आरिफ, सबसे पहले थोड़ा सूफीवाद और सूफी संगीत के बारे में बताएं.
सूफी है क्या? इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि अंदर से और बाहर से जो इंसान सूफी होता है वह रूह से पाक-साफ होता है. वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता. सूफी लोगों को जिंदगी की वह राह दिखाता है जिस पर चलकर इंसान को अपनी जिंदगी बशर करने और उसे अर्थपूर्ण बनाने में मदद मिलती है. सूफी अल्लाह का वह नेक बंदा है जिससे हर चीज, परिंदा, जानवर, दरख्त.. हर चीज महफूज रहती है. सूफी के कलाम प्यार-अमन और मोहब्बत का पैगाम होते हैं. हमारे जो सूफी संत हैं उन्होंने इंसानों को जीने की राह दिखाई है और आने वाले समय में जिंदगी को कैसे जीना है इसकी राह भी दिखाई है. सूफी संगीत इसी संदेश को लोगों तक पहुंचाने का जरिया है.
आपने हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों जगहों पर काम किया है. दोनों जगहों पर सूफीवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं. आप दोनों देशों की सूफी परंपरा में कोई अंतर पाते हैं या फिर दोनों एक ही धारा है.
देखिए, ये सारा संदेश जो दरवेशों और सूफी संतों ने दिया है वह सब एक ही है. इंसान तो एक ऐसे जमघट में रह रहा है जहां लालच और पैसे की दौड़ ही सब कुछ है. इंसान उसी दौड़ में लगा हुआ है. फिर एक चीज होती है सुकून. यह सुकून जो है वह सिर्फ एक दरवेश की दरगाह में ही मिल सकता है. वहां जाकर इंसान महसूस करता है कि यहां ठहराव है, शांति है. सारे सूफीवाद का यही सार है. हिंद और पाक में ऐसे बेशुमार सूफी पैदा हुए हैं जिनके सूफियाना कलाम ने इंसानियत की बेहतरी के फलसफे दिए हैं.
तो इसको क्या माना जाए? यह इस्लाम से अलग कोई धारा है या इस्लाम की ही कोई उपधारा है?
सूफीवाद की बुनियाद इस्लाम है. सूफीवाद उसका एक पहलू है जो कि पूरी दुनिया में जाता है. इसका मूल इस्लाम से है. जो सूफी इकराम हैं जैसे कि बाबा बुल्ले शाह, बाबा फरीद सरकार, बाबा लतीफ बटाई, यहां हिंद में अजमेर शरीफ के कलाम या निजामुद्दीन औलिया आदि ने जो दरस लिए हैं वह इस्लाम से लिए हैं. बल्कि अगर आप देखें तो इस्लाम के अलावा भी बाकी जो मजहब हैं दुनिया में, वे सभी शांति और अमन का ही संदेश देते हैं.
एक धारणा है कि इस्लाम और संगीत साथ-साथ नहीं चल सकते. पर हमने पाकिस्तान में एक से बढ़कर एक महान संगीतकार देखे हैं. गुलाम अली खान हैं, आबिदा परवीन हैं, नुसरत फतेह अली खान आदि. तो ये विडंबना एक साथ कैसे चलती है पाकिस्तान में? क्या इसकी वजह से आपको कभी कोई मुश्किल पेश आई?
नहीं, हम तो अपने मुल्क में बेहतरीन परफॉरमेंस कर रहे हैं, और सारे लोग हमें दिलोजान से चाहते हैं. हम वहां पर हिट होते हैं. हम सूफी महफिलों में जाते हैं. हमें तो आज तक किसी ने रोका-टोका नहीं है. बात यह है कि जब आप कोई भी चीज हद से बढ़कर करते हैं जिससे कि अश्लीलता झलकती हो तो स्वाभाविक रूप से हर कोई इसे पसंद नहीं करेगा. कुछ लोग बेहद नर्मदिल और रूढ़िवादी होते हैं जिनको इन चीजों से चोट पहुंचती है. सूफी आदमी भी इस तरह की चीजें पसंद नहीं करता है.
