एडवोकेट मनन बत्रा ने पहले ही ईमेल के ज़रिये रेलवे को किया था आगाह
ओडिशा के बालासोर में 2 जून को शाम क़रीब 6:51 बजे बहनागा स्टेशन के पास कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841) और मालगाड़ी समेत तीन ट्रेनों के बीच हुई दुर्घटना से रेलवे और केंद्र सरकार कई सवालों के घेरे में हैं। इस दुर्घटना में पौने तीन सौ से ज़्यादा यात्रियों की मौत और साढ़े ग्यारह सौ से ज़्यादा लोगों के घायल होने की बात सरकार ने स्वीकार की है। इस हादसे की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस रेल दुर्घटना में 40 लोगों की मौत दुर्घटना की वजह से नहीं, बल्कि कथित रूप से करंट लगने की वजह से हुई है। यह दावा यूँ ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसकी वजह ये है कि बचाव में लगी टीमों को 40 ऐसे शव मिले हैं, जिनके शरीर पर किसी प्रकार के चोट के निशान नहीं हैं।
लोग सवाल उठा रहे हैं कि हर ट्रेन को हरी झंडी दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर क्या कहेंगे? ऐसा नहीं है कि इस घटना से सरकार में खलबली नहीं मची। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना की जानकारी ली, और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी बालासोर का दौरा किया। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अब तक रेल की छोटी से छोटी दुर्घटना पर मंत्री घटनास्थल पर पहुँचते थे और नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा दे देते थे, और यहाँ पर रेल मंत्री के घटनास्थल पर पहुँचने को चाटुकार मीडिया उछल-उछलकर ऐसे महिमामंडित कर रहा है, जैसे इससे पहले रेल दुर्घटना पर किसी मंत्री ने ऐसी नैतिकता दिखायी ही नहीं हो। जबकि ड्रामेबाज़ी किसी से छिपी नहीं है। बहरहाल, इस दुर्घटना में एक जो सबसे बड़ी बात सामने आ रही है, वो यह है कि उत्तर प्रदेश के एडवोकेट मनन बत्रा ने घटना से का$फी पहले अपने पूरे परिचय और पते के साथ प्रमोद कुमार (महाप्रबंधक/कोर, प्रयागराज) को एक ईमेल के ज़रिये अलर्ट लेटर लिखकर रेल व्यवस्था और यात्रियों की सुरक्षा को लेकर चिन्ता ज़ाहिर की थी। उन्होंने ‘भारत के निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा और जीवन के लिए गंभीर ख़तरा’ विषय से प्रमोद कुमार को ईमेल भेजी, जिसमें उनके अलावा रेलवे के अन्य कई अधिकारियों- राकेश कुमार गुप्ता (पीसीईई/डब्ल्यूसीआर/मुख्यालय), रंजन श्रीवास्तव (पीसीईई/ईसीआर/मुख्यालय), सुरेश कुमार (सीपीएम/इलेक्ट./डब्ल्यूसीआर/कोटा) को अटैच किया गया था।
इस ईमेल में एडवोकेट मनन बत्रा ने लिखा कि भारत के निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा और जीवन के लिए गंभीर ख़तरों को लापरवाही पूर्ण कार्यों और आईईसी मानकों की बेतुकी व्याख्याओं के कारण होने वाले गंभीर ख़तरों को महसूस करने के बाद आवेदक उक्त पत्र लिखने के लिए विवश हैं। उन्होंने लिखा कि रेलवे में ऐसे उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जो आईईसी मानकों और आरडीएसओ विनिर्देशों जैसे वैक्यूम सर्किट ब्रेकर और वैक्यूम इंटरप्टर के अनुरूप नहीं हैं। पश्चिम रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, पूर्व रेलवे और उत्तर मध्य रेलवे के अनुभागों में सब-सेक्शनिंग पोस्ट (एसएसपी) (2&25 केवी सिस्टम स्कॉट कनेक्टेड ट्रांसफार्मर), जो 132/55 केवी ट्रैक्शन सब