मैला आंचल और परती-परिकथा में रेणु ने जिस जातीय व्यवस्था की बात की थी वह उनके गांव औराही हिंगना में आज भी वैसी ही दिखती है. संजीव चंदन की रिपोर्ट
पूर्णिया में प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य अधिवेशन में शिरकत करने के दौरान रेणु जी के गाँव जाना संभव हुआ. औराही हिंगना को, रानी गंज के इलाके ( मैला आँचल में मेरीगंज ) को, जहाँ फणीश्वर नाथ रेणु का पुश्तैनी घर है, जो मैला आँचल और परती-परिकथा सहित उनकी कई कहानियों की आधारभूमि है, जहां पंचलैट के टोले हैं, जहाँ तीसरी कसम के जीवंत पात्र और कसबाई तथा ग्रामीण समाज की उपस्थिति है, को एक बार देखने की ललक पुर्णिया या अररिया जाने वाले हर साहित्य प्रेमी में होती है.
औराही हिंगना में ‘ रेणु स्मृति भवन ‘ के लिए एक करोड़ रुपये की व्यवस्था हो चुकी है, और पटना में एक पार्क में रेणु जी की एक प्रतिमा का अनावरण चार मार्च को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों होने वाला है.
पूर्णिया से पटना तक, रेणु जी के परिवार से मिलकर ख़ुशी इस बात की हुई कि अब उनका परिवार रेणु जी की विरासत को समझ रहा है, उसे संजोने में लगा है. राज्य सरकार भी परिवार की भावनाओं के आदर, बिहारी अस्मिता के निर्माण, महान रचनाकार के सम्मान और धानुक मंडल जाति के वोट वैंक की हिफाजत के मिश्रित भाव में उदार दिख रही है. औराही हिंगना में ‘ रेणु स्मृति भवन ‘ के लिए एक करोड़ रुपये की व्यवस्था हो चुकी है, और पटना में एक पार्क में रेणु जी की एक प्रतिमा का अनावरण चार मार्च को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों होने वाला है. ‘ रेणु स्मृति भवन ‘ का खांचा रेणु जी के छोटे बेटे ने खींच रखा है. लाइब्रेरी होगी, सेमिनार हल होगा, गेस्ट रूम होंगे, डिजिटल संग्रहालय होगा.
आलोचक वीरेन्द्र यादव का कहना है कि रेणु जी को राज्य सरकार से मिलता सम्मान सिर्फ महान रचनाकार को मिलता सम्मान नहीं है, धानुक मंडल की जनसांख्यिकी को साधने की कोशिश भी है . रेणु जी के गाँव की आबादी का शत प्रतिशत धानुक मंडल जाति का है, जिससे खुद रेणु जी आते थे तथा जो बिहार की अति पिछड़ी जाति है. पंचायत की 11 हजार आबादी का 60 फीसदी हिस्सा धानुक मंडल का ही, . शेष 20-20 फीसदी आबादी मुस्लिम और महादलित है. रेणु जी का सबसे बड़ा बेटा पद्मपराग वेणु इस जातीय समीकरण के कारण ही शायद इस इलाके से भाजपा के विधायक हैं.
औराही हिंगना की ओर जाते हुए नेशनल हाइवे शानदार है – सफ़र करते हुए रोड और भवनों के माध्यम से विकास के गणित में फंसा जा सकता है. हालंकि रेणु के गाँव तक जाने में लगभग तीन किलोमीटर लंबी सड़क पर ‘सुशासन’ की मेहरबानी अभी तक नहीं हुई है. हाँ, गाँव तक जाने के दो सड़कों में से एक पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का नाम जरूर अच्छे से खुदा है. लेकिन जो एक दूसरी सड़क पर , जिससे हम हिचकोले खाते, धूल उड़ाते रेणु जी के गाँव पहुंचे प्रधान मंत्री ग्राम सड़क की पट्टी तो लगी है लेकिन सड़क गायब है.
मैला आँचल में रेणु जी जाति समाज और वर्ग चेतना के बीच विरोधाभास की कथा कहते हैं. आज इस इलाके को मैला आँचल की दृष्टि से देखने पर जाति समीकरण और संसाधनों पर वर्चस्व की जातीय व्यवस्था उपन्यास के कथा समय के लगभग अनुरूप ही दिखता है. जलालगढ़ के पास ‘मैला आँचल ‘ के मठ का वर्तमान संस्करण दिखा, जिसके नाम पर आज भी सैकड़ो एकड़ जमीन है. वहीँ बालदेव के वर्तमान भी उपस्थित थे, जाति से भी यादव, नाथो यादव, जिनके जिद्दी अभियान से बिहार सरकार जलालगढ़ के किले का जीर्णोद्धार करने जा रही है. साधारण मैले कपडे में, थैला लटकाए आधुनिक बालदेव यानि नाथो ने किले की जमीन को कब्ज़ा मुक्त किया, वह भी अपनी ही जाति के किसी दबंग परिवार के कब्जे से.
रेणु जी के घर में अब उनके समय के अभाव नहीं है, रेणु जी की खुद की पुश्तैनी खेती 22 सौ बीघे की थी, जो अब सीलिंग के बाद कुछ सैकड़ों में सिमट गई है. इस विशाल भूखंड के मालिकाना के बावजूद रेणु जी के आर्थिक संघर्ष छिपे नहीं हैं -कारण ‘परती परीकथा’ -कोशी की बंजर भूमि- पटसन की खेती, वह भी अनिश्चित . हालाँकि खेत के कुछ भाग में रेणु जी के रहते, यानी 70 के दशक में धान की खेती संभव होने लगी थी. जमीन पर मालिकाना ‘भूमफोड़ क्षत्रियों’ ( मैला आँचल में व्यंग्यात्मक जाति संबोधन ) का है, मठों का है , कायस्थ विश्वनाथ प्रसाद तो कोई नहीं मिला कुछ घंटे की यात्रा में, लेकिन जलालगढ़ में ही साहित्यकार पूनम सिंह ( जो इस इलाके के होने के कारण हमारी गाइड थीं ) के भूमिहार परिवार ( सवर्ण ) के पास भी काफी जमीनी मालिकाना है. जातियां उपन्यास के कथा काल की हकीकत थीं और आज की भी.
(लेखक ‘स्त्रीकाल’ पत्रिका के संपादक हैं.)