अधिवेशन में पार्टी ने दिये भविष्य के संकेत
लोकसभा के एक साल बाद होने वाले चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपना अधिवेशन करके इस बात के संकेत दिये हैं कि चुनाव में उसकी भूमिका क्या होगी और जनता के सामने वह क्या बड़े मुद्दे लेकर जाएगी? पार्टी ने सत्ता में आने पर जहाँ आरटीआई जैसा स्वास्थ्य का अधिकार (राईट टू हेल्थ) क़ानून लाने की बात कही है। वहीं 11 पहाड़ी राज्यों को विशेष दर्जा देने की बात भी कही है।
राजनीति की बात करें, तो कांग्रेस किसी भी तीसरे मोर्चे के ख़िलाफ़ दिखती है और उसका मानना है कि ऐसा कोई भी तीसरा मोर्चा सिर्फ़ भाजपा को लाभ पहुँचाएगा। हालाँकि उसने यह भी कहा कि वह विपक्षी एकता की पक्षधर है; लेकिन इसके लिए कांग्रेस अगले चुनाव में भाजपा के ख़िलाफ़ अपने नेतृत्व वाले मोर्चे को सर्वाधिक असरकारी मानती है। रोज़गार, महँगाई, किसान और देश की एकता को तो पार्टी ने अपने एजेंडे में सर्वोपरि रखा ही है।
पार्टी का यह महाधिवेशन ऐसे मौक़े पर आया है, जब पार्टी के सबसे ज़्यादा स्वीकार्य नेता राहुल गाँधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा हाल ही में ख़त्म की है और पार्टी और जनता दोनों में इसका व्यापक असर देखने को मिला है। राहुल गाँधी की भूमिका को लेकर इस अधिवेशन साफ़ कुछ नहीं कहा गया; लेकिन उनके नेतृत्व वाली यात्रा की सफलता और जनता में उनकी लोकप्रियता का ज़िक्र हर कांग्रेस नेता ने किया, अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से लेकर सोनिया गाँधी और अशोक गहलोत, सचिन पायलट तक सबने। ज़ाहिर है पार्टी की तरफ़ से अगले चुनाव में राहुल कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा रहेंगे ही।
कांग्रेस ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में जिस तरह तीसरे मोर्चे को भाजपा को फ़ायदा पहुँचने वाला बताया है, उससे साफ़ है कि उसका नेतृत्व मानता है कि अगले चुनाव में कांग्रेस के उभार की काफ़ी सम्भावना है। पार्टी इस साल राज्य विधानसभाओं के चुनाव को लेकर बहुत उत्साहित है और उसका राय है कि भाजपा की सत्ता के अंत की शुरुआत इन चुनावों से हो जाएगी, क्योंकि जनता अब बदलाव की सोच रही है।
कांग्रेस के तीसरे मोर्चे को लेकर इस प्रस्ताव से यह देखना दिलचस्प होगा कि अब तेलंगाना के नेता के.सी. राव, बंगाल की नेता ममता बनर्जी आदि का क्या रुख़ रहता है?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कांग्रेस के अधिवेशन से ऐन पहले कांग्रेस को विपक्षी एकता की पहल करने का आग्रह कर चुके हैं। उनका मानना है देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को इस एकता के लिए आगे आना चाहिए और यदि ऐसा होता है तो अगले चुनाव में भाजपा 100 सीटों तक सिमट जाएगी। नीतीश के इस दावे और कोशिश की ज़मीनी सच्चाई आने वाले समय में मिल जाएगी; क्योंकि मार्च के पहले हफ़्ते में तीन पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव नतीजे सामने आ जाएँगे।
इसके बाद के 10 महीनों में आठ और विधानसभाओं के चुनाव होंगे, जो भाजपा के लिए बहुत महत्त्व रखते हैं; क्योंकि लोकसभा की सीटों की संख्या के लिहाज़ से ये राज्य काफ़ी बड़े हैं। कांग्रेस ने जिस तरह राजनीतिक प्रस्ताव में कहा कि वह तीसरे मोर्चे के बजाय धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ताक़तों की एकता की पक्षधर है, उससे साफ़ है कि कांग्रेस समान विचारधारा वाली धर्मनिरपेक्ष ताक़तों की पहचान कर उन्हें एकजुट करने और संघर्ष करने के लिए सामने लाना चाहती है। पार्टी ने कहा कि साझे वैचारिक एजेंडे पर एनडीए का मुक़ाबला करने के लिए एकजुट विपक्ष की तत्काल ज़रूरत है।
हाल के वर्षों में जिस तरह भाजपा ने उसकी सरकारें गिरायी हैं, उसे देखते हुए कांग्रेस ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि विधायकों की ख़रीद और बड़े पैमाने पर दल-बदल की योजना बनाकर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों को गिराने के लिए की परम्परा को रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए। बता दें हाल के वर्षों में कांग्रेस को भाजपा के हाथों दलबदल के कारण अपनी पाँच राज्य सरकारों को खोना पड़ा है। दलबदल करने वाले उसके नेताओं की संख्या तो बहुत ज़्यादा है।
