कमज़ोर होती मुद्रा और कालाधन देश को मज़बूती देने के बजाय चंद पूँजीपतियों को मज़बूती देते हैं और निचले तबक़े को लगातार ग़रीबी में धकेलते हैं। भारत में ये दोनों ही स्थितियाँ तेज़ी से हावी हो रही हैं। आज़ादी के बाद से डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार कमज़ोर हुआ है। पिछले नौ वर्षों में तो रुपया जिस तेज़ी से डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर हुआ है, वो चिन्ता का विषय है।
भारत सरकार ने बजट की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया है कि 31 मार्च, 2023 तक भारत पर कुल 155 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ हो गया। कुछ लोगों ने मार्च, 2024 तक इस क़र्ज़ के बढक़र 172 लाख करोड़ होने का अनुमान जताया गया था। सरकार के मुताबिक, 2004 में जब यूपीए की सरकार केंद्र में बनी, तो भारत पर कुल 17 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ था। यूपीए की सरकार ने आगामी 10 वर्षों यानी 2014 तक इस क़र्ज़ को बढ़ाकर 55 लाख करोड़ रुपये कर दिया। लेकिन एनडीए की मौज़ूदा सरकार ने तो रिकॉर्ड क़र्ज़ लेते हुए इसे 155 लाख करोड़ रुपये से भी ऊपर पहुँचा दिया। इस हिसाब से मोदी सरकार के पिछले नौ साल के कार्यकाल में देश पर 181 प्रतिशत क़र्ज़ बढ़ा है। इसी वजह से रुपया डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर हुआ है। इसकी वजह से सन् 2014 में 63.33 रुपये की क़ीमत एक डॉलर थी, वो एक डॉलर आज की तारीख़ में 82.31 रुपये के बराबर है। इन सवा नौ वर्षों में रुपया क़रीब 29.96 प्रतिशत कमज़ोर हुआ है। सन् 2004 में 45.32 रुपये के बराबर एक डॉलर था।
कालेधन की अब देश में कहीं बात नहीं होती। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जिस कालेधन को लाने की बात गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी किया करते थे और कहते थे कि विदेशों में इतना कालाधन जमा है कि अगर वो आ जाएगा, तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये आएँगे, प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने कालेधन को लाने की चर्चा ही नहीं की है। नोटबंदी के दौरान भी उन्होंने यह कहा था कि इससे कालाधन रखने वालों की कमर टूट जाएगी। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। सन् 2013 में भारतीयों का 14,000 करोड़ कालाधन था, जो सन् 2021 में बढक़र 20,700 करोड़ रुपये हो गया था। इसके बाद के आँकड़े नहीं हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि कालाधन इन दो वर्षों में बढ़ा ही न हो। जब सन् 2020 में भारतीयों के कालेधन में रिकॉर्ड उछाल की रिपोर्ट जारी हुई थी, तब केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा था कि स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के कालेधन के बारे में कुछ पता नहीं चलता है। हैरानी की बात है कि वित्त मंत्रालय ने कालाधन बढऩे की रिपोर्ट सामने आने के बावजूद कहा था कि कालेधन में कमी आयी है। इससे भी हैरानी की बात यह है कि जिन कालेधन वालों की कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में लिस्ट हुआ करती थी, उस कालेधन का बढ़ोतरी के बावजूद सरकार को ही शायद अब पता नहीं है।