भारत में भी हमने देखा है कि कई बार कोई राजनीतिक समस्या खड़ी होते ही पाकिस्तान से आने वाले कलाकारों को यहां से वापस जाने का दबाव बनाया जाता है. कभी आपका इस तरह की चीज से सामना हुआ?
कलाकार जो होता है वह दो देशों के बीच ब्रिज बनाने का काम करता है. वह फनकार कहीं का हो. देशों के बीच विवाद होते रहते हैं. लेकिन इस चीज को इतना दिल से नहीं लगाना चाहिए. कभी भी कलाकार को दरकिनार नहीं करना चाहिए. आप देखिए कि कितनी भी कड़वाहट पैदा हो जाए लेकिन मेंहदी हसन साहब, गुलाम अली साब, नुसरत साब की आवाज को आप रोक नहीं सकते. वो तो यहां लोगों के दिलों पर राज करते हैं. इसी तरह से आप देखिए कि लता जी वहां पाकिस्तानियों के दिलों पर राज करती हैं. तो आप उनकी आवाजों को तो रोक नहीं सकते. खूब सुनते हैं लोग उन्हें. रफी साब को, किशोर कुमार को सुनते हैं. तो कहने का मतलब है कि कलाकार जो होता है वह सीमाओं से बंधा नहीं होता है, वह इनसे ऊपर है. वह अमन का पुजारी होता है. मेरे दादा जी सुनाया करते थे कि एक जंगल में आग लग गई तो वहां पर एक चिड़िया चोंच में पानी भर के पानी फेंक रही थी. तो किसी ने कहा कि ऐ कमलिए, ऐ जलिए तू ये क्या काम कर रही है. तेरी चोंच भर पानी से इस जंगल की आग क्या बुझेगी. तो चिड़िया ने कहा–मैं ये तो नहीं जानती कि मेरे पानी से इस जंगल की आग बुझेगी या नहीं बुझेगी, लेकिन आग बुझाने वालों का नाम जब लिया जाएगा तब सबसे पहले मेरा नाम लिया जाएगा कि मैंने इस आग को बुझाने की शुरुआत की थी. तो कलाकार यही काम करता है.
हिंदुस्तान में आपकी पहचान कोक स्टूडियो के जरिए बनी. उससे पहले यहां आपके प्रशंसकों की संख्या इतनी बड़ी नहीं थी. तो आपको क्या लगता है कि कोक स्टूडियो जैसे प्लेटफॉर्म जरूरी हैं? क्या ये कलाकार को सामने लाने का बेहतर जरिया हैं?
पाकिस्तान में सबसे पहले मैं 90 में हिट हुआ था. यूट्यूब पर मेरे गाने पहले से ही मौजूद थे. कोक स्टूडियो के जरिए दुनिया से मेरा वास्ता पड़ा. यह तजुर्बा बड़ा अच्छा रहा और लोगों ने मुझे पसंद भी किया. यह निश्चित रूप से बेहतर शुरुआत है. इससे आप अपने फन को दुनिया के सामने रख पाने में कामयाब होते हैं.
एक चीज और, आपका पहनावा बड़ा शानदार होता है और बहुत पसंद किया जाता है. तो यह निराला पहनावा सिर्फ आपका शौक है या इसका आपके सूफीवाद और अध्यात्म से कोई लेना-देना है?
