जम्मू के रामनगर और आसपास के इलाकों के करीब छ: माह पहले एक के बाद एक 11 बच्चों की मौत का मामला अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली के पास पहुँच गया है। आयोग ने जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी कर दिया है। आयोग ने दोनों अधिकारियों को चार सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है। यह अवधि जुलाई के पहले सप्ताह तक है। नोटिस में उल्लेख है कि तय अवधि में जवाब न आने पर आयोग के पास समुचित कार्रवाई करने का अधिकार है। मामले की गम्भीरता को देखते हुए आयोग कार्रवाई करेगा, इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए।
इस मामले को इस मुकाम तक पहुँचाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुकेश खजूरिया कहते हैं कि आयोग के पास व्यापक अधिकार हैं, उसे मामले में कार्रवाई करनी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो उनके पास कई विकल्प है। उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के पास जाएँगे। उनका मकसद बच्चों के परिजनों को इंसाफ दिलाना है। ‘मौत का सीरप’ बनाने वाली कम्पनी के मालिकों के अलावा इसकी मार्केटिंग करने वालों को सलाखों के पीछे पहुँचाना है। जो परिजन 02 जून की रोटी दिहाड़ी करके जुटा रहे हैं, उन्हें इंसाफ तो दिलाना ही होगा। गलत दवा के प्रयोग से उनके बच्चों की असमय मौत हो गयी, वहीं उपचार में हज़ारों रुपये खर्च हो गये, जिसके लिए वे कर्ज़दार हो गये। आॢथक रूप से बेहद कमज़ोर इन परिजनों को मुआवज़ा मिलना चाहिए। प्रभावित परिवारों में कुछ तो गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं।
दिहाड़ीदार श्रमिक गोङ्क्षवद राम की तीन साल की बच्ची सुरभि की जान भी इसी दवा ने ली थी। कहते हैं कि खाँसी-ज़ुकाम होने पर मेडिकल वाले ने अच्छी दवा के नाम यह शीशी दी थी। सोचा दो-तीन दिन में ठीक हो जाएगी। लेकिन दो दिन बाद उसका मूत्र रुक गया। बच्ची बेहद तकलीफ में थी। उसे करीब के रामनगर अस्पताल ले गये। वहाँ डॉक्टरों ने ऊधमपुर ले जाने को कहा। पैसा नहीं था, किसी से 20 हज़ार रुपये उधार लिए और गाड़ी करके बच्ची को पहले ऊधमपुर और वहाँ से जम्मू ले जाना पड़ा। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया और बच्ची चल बसी। 60 हज़ार रुपये उसके इलाज में खर्च हो गये। वह कर्ज़दार हो गये, बच्ची को खो बैठे वह अलग। पत्नी नीमो देवी कहती हैं, उनकी बच्ची ठीक थी। अगर वह दवा न देते तो वह आज ज़िन्दा होती। उनके तीन बेटियाँ हैं, जिनमें सुरभि अब इस दुनिया में नहीं है। जिस तरह से उसकी मौत हुई है, मंज़र सामने आ जाता है। कहाँ-कहाँ लेकर भटके, फिर भी बचा नहीं सके। हम लोग बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर पाते हैं। इलाज में हज़ारों खर्च हो गये, उसे कैसे उतारेंगे? यह सवाल मौत के करीब पाँच माह अब भी मुँह बाँए खड़ा है। किसी ने एक पैसे की मदद नहीं की। कोई नेता या सरकारी अधिकारी हमारे घर नहीं आया। उन्हें सुरभि की मौत का इंसाफ भी चाहिए। मौत की दवा बनाने वाली कम्पनी के मालिकों को सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। उस बच्ची का क्या कुसूर था, उसे दुनिया देखनी थी, लेकिन ज़हरनुमा दवा ने उसकी ज़िन्दगी छीन ली।
रामनगर के वार्ड-11 की भोली देवी की बच्ची जाह्नवी की मौत भी बेस्ट कोल्ड पीसी सीरप पीने के बाद हुई। बहुत उपचार कराया और काफी पैसे भी खर्च हुए, लेकिन उसे डॉक्टर बचा नहीं सके। 11 माह की बच्ची ने उनके सामने दम तोड़ दिया, तो रोने के अलावा और कोई चारा नहीं था। भगवान से बचाने की गुहार भी काम नहीं आयी। बच्ची की मौत के ज़िम्मेदार लोगों को जेल में डाला जाए।