कालेधन की जानकारी साझा करने के उद्देश्य से सन् 2016 में केंद्र सरकार और स्विस बैंक के बीच ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इंफॉर्मेशन के लिए एक समझौता हुआ था, जिसमें एक संयुक्त बयान पर भारत और स्विट्जरलैंड ने हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते के तहत तय हुआ था कि सन् 2018 से स्विट्जरलैंड के स्विस बैंकों में खोले गये हर भारतीय के खाते की जानकारी वहाँ के बैंक भारत सरकार और भारत के आयकर विभाग को सीधे देंगे। सन् 2020 सन् 2021 में जानकारी मिली भी। लेकिन उसके बाद से सब कुछ गोल कर दिया गया यानी कोई भी जानकारी काले धन को लेकर सामने नहीं आयी है। इसका मतलब यह नहीं है कि केंद्र सरकार या आयकर विभाग को इसकी जानकारी स्विस बैंक नहीं दे रहे होंगे; लेकिन वह जानकारी सार्वजनिक की जा रही है। शायद कोई गोपनीयता होगी; लेकिन क्या छिपाया जा रहा है कहना मुश्किल है।
सन् 2016 में नोटबंदी के बाद देश में भी कालेधन की जमाख़ोरी नहीं रुकी। इसके लिए 2,000 के नोट बंद करने पड़े। क्योंकि अभी हाल ही में नोट छपने के बाद ग़ायब हो गये। हाल ही में मीडिया के ज़रिये ये ख़बरें सामने आयीं कि 500 रुपये के नये डिजाइन वाले क़रीब 176 करोड़ से ज़्यादा नोट ग़ायब हो गये हैं। इन नोटों की ग़ायब हुई रक़म 88,000 करोड़ से ज़्यादा है। यह ख़ुलासा सूचना का अधिकार यानी आरटीआई के तहत हुआ था।
दरअसल, आरटीआई एक्टिविस्ट मनोरंजन रॉय ने अपनी एक आरटीआई में इस सम्बन्ध में सवाल पूछे थे। इसमें जानकारी मिली कि नये डिजाइन वाले 500 रुपये लाखों नोट छपने के बाद रिजर्व बैंक पहुँचे ही नहीं। सवाल यह है कि अगर ऐसा हुआ, तो इसकी जाँच क्यों नहीं की जा रही है? सरकार इतने गम्भीर मामले पर खामोश क्यों है? रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसे लेकर जाँच और सुरक्षा की माँग सरकार से क्यों नहीं की? बताया जा रहा है कि जो नोट ग़ायब हुए हैं उनकी क़ीमत 88,032.5 करोड़ रुपये है। आरटीआई की जानकारी में कहा गया है कि बेंगलूरु स्थित भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड, नासिक स्थित करेंसी नोट प्रेस और देवास स्थित बैंक नोट प्रेस में कुल (गिनती में) 8,81.065 करोड़ नोट 500 रुपये के छापे गये थे, जिनमें से रिजर्व बैंक को पूरे मिले मिले ही नहीं। आरटीआई के मुताबिक, 500 रुपये के कुल 176.065 करोड़ नोट ग़ायब हुए हैं, जिनकी क़ीमत 88,032.5 करोड़ रुपये है।
आरटीआई के जवाब से मिली जानकारी के मुताबिक, सभी नोट 2016-17 से ही ग़ायब हैं। क्योंकि नासिक मिंट ने जानकारी दी है कि उसने वित्त वर्ष 2016-17 में रिजर्व बैंक को 500 रुपये के 166.20 करोड़ नोट छापकर रिजर्व बैंक भेजे थे। इसी वित्त वर्ष में यानी 2016-17 के दौरान ही बेंगलूरु मिंट ने भी 500 रुपये के 519.565 करोड़ नोट छापकर रिजर्व बैंक भेजे थे और इसी 2016-17 में देवास मिंट ने भी 500 रुपये के 195.30 करोड़ नोट देश की इस मुख्य बैंक को भेजे थे।
इस जानकारी के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट मनोरंजन रॉय ने ये आँकड़े सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो और ईडी के पास भेजकर इस गड़बड़ी में जाँच की माँग की है। सरकार इस मामले में $खामोश है और ईडी, सीबीआई ने भी अभी तक जाँच के नाम पर कोई क़दम नहीं उठाया है। देश की जनता को इसका जवाब और हिसाब मिलना ही चाहिए। इससे देश की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो रही है। हालाँकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि कुछ मीडिया में प्रसारित होने वाली ख़बरों के बारे में आरबीआई को पता चला है, जिसमें प्रिंटिंग प्रेस की तरफ से छापे गये बैंक नोटों के ग़ायब होने का आरोप लगाया गया है। यह रिपोर्ट सही नहीं हैं। सवाल यह है कि अगर ऐसा है, तो आरटीआई का जवाब क्या है?