स्टेशन, सेक्शनिंग पोस्ट (एसपी) के इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) अनुबंध में पेश किये गये हैं। ईमेल में बिजली से ख़तरे को भी लिखा गया है। एडवोकेट बत्रा ने कहा है कि भारत सरकार ने एकीकृत कर्षण की नीति के रूप में अपने पूरे नेटवर्क का विद्युतीकरण करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा भारतीय रेलवे के ट्रैक्शन पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को बढ़ाने के लिए बड़े निवेश की योजना बनायी गयी है, ताकि वंदे भारत जैसे उच्च हॉर्स पॉवर वाले लोकोमोटिव और ट्रेन सेट को सपोर्ट किया जा सके। रोलिंग स्टॉक प्लेटफॉर्म को उच्च शक्ति की आवश्यकता होती है, जिसे केवल 2&25 एटी सिस्टम नामक प्रणाली के माध्यम से वितरित किया जा सकता है। डीएफसीसीआईएल के दोनों कॉरिडोर इस सिस्टम पर हैं और गोल्डन क्वाड्रिलेटरल्स को अब इस इलेक्ट्रिफिकेशन सिस्टम में अपग्रेड किया जा रहा है। विद्युत सुरक्षा और नियामक कोणों से विद्युतीकरण की दो प्रणालियों (25 केवी पारंपरिक और 2&25 केवी एटी सिस्टम) में अंतर का अध्ययन करते समय मुझे कुछ परेशान करने वाले तथ्य मिले हैं। भारतीय नागरिक और भारतीय रेलवे के उपयोगकर्ताओं के रूप में मैं आपको उन तथ्यों से अवगत कराने के लिए अपना नैतिक दायित्व मानता हूँ, जो ईआईजी (सरकार के विद्युत निरीक्षक) प्रमाणन के अनुदान / प्रासंगिकता को प्रभावित करेंगे। यदि ईआईजी अनुदान रोक दिया जाता है, तो यह निवेश को ख़तरे में डाल देगा। यदि भारतीय रेलवे सामान्य रूप से व्यवसाय जारी रखने का निर्णय लेता है, तो यह गम्भीर रूप से यात्रियों और उन लोगों के जीवन और अंगों को ख़तरे में डाल देगा जो विद्युतीकृत पटरियों के आस-पास रहते हैं, जिससे ईआईजी प्रमाणीकरण निष्फल हो जाता है।
माना जाता है कि ओवर हेड उपकरणों (ओएचई) की बेहतर सुरक्षा और उप स्टेशनों में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न घटकों की सुरक्षा के लिए आरडीएसओ ने विशिष्टता सं. डबल पोल वैक्यूम सर्किट ब्रेकर और वैक्यूम इंटरप्टर के लिए सी स्लिप नंबर-1, जो आईईसी 62271-1 और आईईसी 62505 के मानकों को पूरा कर रहा है। विनिर्देश कुछ विशेष विद्युत परीक्षणों को संदर्भित करते हैं, जो 2&25 केवी सिस्टम में उपयोग किये जाने वाले उपकरणों के जीवन चक्र, विश्वसनीयता और सुरक्षा को परिभाषित करते हैं।
बत्रा ने लिखा है कि ट्रैक्शन पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की व्यवहार्यता के केंद्र में लाइनों को बिजली की आपूर्ति को डिस्कनेक्ट करने की क्षमता है। पर्याप्त सुरक्षा मार्जिन रखना विद्युत प्रणालियों का आदर्श रहा है। मुझे यह बताया गया है कि भारतीय रेलवे के अधिकारी और ईपीसी ठेकेदार उन वेंडरों का उपयोग करने पर ज़ोर दे रहे हैं, जिन्होंने ये परीक्षण नहीं किये हैं। साल 2013 में आरडीएसओ की विक्रेता निर्देशिका में 1&25 केवी एटी सिस्टम के लिए स्वीकृत स्रोत डिफॉल्ट रूप से 2&25 केवी एटी सिस्टम के लिए स्वीकृत स्रोत की स्थिति के साथ उन सभी महत्त्वपूर्ण परीक्षणों के ‘वेवर-ऑफ’ देने के बाद दिये गये थे, जिन्हें एक स्विचगियर से गुज़रना पड़ता है। भारतीय रेलवे विद्युतीकरण नेटवर्क में कम माँग के बहाने ओएचई की सुरक्षा को अधिकतम करने के लिए। यहाँ यह उल्लेख करना अनावश्यक है कि स्विचगियर के प्रोटोटाइप परीक्षण विद्युत क्षेत्र में उपलब्ध व्यापक डेटा से बहुत अच्छी तरह से निर्धारित किये गये हैं। ये परीक्षण, जिनमें सहनशक्ति शामिल है, विशेष परीक्षण जो लीडिंग पॉवर फैक्टर पर रुकावट का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें एक ब्रेकर के सामने आने वाली परिचालन स्थितियों के पूरे सरगम को शामिल किया जा सकता है।