जाह्नवी के पिता अनिल कुमार दिहाड़ी श्रमिक हैं। रोज़ काम नहीं मिलता, महीने में 15 दिन काम मिल जाए वही बहुत है। इस परिवार की आॢथक हालत बहुत खराब है। पूरा परिवार बच्ची की मौत से व्यथित है। जाह्नवी के पिता कहते हैं कि बोलने के लिए अब कुछ नहीं रहा। हमारा सिस्टम ही खराब है। दवाई तो बीमार को ठीक करने के लिए होती है। लेकिन यह कैसी दवा थी, जिसने ज़िन्दगी के बदले मौत दे दी। आज लगभग छ: महीने हो गये, जाह्नवी का चेहरा अब भी आँखों में घूमता है। हम कुछ नहीं कर सके और कोई हमारे लिए अब तक कुछ नहीं कर सका है। ऋषि कुमार ने बताया भतीजी जाह्नवी के उपचार पर 50 हज़ार से ज़्यादा रुपये खर्च हो गये। पैसे का इंतज़ाम करना कौन-सा आसान काम था। इलाज के नाम पर पैसे तो मिल गये, लेकिन उन्हें चुकाना अब उतना ही मुश्किल है। काम पहले से ही नहीं है। ऐसे में और भी दिक्कत हो गयी है।
डेढ़ साल की लक्ष्मी ने भी दवा के सेवन के बाद दम तोड़ा। उसके पिता राजकुमार कहते हैं कि रामनगर इलाके में स्वास्थ्य सुविधाएँ बहुत कम हैं। ज़्यादातर लोग छोटी-मोटी तकलीफ के लिए मेडिकल पर से ही दवा ले लेते हैं। बच्ची को खाँसी-ज़ुकाम की तकलीफ हुई, तो पर्ची पर दवा लिखकर दे दी गयी। हम ले आये, सोचा कि बच्ची जल्द ही ठीक हो जाएगी। पर वह कभी ठीक नहीं हो सकी। उसकी मौत स्वाभाविक नहीं थी। दवा के सेवन के बाद वह बहुत ज़्यादा तकलीफ में आ गयी। इतनी छोटी बच्ची बता तो कुछ नहीं सकती थी, बस उसके दर्द को हम लोग कुछ-कुछ समझ सक रहे थे। डॉक्टर समझते होंगे। लेकिन वे भी कारण बता नहीं सके। उन्होंने उसे ठीक करने की कोशिश भी की। लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। जब लक्ष्मी की तरह इलाके में अन्य बच्चों की मौतें हुईं और कारण का पता लगा ,तो हम सन्न रह गये। हमारी बच्ची तरह अन्य परिवारों के बच्चे बच्चियों की मौत हुई है।
विदित हो दिसंबर, 2019 और जनवरी, 2020 के बाद एक के बाद एक 11 बच्चे-बच्चियाँ असमय मौत की नींद सो गये थे। बच्चों की मौत की वजह हिमाचल प्रदेश के ज़िला सिरमौर के कालाअंब स्थिति फार्मास्यूटिकल कम्पनी डिजिटल विजन की बेस्ट कोल्ड पीसी सीरप का सेवन रहा है। दवा चंडीगढ़ की रीज़नल टेस्टिंग लैब (आरडीटीएल) के मानकों पर खरी नहीं उतरी है। इसमें डाइथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा मानक से ज़्यादा पायी गयी। विशेषज्ञों की राय में सभी बच्चे-बच्चियों की मौत की वजह कमोबेश एक जैसी दवा का सेवन रहा है। दवा सेवन के बाद पहले बच्चों का मूत्र बन्द होने और फिर उनकी किडनी का फेल होना बताया गया है। दवा के प्रयोग से पहले इन बच्चे-बच्चियाँ खाँसी या ज़ुकाम के अलावा बिल्कुल ठीक थे, इन्हें किसी तरह की कोई गम्भीर शिकायत नहीं थी।
शिकायत के बाद कम्पनी का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया है। रामनगर में इस बाबत प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। गिरफ्तारी के डर से कम्पनी मालिक पुरुषोत्तम गोयल और कोनिक गोयल ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत ले ली है। रामनगर थाने में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर पुलिस ने जमवाल मेडिकल के मोहिंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया था। इसी दुकान से कई लोगों ने यह दवा खरीदी थी; लिहाज़ा पुलिस ने स्टॉकिस्ट को भी गिरफ्तार कर लिया था। हैरानी की बात यह है कि निर्माता कम्पनी के प्रबन्धक या मालिक अभी गिरफ्तारी से बचे हुए हैं। कम्पनी का लाइसेंस निरस्त किया हुआ है, इसलिए यह दवा अब नहीं बन रही होगी। इसकी व्यवस्था का ज़िम्मा हिमाचल प्रदेश सरकार का है। वैसे भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भरोसा दिला चुके हैं कि सरकार इस मामले में कोई नरमी नहीं रखेगी। बच्चों की मौत का मामला बेहद गम्भीर है। ऐसे मामलों से राज्य की छवि भी खराब होती है, लिहाज़ा कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सरकार