आप दोनों चीजें ले सकते हैं. इसका जो रंग है काला वह तो मेरा शौक है. इसके अलावा डिजाइन करना होता है तो हमारी लोक दास्तानों में बड़ी मिसाल दी जाती है हीर रांझे की. ये बाल उसी रांझे के कैरेक्टर से लिए गए हैं. ये ढोलना जो है मिर्जा साहिबा की स्टोरी से ली हैं. ये मिर्जा साहिबान पहनते थे. ये जूता है तो हमारी धरती पर सिर्फ मेरे इलाके में ही बनते हैं. तो आज के दौर में इन्हें सिर्फ मैं ही पहनता हूं. इसी तरह से लांचा कुर्ता जो हमारा पहनावा था जो आज भी हमारे यहां लोग पहनते हैं, तो यह उन्हीं से लिया गया है. लोक दास्तानों में जो चीजें मौजूद हैं उन्हें मैं इस्तेमाल करता हूं. एक लोक फनकार के ऊपर लोक दास्तानों का बहुत असर होता है. इस तरह से तमाम लोककथाओं का टोटल किया जाए तो एक आरिफ लोहार बनता है और एक आलम लोहार बनता है.
आलम लोहार यानी आपके वालिद साब..
जी, मेरे वालिद साब.
मैंने सुना है कि आपने तमाम पंजाबी फिल्मों में भी काम किया है. उसका अनुभव कैसा रहा…
जी हां, मैंने पंजाबी की 47 फिल्मों में काम किया है. ये लोगों की चाहत थी. ये मेरी मां की दुआ थी. वो कहती थी कि तू मैंनूं बड़ा सोंणां लगदा है आरिफ तो तैनूं फिल्मा नुं कोई नहीं लैंदा. मां की दुआ मुझे नसीब हुई और मैंने इतनी सारी पंजाबी फिल्मों में काम किया.
एक और गजब की चीज आपके बारे में हमने सुना है कि आपने नॉर्थ कोरिया के सैन्य शासकों के सामने भी परफॉर्मेंस दी है. वह कैसे हुआ?
जी हां, वहां पर काफी मुल्क गए हुए थे. वहां भारत से भी मौसिकी के लोग गए हुए थे. तो मैं भी उन्हीं में से था.
तो क्या वहां पर आपकी भाषा और सूफी संगीत को समझने वाले लोग थे?
नहीं, वहां ऐसा तो नहीं था. कुछ भाषाएं होती हैं जिनकी तर्जुमानी तो नहीं हो सकती है, लेकिन वहां मौजूद लोगों को ये जरूर लगा कि मैं जो गा रहा हूं वह उनके दिलों को छूता है. मुझे वहां पर अवॉर्ड भी मिला.
जुगनी जो कि आपकी सबसे बड़ी पहचान बन गई है, उसके बारे में कुछ बताएं.
जुगनी जो है वह हमारे घराने का एक लफ्ज है जिसे हमारे वालिद साब ने सबसे पहले लिखा था. उससे पहले अगर आप कोशिश करें और ढूंढें तो इसका कोई रिकॉर्ड नहीं मिलेगा. कुछ लोगों ने जुबली के साथ जुगनी की पैरोडी करने की कोशिश की. यह स्वाभाविक है कि जब कोई चीज लोकप्रिय हो जाती है तो उससे कंपेयर करने की कोशिश की जाती हैं. कुछ लोगों ने कोशिश की कि यह उनके नाम हो जाए. कुछ चीजें होती हैं जो एक घराने से जन्म लेती हैं. लफ्ज एक घराने से जन्म लेता है. किसी न किसी ने तो पहली बार लफ्ज को जन्म दिया होगा तो मेरे वालिद साब ने सबसे पहले जुगनी लफ्ज नाम दिया रूह को. जो रूह महसूस करती है वही बयान करती है. इसके बाद यह लफ्ज पॉपुलर हो गया. इसके बाद तो दुनिया भर के मुख्तलिफ लोक फनकारों ने इसे गाया. अलग -अलग लोगों ने इसमें अपना-अपना कलाम डालकर इसमें मिक्स कर दिया. इस तरह से यह एक फोक बन गया. तो इसने जन्म हमारे घर से लिया और फिर पूरी दुनिया में फैल गया. लेकिन हमने कभी इस पर दावा नहीं किया कि सिर्फ हम ही गाएंगे. सब गा रहे हैं.
