अब जून के संसदीय चुनाव में बड़ी राजनीतिक लड़ाई का करेंगे सामना
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने राष्ट्रपति चुनाव में अंतत: अपनी धुर दक्षिणपंथी प्रतिद्वंद्वी, ले पेन को हरा दिया। अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो और यूरोपीय संघ को निश्चित ही इस नतीजे से राहत मिली है कि यूक्रेन को उनका सैन्य समर्थन एक क़रीबी सहयोगी (फ्रांस) से बिना बाधा जारी रहेगा। इसी तरह यह नतीजे मुसलमानों के लिए, जो फ्रांस में कुल मतदाताओं का लगभग आठ फ़ीसदी हैं; की विरोधी ताक़तों के ध्रुवीकरण को कम-से-कम कुछ समय के लिए या संसदीय चुनाव तक रोकने में सफल रहे हैं।
जैसा कि अक्सर कहा जाता है कि लड़ाई जीती जाती है। लेकिन युद्ध जीतना एक लम्बी क़वायद है। मैक्रों के लिए भी यही सच है। राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल जीतने के लिए उनका स्वागत किया जा रहा है। लेकिन वह अपने सामने की चुनौतियों को जानते हैं। जीन मेरी ले पेन की अदम्य साहस वाली बेटी ले पेन, अपने पिता के राजनीतिक एजेंडे को उत्साहपूर्वक आगे बढ़ा रही हैं। उन्होंने क्रमश: सन् 2017 और इस साल 2022 में मैक्रों के ख़िलाफ़ दो बार लड़ाई लड़ी। हो सकता है कि वह भविष्य में चुनाव नहीं लड़ सकें। लेकिन इस साल जून में होने वाले आगामी संसदीय चुनावों में अपनी विचारधारा को और विस्तार दे सकती हैं। सन् 2017 के नेशनल असेंबली चुनावों में मैक्रों की पार्टी ला रिपब्लिक एन. मार्चे 577-सदस्यीय सदन में 308 सदस्यों के साथ सत्ता में आयी थी। मैक्रों ने सन् 2017 के चुनाव के दौरान आनुपातिक प्रतिनिधि प्रणाली शुरू करने का वादा किया था; लेकिन उन्होंने इसे लागू करने के लिए क़दम नहीं उठाये। हाल में हुए राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वह मुस्लिम मतदाताओं को जीतने के लिए काफ़ी आगे तक गये और बार-बार चेतावनी दी थी कि यदि उनकी प्रतिद्वंद्वी जीत गयीं, तो वह सार्वजनिक रूप से बुर्क़ा (मुस्लिम हेड स्कार्फ) पहनने पर प्रतिबंध लगा देंगी।
जून के चुनाव के दौरान साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तेज़ हो सकता है। इस बीच धुर वामपंथी तीसरे स्थान पर रहे, उम्मीदवार जीन-ल्यूक मेलेनचॉन ने अपने मतदाताओं से आगामी संसदीय चुनावों में अपने वोटों को मज़बूत करने की अपील की है। मेलेनचॉन ने कहा कि मरीन ले पेन की हार हमारे लोगों की एकता के लिए बहुत अच्छी ख़बर है और आगामी संसदीय चुनावों में इमैनुएल मैक्रों की पार्टी के ख़िलाफ़ लड़ाई का नेतृत्व करने की क़सम खायी। इस तरह देखा जाए, तो अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी शक्तियों द्वारा राजनीतिक युद्ध लड़ा जा रहा है, ताकि फ्रांस को अपने जाल में ही रखा जाए। मैक्रों की जीत ने शायद रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान के साथ-साथ यूरोप में मुसलमानों के ख़िलाफ़ भविष्य में हिंसा के किसी भी विस्फोट को शान्त करने के लिए थोड़ा स्थान दिया है। मैक्रों की राजनीतिक लड़ाई उनकी जीत के साथ समाप्त नहीं हुई है। लेकिन संसदीय चुनाव में एक अनुकूल प्रधानमंत्री की जीत सुनिश्चित करने के लिए उन्हें अपने राजनीतिक अभियान को तेज़ करना होगा। यह देखा जाना बा$की है कि संसदीय चुनावों के दौरान जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़, पुर्तगाली प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा और स्पेनिश प्रीमियर पेड्रो सांचेज़ की पहले की सलाह मतदाताओं को प्रभावित करेगी या नहीं? उन्होंने ले मोंडे दैनिक में संयुक्त रूप से लिखा था कि हमारे लिए दूसरों की तरह यह चुनाव भर नहीं हैं। उन्होंने आगाह किया था कि फ्रांस को एक लोकतांत्रिक उम्मीदवार के बीच एक विकल्प का सामना करना पड़ रहा है। याद रहे कि ले पेन ने सन् 2017 में क्रेमलिन में पुतिन से मुलाक़ात की थी और उन्होंने सन् 