकि नौकरी जाने से देश का एक बड़ा वर्ग पैसों के लेन-देन से वंचित रहा है। लॉकडाउन के लगने से जीएसटी में गिरावट आ रही है, जो कोरोना महामारी के साथ आर्थिक महामारी के रूप में उभर रही है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार का कहना है कि अगर सरकार को अगर सही मायने में सही समय पर देश की अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना है, तो उन युवाओं की नौकरी बचानी होगी, जो प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करते हैं। इसके अलावा सरकार को उद्योगों, कम्पनियों को राहत राशि (पैकेज) देना चाहिए, ताकि वो चल सकें और अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन दे सकें। साथ ही सरकारी महकमों में भी भर्ती प्रक्रिया तेज़ करनी होगी। अन्यथा लोगों को अपने जीवन-यापन में दिक़्क़त हो सकती है।

छोटे और मझोले व्यापारी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय जैन का कहना है कि देश की अर्थ-नीतियों में चोट लगाने की जो चालें चली जा रही हैं, उसमें हमारे सरकारी सिस्टम का दोष है। उनका कहना है कि मौज़ूदा समय में देश के दो-चार बड़े औद्योगिक घराने अपने से छोटे कारोबारियों के धन्धे हथियाने में लगे हैं, जिसको देश की सरकार अपने अंदाज़ से नजरअंदाज़ कर रही है। क्योंकि यह देश की अर्थ-व्यवस्था दो-चार औद्योगिक घरानों के हवाले करने की साज़िश लगती है, जो बाज़ारों में रौनक़ होती थी, अब वो बाज़ारों में रौनक़ नहीं है। ऐसे में अर्थ-व्यवस्था का अव्यवस्थित होना लाज़िमी है।