महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है इसका असर राजनीतिज्ञों के कैरियर से ज्यादा उन गरीब रोगियों पर पड़ा है जो अपनी महंगी इलाज के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले आर्थिक मदद पर आश्रित हैंं।
चीफ मिनिस्टर कार्यालय की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को इलाज के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। लेकिन जब से चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस ने अपने पद से रिजाइन दिया है तब से यह सेवाकक्ष बंद है।
मुंबई ही नहीं महाराष्ट्र के दूरदराज क्षेत्रों से इलाज के लिए आर्थिक मदद चाहने वालों की लंबी कतार मंत्रालय के इस कक्ष के बाहर लगी रहती है। लेकिन इस कार्यालय के बंद होने से तकरीबन साढे पांच हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं जिन्हें इलाज के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है।
मिली जानकारी के अनुसार चीफ मिनिस्टर के इस विभाग द्वारा पिछले 5 सालों में 21 लाख रोगियों को सहायता दी गई।और जरूरतमंद रोगियों को 1600 करोड़ से अधिक राशि का आवंटन किया गया। लेकिन अब जबकि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन है, चीफ मिनिस्टर नहीं है ऐसी सूरत में विभाग को इस कक्ष पर ताला लगा हुआ है।उन जरूरतमंद रोगियों की जिंदगी दांव पर लगी है जिन्हें अपने इलाज के लिए चीफ मिनिस्टर ऑफ फंड पर विश्वास था।
हालांकि इस फंड से आर्थिक सहायता मिलना बहुत आसान नहीं है। बहुत सारे कागजात, लंबी documents की फेहरिस्त और लंबा वक्त कभी-कभी रिश्तेदारों की आस तोड़ देता है।ऐसे भी वाकायात सामने आए हैं जिसमें फंड मिलने से पहले ही बीमार व्यक्ति दम तोड़ देता है। इस पूरे प्रोसेस को आसान बनाने की मांग होती रही है।और वाकई इस मामले में ध्यान देने की बेहद गंभीर जरूरत है ताकि गंभीर बीमारी से जूझते शख्स को मर्यादित समय के भीतर आर्थिक मदद मिल सके और वह अपना इलाज कराने में सफल हो।
हालांकि इलाज के लिए आर्थिक सहायता की आस लगाए बैठे रिश्तेदारों को विश्वास है कि नई सरकार के गठन के बाद उन्हें आर्थिक मदद मिल जाएगी। लेकिन उन बीमार लोगों का क्या होगा जिन्हें तुरंत सूरत में आर्थिक मदद की जरूरत है। कहीं ऐसा ना हो इस सरकार गठन की नौटंकी के चलते वह अपनी जिंदगी से हाथ खो बैठें। ऐसा नहीं है की इलाज के लिए लोग सिर्फ चीफ मिनिस्टर फंड पर ही आधारित हैंं। यहां पर कई गैर सरकारी संस्थान, ट्रस्ट और चैरिटेबल ट्रस्ट भी है जहां से इलाज के लिए आर्थिक निधि दी सहायता स्वरूप दी जाती है। फिलहाल महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन को देखते हुए जरूरतमंदों की कातर निगाहें इन निजी संस्थानों और चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर लगी हुई हैंं।