मनोज की उम्र 20 साल है। जन्म बिहार में हुआ और 15 साल की उम्र में अपना सूबा छोड़ मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रोज़ी-रोटी की तलाश में आ गया। वह ख़ुद को सातवीं पास बताता है। इंदौर जो कि मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी है और केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल है, लगातार छठी बार भारत का सबसे स्वच्छ शहर यानी नंबर वन पर है, वह इंदौर मनोज जैसे सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों के लिए भी विशेष है। कारण-यह वह जगह है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। अपने मूल घर से दूर रहना मजबूरी है; लेकिन उनके पास कोई ठोस विकल्प भी नहीं है। भारत में दस में से कम-से-कम दो पुरुषों को रोज़गार-धंधे या किसी दूसरी वजह से अपने जन्म स्थान या अपने निजी घर से निकलना पड़ता है।
महिलाएँ भी प्रवासी होती हैं। हाल ही में नेशनल सैंपल सर्वे 2020-2021 के जारी आँकड़ों के अनुसार, ग्रामीण भारत में 39 फ़ीसदी पुरुष प्रवासी और शहरी भारत में 56 फ़ीसदी लोग रोज़गार सम्बन्धी कारणों से घर छोड़ते हैं। महिलाओं में घर छोडऩे का प्रमुख कारण विवाह है। 10 में से क़रीब नौ इसी वजह से अपना घर छोड़ देती हैं।
ग़ौरतलब है कि प्रवास की स्थिति समाज में लगातार चली आ रही है। लोग अपनी रोज़ी-रोटी, बेहतर शिक्षा, रहन-सहन और पारिवारिक स्तर को ऊँचा उठाने के मक़सद से प्रवास करते हैं। दरअसल देश की जनगणना में प्रवास की गणना दो आधारों पर की जाती है। पहला जन्म का स्थान यदि गणना के स्थान से भिन्न है, तो इसे जीवन पर्यंत प्रवासी के रूप में निवास का स्थान जाना जाता है। दूसरा निवास का स्थान-यदि निवास का पिछला स्थान गणना के स्थान से भिन्न है, इसे निवास के पिछले स्थान से प्रवासी के रूप में जाना जाता है। प्रवास मुख्य दो प्रकार का होता है। पहल आंतरिक प्रवास यानी देश के भीतर एक स्थान से दूसरी जगह जाना और दूसरा अंतरराष्ट्रीय प्रवास अर्थात् देश के बाहर। आंतरिक प्रवास के तहत चार वर्ग हैं। पहला ग्रामीण से ग्रामीण, दूसरे ग्रामीण से शहर की ओर। तीसरा-नगरीय से नगरीय और चौथा-नगरीय से ग्रामीण। प्रवासी भारतीयों के आँकड़े जनगणना के आँकड़े भी बताते हैं। देश में 2021 में जनगणना होनी थी, क्योंकि देश में हर साल 10 साल के बाद जनगणना होता है। देश में 2011 में जनगणना हुई थी। वर्ष 2011 जनगणना के मुताबिक, देश में 4.5 करोड़ प्रवासी श्रमिक थे। इन आँकड़ों से पता चलता है कि उस समय उत्तर प्रदेश और बिहार अंतरराज्यीय प्रवासियों के सबसे बड़े स्रोत थे, यानी यहाँ से लोग दूसरे राज्यों में जाते थे। महाराष्ट्र और दिल्ली में सबसे अधिक प्रवासी आकर बसते थे।