का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ मिशन रामनगर की घटना में पूरा होता नहीं दिख रहा। मरने वालों में कई बच्चियाँ भी हैं। उन्हें बचाया ही नहीं जा सका, तो फिर पढ़ाने की बात तो दीगर हो जाती है। ऊधमपुर क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएँ भी नाकाफी हैं। रामनगर इलाके में तो स्वास्थ्य सुविधाएँ काफी खस्ता हालत में हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। दूरदराज़ के इलाकों से लोगों की अस्पतालों तक पहुँच आसान नहीं है।
उपेक्षा के मायने
जम्मू का रामनगर क्षेत्र ऊधमपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है। यहाँ के सांसद डॉ. जितेंद्र सिंह हैं, जो केंद्र में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं। वह भाजपा नेता भी हैं। इनके पास डवलपमेंट नार्थ ईस्टर्न रीजन के अलावा एटोमिक एनर्जी स्पेस जैसे अहम विभाग हैं। इसके साथ ही वे प्रधानमंत्री कार्यालय से भी सम्बद्ध है। बावजूद इसके उन्होंने इस मुद्दे पर प्रभावित लोगों को कोई संदेश नहीं दिया है। प्रभावित लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थी, लेकिन उन्होंने अब तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा नहीं कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं रही होगी। जो मामला उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार तक पहुँच गया है, उसकी जानकारी क्षेत्र के सांसद (केंद्रीय मंत्री) को न हो ऐसा हो नहीं सकता। वोट के लिए दूर-दराज़ के इलाकों में खाक छानने वाले जनप्रतिनिधि के ऐसे रुख से प्रभावितों में निराशा है।
उत्तराखंड में रोक
उत्तराखण्ड सरकार ने खतरनाक साबित हो चुकी बेस्ट कोल्ड पीसी सीरप पर रोक लगा दी है। सरकार के आदेश के मुताबिक, दवा के बैच नं.-डीएल 50, मैन्युफैक्चङ्क्षरग सितंबर 2019 और एक्सपाइरी अगस्त 2021 पर तुरन्त प्रभाव से रोक लगा दी गयी है। ड्रग कंट्रोलर के आदेश में कालाअंब ज़िला सिरमौर हिमाचल की डिजिटल विजन नामक कम्पनी की इस दवा की बिक्री पर पूरी तरह से रोक रहेगी। कम्पनी का सालाना टर्न ओवर 45 करोड़ से ज़्यादा का है। यहाँ 160 से ज़्यादा प्रोडक्ट तैयार होते हैं। इनमें इंजेक्शन, प्रोटीन पाउडर, कैप्सूल और सीरप आदि हैं। एक दर्जन से ज़्यादा देशों में भी कारोबार है।
हरियाणा में कार्रवाई
हरियाणा के ड्रग कंट्रोलर नरेंद्र आहूजा ने बताया कि मामला संज्ञान में आने के बाद इस दवा को ज़ब्त करने को लेकर तुरन्त कार्रवाई की गयी। स्टाकिस्टों के यहाँ छापे मारे गये। पूरा स्टॉक ज़ब्त किया गया। कम्प्यूटर से सेल डाटा निकलवाया गया। जिन लोगों को यह दवा बेची गयी थी, वहाँ से भी वापस लेने का काम किया गया। हरियाणा में इस दवा के सेवन से कोई अप्रिय घटना हुई है, उनकी जानकारी में नहीं आया है। दवा के स्टॉकिस्टों पर कार्रवाई के बाद प्राथमिकी दर्ज करायी गयी।
प्रभावितों का दर्द
हम लोगों ने अपने नौनिहालों को खोया है। यह सिस्टम की नाकामी है। इसे दुरुस्त करना होगा। नहीं किया जाता, तो रामनगर जैसी घटनाएँ फिर होती रहेंगी। आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। चूँकि मौतें प्राकृतिक नहीं है, इसलिए पीडि़त परिवारों को उचित मुआवज़ा मिलना चाहिए। काफी लोग अनुसूचित जाति के हैं। ज़्यादातर प्रभावितों की आॢथक हालत बहुत ठीक नहीं है। कई गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। इनकी राय में गरीब की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। सरकार का कोई नुमाइंदा उनके पास नहीं पहुँचा। किसी जनप्रतिनिधि ने उनकी खबर नहीं ली। हम लोग इंसाफ चाहते हैं, यह कैसे मिलेगा इसे नहीं जानते। धरना-प्रदर्शन करने की हालत में नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह हमारी सुध ले।