फिलहाल कोरोना वायरस का कहर कम होता नहीं दिख रहा है। इससे बचने का फिलवक्त एक ही तरीका है कि घर में रहा जाए। पूर्णबन्दी से हमें कुछ वक्त मिल सकता है, जिसमें कोरोना वायरस का टीका और दवा विकसित किया जा सकता है। वैज्ञानिक लगातार इसके लिए कोशिश कर रहे हैं। भारत समेत कई देशों में इसके लिए परीक्षण का काम चल रहा है। उम्मीद है कि जून महीने तक इस मोर्चे पर सकारात्मक परिणाम दिखने लगेंगे।
उम्मीद है कि पूर्णबन्दी के बाद सभी क्षेत्रों में सुचारू रूप से काम शुरू होने में ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा। क्योंकि अभी कच्चे या तैयार माल की सिर्फ आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है। इसलिए एक या दो सप्ताह के अन्दर दोबारा उत्पादन एवं वितरण का काम शुरू हो सकता है। हाँ, हालात सामान्य होने में छ: महीने लग सकते हैं; क्योंकि पूर्णबन्दी से आॢथक गतिविधियाँ पूरी तरह से बन्द हो गयी हैं।
कोरोना महामारी की वजह से चीन को छोडक़र लगभग दुनिया के सभी देशों की अर्थ-व्यवस्था खस्ताहाल हो गयी है। भारत में मज़दूर, पेशेवर, स्व-रोज़गार करने वाले, किसान आदि को पूर्णबन्दी की वजह से या तो अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ा है या भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है।
रोज़ कमाने-खाने वालों के लिए तो भूखे मरने की नौबत आ गयी है। लिहाज़ा ऐसे वर्गों और अन्य कामगारों को सरकार और कम्पनियों द्वारा राहत देने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि यही वह वर्ग है, जो अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने में अपनी अहम भूमिका निभा सकता है।
असंगठित क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित
पूर्णबन्दी के कारण असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग अपने रोज़गार से महरूम हुए हैं। सबसे अधिक दिहाड़ी मज़दूर प्रभावित हुए हैं। अधिकांश लोग कई दिनों से भूखे हैं। कई भूख से मौत के मुँह में समा चुके हैं। कई भूख और तंगी से तंग आकर आत्महत्या कर चुके हैं। सरकार प्रभावित लोगों को राहत देने की कोशिश कर रही है; लेकिन प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।
कार्यस्थल पर काम करना आसान नहीं
ज़रूरी सेवाएँ मुहैया कराने वाले सरकारी और खुदरा क्षेत्र इस महामारी के दौरान भी अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। इन क्षेत्रों में काम करने वालों की चिन्ता और तनाव का स्तर उन कर्मचारियों से ज़्यादा है, जो घर से काम कर रहे हैं। कार्यस्थल पर जाकर काम करने वाले कर्मचारियों को अपने सहकॢमयों या ग्राहकों से संक्रमित होने का डर है। उन्हें इस बात का भी डर है कि मुश्किल में उन्हें और उनके परिवार को किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं मिलेगी।
मनोबल बनाये रखने की ज़रूरत
कर्मचारियों में अपने भविष्य को लेकर चिन्ता बढ़ गयी है। बहुत सारे कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर सता रहा है। कई कर्मचारियों के वेतन में कटौती भी की गयी है। ऐसे में कर्मचारियों को अवसाद से बचाने के लिए कम्पनी द्वारा उनका उत्साहवर्धन करने की ज़रूरत है। कर्मचारियों को आॢथक सुरक्षा देने से भी मामले में लाभ मिल सकता है।
खर्च पर नियंत्रण
मौज़ूदा स्थिति में किसकी नौकरी जाएगी और किसकी बचेगी? यह कहना मुश्किल है। इसलिए खर्च पर नियंत्रण रखना ज़रूरी है। हालाँकि, पूर्णबन्दी में घर पर रहने से खर्च में काफी कमी आयी है; फिर भी मामले में एहतिहात बरतने की ज़रूरत है। फिजूलखर्ची से बचने से खर्च के मोर्चे पर स्थिति नियंत्रण में रह सकती है। पैसे से हर खुशी नहीं खरीदी जा सकती। दुनिया में खुश रहने के बहुत से तरीके हैं। बिना खर्च के भी खुश रहा जा सकता है।
समय का सदुपयोग