एडवोकेट बत्रा ने अपनी ईमेल में ख़ास तौर पर इसका ज़िक्र किया है कि इससे भविष्य में करंट दुर्घटना का ख़तरा है। उन्होंने लिखा है कि यहाँ आउट ऑफ फेज टेस्ट पर टिप्पणी करना महत्त्वपूर्ण है। आरडीएसओ विशिष्टता में निर्दिष्ट कारक 1.5 है, जबकि नवीनतम में आईईसी मानक इसे बढ़ा दिया गया है। 120 डिग्री एंगल फैक्टर 1.73 है (जो ओपन डेल्टा फीड को कवर करता है) और 180 डिग्री एंगल फैक्टर के लिए 02 (स्कॉट-कनेक्टेड फीड के लिए) है। हम समझते हैं कि संवर्धित टीआरडी नेटवर्क पर प्रमुख फीड स्कॉट-कनेक्टेड ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करेगा, इस प्रकार आउट ऑफ फेज टेस्ट को कारकों के साथ आयोजित करने की आवश्यकता है।
एडवोकेट मनन बत्रा ने अपने शोध के दौरान मैंने भारतीय रेलवे के तकनीकी विंग द्वारा जाँच की गयी विद्युत दुर्घटनाओं की तस्वीरें देखीं, जहाँ अतीत में कोचों की छत पिघल गयी थी, क्योंकि बिजली नहीं काटी जा सकती थी। इस प्रकार, लाखों लोगों के जीवन की चिन्ता के कारण नागरिकों के और बड़े पैमाने पर जनता के हित में अधोहस्ताक्षरी एक अधिवक्ता और क़ानूनी बिरादरी का एक हिस्सा होने के कारण 2&25 केवी में उपयोग किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण उपकरणों में आरडीएसओ विनिर्देशों और आईईसी मानकों की धज्जियाँ उड़ाने के शत्रुतापूर्ण कृत्यों को उजागर करने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं। एडवोकेट बत्रा ने अधिकारियों को लिखा था कि आशा है कि आपके कार्यालय द्वारा पिछले पैराग्राफों में माँगी गयी आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये जाएँगे, जो यात्रियों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धताओं और दायित्वों को पूरा करेंगे। इस ईमेल को भेजने के बावजूद रेलवे की ओर से इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया और आख़िरकार इतनी बड़ी दुर्घटना हुई, जिसमें कथित रूप से 40 लोगों की करंट लगने से मौत हो गयी।
जैसा कि विदित है कि भारतीय रेलवे, दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है, लम्बे समय से रेलवे की बुनियादी सुविधाएँ ख़राब रही हैं, जो पिछले कई वर्षों से रेल दुर्घटनाओं का कारण रही हैं। भारतीय ट्रेनों में प्रतिदिन क़रीब एक-सवा करोड़ लोग हर दिन सफ़र करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, हिन्दुस्तान में हर साल क़रीब 300 रेल दुर्घटनाएँ होती हैं। रेलवे के आँकड़े बताते हैं कि पिछले पाँच वर्षों में 586 रेल दुर्घटनाएँ हो देश में हो चुकी हैं, जिनमें अधिकांश दुर्घटनाएँ पटरियों के क्षतिग्रस्त होने के चलते हुई हैं। सवाल यह है कि जिन ट्रेनों में जानवरों की तरह लोगों को ढोया जाता है, वो रेलवे घाटे में किस प्रकार से चलता है? दूसरा सवाल यह है कि आधुनिकता की बातें तो होती हैं; लेकिन हमारी रेल व्यवस्था आज भी आधुनिक नहीं हो सकी है। भले ही सरकार ने कुछ वंदे भारत जैसी तेज़ स्पीड वाली ट्रेनें पटरियों पर उतार रखी हों।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)