पार्टी ने प्रस्ताव में चुनाव सुधार लाने की बात कही है और इलेक्टोरल बॉन्ड की मौज़ूदा प्रणाली को घातक रूप से त्रुटिपूर्ण और पूरी तरह भ्रष्ट बताया है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय चुनाव कोष स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है, जिसमें हर कोई योगदान दे सकता है। कांग्रेस ने प्रेस की स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और सरकार भारत और विदेश दोनों में इलेक्ट्रॉनिक, सोशल, डिजिटल और प्रिंट मीडिया पर अपनी पकड़ बढ़ा रहे हैं और मीडिया की आज़ादी पर हमला हो रहा है। डेटा संरक्षण का मुद्दा भी राजनीतिक प्रस्ताव में उठाया गया है। आंतरिक और बाहरी सुरक्षा और भारत-चीन सीमा के मुद्दे भी प्रस्ताव में हैं।
राजनीतिक प्रस्ताव में कांग्रेस ने एक और अहम बात जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्ज देने और लद्दाख़ और इसके लोगों को संविधान के छठे अनुसूची के तहत संरक्षण देने का वादा किया है। पार्टी ने आँध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की प्रतिबद्धता भी जतायी है। कांग्रेस ने कहा है कि सत्ता में आने पर वह 11 हिमालयी राज्यों को विशेष दर्जा देगी। इनमें हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड जैसे राज्य शामिल हैं। निश्चित ही यह बड़ा वादा है और इन राज्यों के लोगों के आकर्षित कर सकता है।
कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए जब सत्ता में थी, तो सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सुझाव पर वह मनरेगा और आरटीआई जैसे व्यापक लोकप्रिय क़ानून लायी थी। अब आरटीई जैसा सबको स्वास्थ्य का अधिकार क़ानून लाने का उसने वादा किया है। माना जाता है कि कांग्रेस 2014 में तीसरी बार सत्ता में आती, तो तभी वह यह क़ानून ले आती; लेकिन भाजपा के हाथों उसकी हार से ऐसा नहीं हो पाया था। निश्चित ही ऐसा क़ानून देश के लोगों के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने वाला साबित हो सकता है।
कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले, जो दूसरी बड़ी बात करने की तैयारी में है, वह है- उन राज्यों राहुल गाँधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा और शायद तीसरा चरण भी करना। राहुल गाँधी इस यात्रा में उन राज्यों को कवर करेंगे, जो पहली यात्रा में नहीं हुए थे। पार्टी पहली यात्रा की सफलता से बहुत उत्साहित है। पार्टी नेताओं लगता है कि 4,000 किलोमीटर की पहली यात्रा ने उसकी छवि को बेहतर किया है और उसे भाजपा के सामने सबसे मज़बूत विपक्षी दल के रूप में खड़ा कर दिया है।
सोनिया गाँधी को लेकर अटकलें
भारत की राजनीति में कहा जाता है कि हरकिशन सिंह सुरजीत के बाद यदि किसी नेता की बात का गैर भाजपा विपक्ष में सबसे ज़्यादा वजन रहा तो वह सोनिया गाँधी हैं। न सिर्फ़ कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, बल्कि बतौर यूपीए अध्यक्ष भी सोनिया गाँधी विपक्ष की एकजुटता को लेकर सक्रिय रही हैं। अब रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में सोनिया गाँधी ने जिस तरह कहा कि अपनी उनके लिए भारत जोड़ो यात्रा के साथ अपनी पारी ख़त्म करने से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता उससे यह कयास लग रहे हैं कि क्या सोनिया गाँधी राजनीतिक संन्यास की तरफ़ जा रही हैं?
स्पष्ट नहीं है लेकिन उनकी अपेक्षाकृत कम सक्रियता संकेत तो करती है कि वह अब पार्टी और यूपीए के मामलों में कम सक्रिय रहें। हो सकता है वह कोई पुस्तक लिखें। वैसे कांग्रेस और गैर भाजपा विपक्ष को सोनिया गाँधी की मौज़ूदगी की ज़रूरत अभी रहेगी, क्योंकि उसके पास सभी को एक मंच पर ला सकने की क्षमता वाला सोनिया गाँधी जैसा कोई नेता नहीं है। एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि सोनिया गाँधी 2024 से पहले राजनीति से अलग नहीं हो सकतीं, क्योंकि उनकी इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।