एक निजी सवाल है. आपके बारे में मैंने सुना है कि आप बेहद रिजर्व रहते हैं. घंटों तक अकेले में बैठकर अपने में खोए रहते हैं, मेडिटेशन करते हैं. तनहाई में करते क्या हैं आप? यहां तक कि अपने शो के दौरान भी आप सीधे अपने कमरे से निकल कर स्टेज पर जाते हैं और फिर वापस कमरे में चले जाते हैं.
ऐसा जान-बूझकर नहीं होता है. ये लगन होती है. मुझे मेरी मौसिकी से लगन हो गई है, मेरे वालिद साब की यादों से लगन हो गई है, मुझे अपने कलामों से मुहब्बत है, दुनिया से है. और यह नहीं कि मैं अकेला रहना पसंद करता हूं. हां, तनहाई में मैं थोड़ा चिंतन करता हूं कि ज्यादा से ज्यादा अच्छी चीजें लिखूं ताकि मेरा जेहन नई-नई राहें तलाश सके. ये एक किस्म की जुस्तजू होती है. हर कलाकार के अंदर थोड़ी-सी दीवानगी होती है. वह अपने फन का दीवाना
होता है. सूफी का कोई ठिकाना नहीं होता. वह तो अपनी ही दुनिया में दीवाना होता है.
पाकिस्तान के अलावा हिंदुस्तान में आपके प्रंशसकों की बड़ी तादाद है. उन्हें कोई संदेश देना चाहेंगे?
मैं सिर्फ यही कहूंगा कि अल्ला आपको खुश रखे. जहां भी रहें अमन और मुहब्बत से रहें. जब हालात बिगड़ते हैं तब दिलों में कड़वाहट भी बढ़ती है. हम तो छोटे-मोटे फनकार हैं. यहां ऐसे बड़े-बड़े लोग मौजूद हैं जो दुनिया में आई बड़ी से बड़ी मुसीबत का इलाज खोजने में लगे हैं. हम दुनिया की बेहतरी के लिए सोच सकें, नई राहें निकाल सकें, अपने दिमागों को खोल सकें, अमन और भाईचारे को फैला सकें और पॉजिटिव सोच को बढ़ा सकें ताकि आने वाली नस्लों के लिए यह दुनिया और खूबसूरत हो सके और बेहतर हो सके. यही मेरा फलसफा है, यही मेरी चाहत है.
आपका एक ताजातरीन कलाम हम सब सुनना चाहेंगे.
आपने जो मुझसे पूछा था कि मैं तनहाई में क्या करता हूं तो मैं यही करता रहता हूं. अपनी दुनिया में रहता हूं तो कुछ नई सोचें मिल जाती हैं. एक वक्त में मैंने सफर बहुत किया है. ट्रकों-बसों में बैठकर मैंने लाखों किलोमीटर की यात्राएं की हैं. फिर अब अपनी दुनिया में कैद हो गया हूं. मैंने सूफी शायरों को पढ़ना शुरू किया. एक मेरा नया शेर है जो आपकी खिदमत में पेश करता हूं.
मिट्टी मिट्टी दुनिया सारी, मिट्टी दा संसार
मिट्टी मिट्टी दुनिया सारी, मिट्टी दा संसार
मिट्टी दे सन बादशाह ते मिट्टी दे दरबार
इंसान अपनी ‘मैं’ में रहता है. जो लोग बड़े-बड़े महलों में हजारों पहरेदारों और नौकरों की सुरक्षा में रहते थे, सोने के बिस्तरों पर सोते थे आज वे कहां हैं. कौन उन्हें पूछता है. तो कुछ भी नहीं है दुनिया. जो कभी दरबार थे वे भी मिट्टी थे. सिर्फ आपके अच्छे अल्फाज ही जिंदा रह जाएंगे. इंसान तो मिट्टी बन जाएंगे. आज सूफी दरवेश दुनिया छोड़कर जा चुके हैं, वे मिट्टी के ढेर में तब्दील हो चुके हैं लेकिन उनके कलाम आज भी जिंदा हैं. सिर्फ अल्फाज जिंदा रह जाते हैं.