नवीनतम नेशनल सैंपल सर्वे मल्टीपल इंडिकेटर (2020-2021) के आँकड़ों पर नज़र डाले, तो पता चलता है कि देश की राजधानी दिल्ली में सबसे अधिक लोग अर्थात् 21.3 फ़ीसदी लोग बाहर से आये हैं। उसके बाद हिमाचल प्रदेश है, जहाँ यह संख्या 8.5 फ़ीसदी है। पंजाब में यी दर 8.1 तो उत्तराखण्ड व केरल में 7.9 फ़ीसदी है। गुजरात में 3.9 फ़ीसदी है। यह आँकड़े तो एक राज्य से दूसरे राज्य में गये लोगों के बारे में है; लेकिन राज्य के अंदर भी लोग रोज़ी-रोटी की तलाश व अन्य कारणों से शिफ्ट होते हैं। ऐसे राज्यों की सूची में हिमाचल प्रदेश नंबर वन पर है। यहाँ ऐसे लोगों की संख्या 37.2 फ़ीसदी है और तेलंगाना में 33 फ़ीसदी। तमिलनाडु में 31.9 और आंध्र प्रदेश में 31.8 फ़ीसदी है।
केरल में 30.6 व महाराष्ट्र में 30.1 फ़ीसदी है। रोज़गार के लिए लोग कहाँ-से-कहाँ जाते हैं, यह जानना भी ज़रूरी है। उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र में 5.7 फ़ीसदी लोग जाते हैं। उत्तर प्रदेश से दिल्ली आने वालों की संख्या 4.1 फ़ीसदी है। इसी राज्य से पंजाब जाने वालों का फ़ीसदी 1.9 है। उत्तर प्रदेश से गुजरात 2.5 फ़ीसदी लोग जाते हैं। बिहार से पश्चिम बंगाल 2.3 फ़ीसदी लोग जाते हैं। देश में गाँवों से ज़्यादा लोग बाहर काम की तलाश में जाते हैं। भारत की पहचान एक ग्रामीण बहुल देश के तौर पर है।
बेशक भारत की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, सैन्य हथियारों का आयात करने में विश्व में पहले नंबर पर है; लेकिन एक हक़ीक़त यह भी है कि गाँवों में आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार आदि को लेकर बेहतर तस्वीर सामने नहीं आती है। गाँवों से शहरों की ओर पलायन के प्रमुख कारणों में शहरों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना है। ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद भारत ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए औद्योगीकरण का रास्ता अपनाया और शहरों को इसके लिए चुना गया। अधिकांश उद्योग शहरों या उसके आस-पास लगाये गये जिसके कारण ग्रामीण लोगों को रोज़गार की तलाश एवं आजीविका के लिए शहरों से पलायन आवश्यक हो गया। यहाँ प्रसंगवश इस बाबत शहरी श्रम आयोग की इस टिप्पणी का ज़िक्र किया जा रहा है- शहरी श्रम आयोग ने लिखा है कि ‘प्रवास की प्ररेक शक्ति एक सिरे से आती है, अर्थात् गाँवों से औद्योगिक श्रमिक नागरिक जीवन के आकर्शण से शहरों में नहीं जाता और न ही उसके पास महत्त्वाकांक्षा होती है। शहर स्वयं उसके लिए आकर्शण का बिंदु नहीं है और गाँव छोडऩे के समय उसके मन में जीवन की आवश्यकताओं की प्राप्ति के अतिरिक्त और कोई भावना नहीं रहती। बहुत कम ही औद्योगिक श्रमिक नगर में रहना चाहेंगे। यदि उन्हें गाँवों में ही जीवन-यापन के लिए पर्याप्त अन्न व वस्त्र मिल जाएँ, तो वह नगर की ओर आकर्षित नहीं हों।’
गाँवों में अच्छे स्कूल भी नहीं होते। आजकल अभिभावक बच्चों की अच्छी शिक्षा व उच्च शिक्षा के लिए भी शहरों में पलायन कर रहे हैं। गाँवों में युवा पीढ़ी के लिए रोज़गार के साधन उतने नहीं हैं, जितने शहरों में मौक़े हैं। और गाँवों की तुलना में शहरों में दिहाड़ी भी अधिक मिलती है। लेकिन यह बात सब जगह लागू नहीं होती। केवल 44 फ़ीसदी प्रवासियों की कमायी में ही बढ़त होती है। बिहार व हिमाचल प्रदेश ऐसे राज्य है, जहाँ से बाहर गये 64 फ़ीसदी लोग ऐसे हैं, जो काम व अधिक कमाने के लिए घर से बाहर दूसरी जगह गये; लेकिन उनकी कमायी नहीं बढ़़ी। मणिपुर में 92 फ़ीसदी ऐसे प्रवासी हैं, जिनकी आय जगह बदलने के बावजूद नहीं बढ़ी हैं। केरल अनय राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत विकसित राज्य है; लेकिन कड़वी हक़ीक़त यह है कि वहाँ जाने से कमायी नहीं बढ़ती है।