2014 में रूस के क्रीमिया पर क़ब्ज़े को स्वीकार कर लिया था; जबकि उनकी पार्टी ने रूसी-चेक बैंक से क़र्ज़ भी लिया था। दिलचस्प बात यह है कि रूसी विरोधी रुख़ अपनाने के बावजूद अधिकांश यूरोपीय देश संघर्ष के शीघ्र समाधान के लिए उत्सुक हैं। वे नहीं चाहते कि यूरोप के पूर्वी हिस्से पर चल रहा युद्ध अब और जारी रहे। वर्तमान संघर्ष उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध की याद दिलाता है। बढ़ती मुद्रास्फीति के साथ वे पहले से ही अपनी अर्थ-व्यवस्था पर रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रभाव का सामना कर रहे हैं। हालाँकि फ्रांस में मतदाता विभाजित प्रतीत होता है, जिसमें पुराने फ्रांसीसी मतदाता, विशेष रूप से 70 साल से ऊपर के मतदाता अधिक उदार हैं, जबकि युवा मतदाता तेज़ी से बायें या दायें की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
नतीजों के बाद 24 अप्रैल की रात मैक्रों की विजय रैली यूरोपीय संघ के गान ओड टू जॉय की आवाज़ से गूँज उठी थी, जहाँ उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया था कि वे अब एक $खेमे के उम्मीदवार नहीं हैं, बल्कि हम सब के राष्ट्रपति हैं। यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने भी उनका स्वागत किया। डेर ने फ्रेंच में ट्वीट किया- ‘एक साथ हम फ्रांस और यूरोप को आगे बढ़ाएँगे।’
मैक्रों की जीत के बावजूद यह स्पष्ट नहीं है कि आम लोगों ने तीन यूरोपीय शक्तियों, जर्मनी, इटली और पुर्तगाल की सलाह कैसे ली है कि उन्हें अति-दक्षिणपंथी, मरीन ले पेन की हार सुनिश्चित करनी चाहिए। यह पहली बार है कि यूरोपीय संघ के भीतर ऐसी अपील जारी की गयी। हालाँकि यह अभी तक पता नहीं चल पाया है कि मतदाता अपने घरेलू मामलों में इस तरह के स्पष्ट हस्तक्षेप का जवाब भविष्य के चुनाव में कैसे देंगे? यह मुद्दा सामने आ सकता है और संसदीय चुनावों के दौरान मैक्रों के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इसे एक मुद्दे के रूप में उठा सकते हैं।
चुनाव और मुसलमान
एक माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक सैमुअल पेटी की हत्या ने अधिकारियों को फ्रांस में इस्लामी कट्टरपंथियों की बड़ी उपस्थिति के बारे में चिन्तित कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि पैटी ने अपने शिष्यों को पैगंबर मुहम्मद के विवादास्पद कार्टून दिखाये थे। इसने मॉस्को में पैदा हुए एक मुस्लिम युवक 18 वर्षीय चेचन अब्दुलाख के मन में ज़हर भर दिया, जो हत्या स्थल से क़रीब 100 किलोमीटर दूर इव्रेक्स के नॉर्मंडी शहर में रह रहा था। उनका मिस्टर पेटी या उनके स्कूल से कोई सम्बन्ध नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि दो मुस्लिम पादरियों ने शिक्षक के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी किया था। फ्रांस पश्चिमी यूरोप की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी का देश है और कई मुसलमानों को लगता है कि राष्ट्रपति चुनाव अभियान ने उनके भरोसे को ग़लत तरीक़े से कलंकित किया है। धुर दक्षिणपंथी उम्मीदवार मरीन ले पेन, जब पहले दौर के मतदान में मैक्रों से पीछे चल रही थीं; ने कहा था कि वह सार्वजनिक रूप से हेडस्कार्फ और प्रतिबंध का उल्लंघन करने वाली महिलाओं पर प्रतिबंध लगा देंगी। मैक्रों की मुसलमानों के ख़िलाफ़ ऐसी कोई योजना नहीं थी। हालाँकि उनकी सरकार ने भी कई मस्जिदों और इस्लामी समूहों को बन्द करने का आदेश उनके पिछले सत्ता काल में दिया है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे कट्टरपंथी इस्लामी विचारों को बढ़ावा देते हैं। इसी 10 अप्रैल को पहले दौर में मुस्लिम मतदाताओं के बीच
किसी भी उम्मीदवार ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। इसके बजाय लगभग 70 फ़ीसदी ने तीसरे स्थान पर रहने वाले जीन-ल्यूक मेलेनचॉन का समर्थन किया।