बहुत सारे कर्मचारी जो अवकाश पर हैं या जो नौकरी या स्व-रोज़गार के जाने या बन्द होने से घर में खाली बैठने वाले इस समय का उपयोग अपनी रुचियों को विकसित करने में कर सकते हैं। क्योंकि हर इंसान में कुछ-न-कुछ खूबी होती है। व्यस्त रहने से वे अवसादग्रस्त होने से भी बच सकेंगे। कुछ कम्पनियाँ कर्मचारियों के व्यक्तित्त्व विकास के लिए पेशेवरों की मदद ले रही हैं। कम्पनियाँ कर्मचारियों को योग करने की सलाह भी दे रही हैं। योग करने से कर्मचारियों का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।
छोटे कर्मचारियों को सुरक्षा देने की ज़रूरत
इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस के शीर्ष प्रबन्धन ने अपने वेतन में 35 फीसदी कटौती का फैसला किया है। खर्चों पर नियंत्रण के लिए दूसरी कॉर्पोरेट कम्पनियाँ भी कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर रही हैं। लेकिन इस कठिन समय में आॢथक रूप से समर्थ कम्पनियों को छोटे कर्मचारियों के वेतन में कटौती नहीं करनी चाहिए। छोटे कर्मचारियों को अभी मदद की ज़रूरत है। पूर्णबन्दी की अवधि बढऩे से आगामी महीनों में कर्मचारियों के वेतन, सुविधाएँ एवं अन्य लाभ में कटौती की जा सकती है। कर्मचारियों को नौकरी से निकालने से कम्पनियों को बचना होगा। क्योंकि अनुभवी कर्मचारी ही कम्पनी के पुनर्वास में मददगार होंगे। कम्पनियों को इसका दूसरा फायदा यह मिलेगा कि कर्मचारी हमेशा के लिए कम्पनी के प्रति वफादार हो जाएँगे।
घर से काम करने की परम्परा को बल
कोरोना वायरस के कारण वर्क फ्रॉम होम की परम्परा को सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी अपनाया जा रहा है।
हालाँकि, सभी क्षेत्रों में घर से ऑफिस का काम करना मुमकिन नहीं है। जिनके बच्चे छोटे हैं, उनके लिए भी घर से काम करना आसान नहीं है। आईटी क्षेत्र में पहले से ही घर से काम किया जा रहा था। इसलिए आईटी क्षेत्र वाले को घर से काम करने में किसी प्रकार की समस्या नहीं आ रही है। इस परम्परा से लम्बी अवधि में फायदा होने की सम्भावना है। क्योंकि इससे कर्मचारियों की उत्पादकता, लॉजिस्टिक लागत में कमी और ऑफिस के खर्च में कमी आ सकती है।
पूर्णबन्दी से बढ़ेगी मुश्किलें
फॉच्र्यून ब्रांड के खाद्य तेल के उत्पादन में लॉकडाऊन के कारण लगभग 40 फीसदी की गिरावट आयी है। यह ब्रांड प्रतिदिन लगभग 8,000 टन खाद्य तेल का प्रसंस्करण और उत्पादन करती है। इस वजह से इसकी आपूर्ति में गिरावट दर्ज की गयी है। होटल, रेस्तरां और कैफेटेरिया बन्द होने से खाद्य तेलों की बिक्री में भी 25 फीसदी की कमी आयी है। हालाँकि, माँग के मुकाबले उत्पादन में ज़्यादा कमी आयी है। इसलिए माँग की तुलना में आपूर्ति कम हो गयी है। फॉच्र्यून ब्रांड के अन्य खाद्य पदार्थों, जैसे- आटा, चावल, दाल, बेसन और सोयाबीन की बिक्री में तेज़ी आने से इनके स्टॉक में निरंतर कमी आ रही है। दूसरे खाद्य उत्पादन करने वाली कम्पनियों एवं दूसरे क्षेत्रों का भी कमोबेश यही हाल है। आज हर क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूर एवं कामगार या तो घर में हैं या सडक़ों पर भूखे-प्यासे दर-बदर की ठोकर खाने के लिए मजबूर हैं।
निष्कर्ष
सरकार ने समाज के कमज़ोर तबकों की बेहतरी के लिए पहल की है, लेकिन उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है। इस क्रम में कम्पनियों को अपने कर्मचारियों एवं मज़दूरों को आॢथक एवं सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की ज़रूरत है। क्योंकि इस महामारी में कामगारों को ज़िन्दगी और आजीविका के बीच में से एक का चुनाव करना है। यदि कम्पनी प्रबन्धन कर्मचारियों की सुरक्षा, भोजन और रहने आदि की सुविधा उपलब्ध कराता है, तो उनका भरोसा कम्पनी पर बढ़ेगा और वे कम्पनी की बेहतरी के लिए ताउम्र कोशिश करेंगे। अन्यथा स्थिति सामान्य होने के बाद भी कम्पनी और सरकार के लिए मज़दूरों और कामगारों को तुरत-फुरत वापस काम पर बुलाना आसान नहीं होगा।