झारखण्ड के समाजसेवी अशोक भगत का मानना है कि समाज में श्रम का पूरा सम्मान नहीं है। बहुत-से युवाओं व लोगों को जो काम अपने घर-गाँव करने में शर्म महसूस होती है, उन्हें वही काम घर से दूर जाकर करने में कोई परेशानी नहीं होती। एक बात और भी ग़ौरतलब है कि प्रवासन के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव होते हैं। प्रवासन श्रम की आपूर्ति व माँग के बीच के $फासलों को भरता है। कुशल श्रम, अकुशल श्रम और सस्ते श्रम का आवंटन करता है। प्रवासियों की आर्थिक कमायी से मूल स्थानों के बाज़ार को $फायदा होता है। उपभोक्ता व्यय में वृद्धि होती है।
स्वास्थ्य, शिक्षा व संपत्ति निर्माण में निवेश होता है। प्रवासन प्रवासियों के सामाजिक जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है। क्योंकि वे नयी संस्कृतियाँ, रीति-रिवाज़ों और भाषाओं के बारे में सीखते हैं, जो लोगों के बीच भाईचारे को बेहतर बनाने में मदद करते हैं और अधिक समानता व सहनशीलता सुनिश्चित करते हैं। इसके नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। मसलन गंतव्य स्थान पर प्रवासियों के अधिक संख्या में आने से उस ख़ास जगह पर नैकरी, घर, स्कूल आदि की सुविधा मुहैया कराने का दबाव बढ़ जाता है और वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों और सेवा क्षेत्र पर अधिक दबाव पडऩे लगता है। बड़े पैमाने पर प्रवासन के कारण प्रभावित क्षेत्रों में स्लम में वृद्धि होने लगती है। ऐसे इलाक़ों में प्रदूषण भी बढ़ जाता है। यह भी ध्यान देने वाला अहम बिंदु है कि अधिकांश प्रवासी श्रमिक ठेकेदारों के अधीन काम करते हैं। इस प्रथा में उनका बहुत शोषण होता है।
रियल एस्टेट व हाईवे निर्माण के चलते प्रवासी श्रमिकों को निर्माण क्षेत्र में काम मिल रहा है। बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड व ओडिशा से श्रमिक विभिन्न राज्यों में यह काम कर रहे हैं। यहाँ तक कि बीते कुछ समय से सीमा पर जारी सडक़ निर्माण में भी इन्हीं राज्यों के मज़दूर काम करते हैं। प्रवासन एक वैश्विक प्रक्रिया है। सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा (प्रवासियों सहित किसी को पीछे नहीं छोडऩा के मूल सिद्धांत के साथ) पहली बार स्थायी विकास में प्रवासन के योगदान को मान्यता देता है। प्रवासन के लिए सतत विकास लक्ष्य का केंद्रीय संदर्भ लक्ष्य 10.7 में दिया गया है, ताकि व्यवस्थित, सुरक्षित, नियमित और ज़िम्मेदार प्रवास और लोगों की गतिशीलता को सुगम बनाया जाए, जिसमें नियोजित और अच्छी तरह से प्रबन्धित प्रवासन नीतियों के कार्यान्वयन शामिल हैं।