पीएम मोदी के ८ नवंबर, २०१६ को नोटबंदी के फैसले के बाद बीते दो साल से कुछ ज्यादा के समय में देश में ५० लाख लोगों की नौकरी चली गई। एक नई रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह नौकरियां खासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की गयी हैं। नई रिपोर्ट बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (सीएसई) की तरफ से जारी की गयी है। ”स्टेट आफ वर्किंग इंडिया २०१९” नाम से जारी इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि साल २०१६ से २०१८ के बीच करीब ५० लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
इससे पहले मोदी सरकार की ही एक सरकारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि देश में नोटबंदी के बाद लाखों नौकरियां चली गयी हैं। इस बीच नई रिपोर्ट आने से फिर नोटबंदी को लेकर गंभीर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। चुनाव के बीच इस रिपोर्ट का असर भी पड़ना लाजिमी है।
सीएसई के अध्यक्ष प्रो अमित बसोले ने हफिंगटनपोस्ट में अपनी रिपोर्ट में जो आंकड़े लिखे हैं उनके मुताबिक देश में नोटबंदी के बाद ५० लाख रोजगार कम हो गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कहीं और नौकरियां भले बढ़ी हों, ये तय है कि पचास लाख लोगों ने अपना नौकरियां खो दी हैं। ”यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। डेटा के अनुसार, नौकरियों में गिरावट नोटबंदी के आसपास हुई (सितंबर और दिसंबर २०१६ के बीच चार महीने की अवधि में) और दिसंबर २०१८ में अपने स्थिरांक पर पहुंची।”
उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इन दोनों के बीच संबंध पूरी तरह से स्थापित नहीं किया जा सकता है। यानी रिपोर्ट में यह साफ तौर पर बेरोजगारी और नोटबंदी में संबंध नहीं दर्शाया गया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी नौकरी खोने वाले इन ५० लाख पुरुषों में शहरी और ग्रामीण इलाकों के कम शिक्षित पुरुषों की संख्या अधिक है। इस आधार पर रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि नोटबंदी ने सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र को ही तबाह किया है।