राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने पेशी वाले दिन इसे ‘राजनीतिक बदला’ बताते हुए जिस तरह विरोध के लिए कांग्रेस के तमाम बड़े नेता ईडी दफ़्तर के बाहर जुटे, उससे यह ज़ाहिर हो गया है कि कांग्रेस अब मोदी सरकार के ख़िलाफ़ आर-पार की लड़ाई की तैयारी कर चुकी है। इधर कांग्रेस यह सब कर रही थी, उधर तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के बहाने विपक्ष के 22 नेताओं को 15 जून को दिल्ली में बैठक बुलाकर भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुटता दिखाने की कोशिश की।
राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया इसी महीने के तीसरे पखवाड़े शुरू हो जाएगी, जब एनडीए और विपक्ष के उम्मीदवारों के नाम साफ़ हो जाएँगे। मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव को ज़रिया बनाना चाहता है। विपक्ष की कोशिश है कि किसी भी सूरत में भाजपा (एनडीए) को और वोटों का इंतज़ाम करने से रोका जाए। एनडीए के पास अभी राष्ट्रपति का चुनाव जीत सकने लायक वोट नहीं हैं। कांग्रेस सहित विपक्ष उस पर दबाव बनाये रखना चाहता है।
उधर राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों के बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी राष्ट्रीय राजनीति में कूदने की तैयारी में जुट गये हैं। वह अपनी पार्टी टीआरसी का विस्तार करके उसे राष्ट्रीय स्वरूप देने की तैयारी कर रहे हैं। उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार को सूचित किया है कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के साझे उम्मीदवार का समर्थन करेगी।
इस तरह विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए अलग-अलग ही सही भाजपा के ख़िलाफ़ मज़बूत तैयारी करता दिख रहा है। महीने बाद ही राष्ट्रपति का चुनाव है, लिहाज़ा वार्ताओं का दौर शुरू हो गया है। जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस शरद पवार को राष्ट्रपति पद के लिए आगे करने के हक़ में है। ऐसा करके पार्टी एक तीर से दो निशाने साधना चाह रही है। एक, पवार के क़द को देखते हुए विपक्ष उनके नाम पर एकजुट हो सकता है। भाजपा के पास अभी भी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए पूरे वोट नहीं हैं। ऐसे में पवार उस पर भारी पड़ सकते हैं।
पवार जीत जाते हैं, तो वे विपक्ष के साझे उम्मीदवार होते हुए भी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के नेता के रूप में जीते हुए ही कहलाएँगे। निश्चित ही चुनाव हारना भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, भले वह किसी भी सूरत में यह चुनाव जीतना और वोटों का इंतज़ाम करना चाहेगी। यदि पवार जीत जाते हैं, तो यूपीए में प्रधानमंत्री पद का एक बड़ा दावेदार कम हो जाएगा।
सोनिया गाँधी ने जिस तरह पहले ही शरद पवार को आधिकारिक सन्देश भिजवाकर राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन की बात कही है, उससे विपक्ष के किसी और नेता का ममता शायद ही समर्थन कर पाएँ। कांग्रेस यूपीए के ही किसी वरिष्ठ नेता को राष्ट्रपति पद के लिए आगे करने की मंशा रखती रही है। यह देखना होगा कि शरद पवार का क्या रुख़ रहता है, क्योंकि वह उसी सूरत में मैदान में उतरेंगे यदि उनके जीतने की पक्की सम्भावना होगी।
इस बीच टीआरएस नेता और तेलंगना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी राष्ट्रीय राजनीति की चाह रखने लगे हैं। कई बार वे कांग्रेस के समर्थन में दिखते हैं, और कहते रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की कल्पना नहीं की जा सकती। भले तेलंगना की राजनीति में कांग्रेस उनकी विरोधी है, एक समय वह कांग्रेस के ही नेता रहे हैं। हाल में अपने दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने उनकी सरकार की कुछ मुद्दों को लेकर आलोचना भी की थी।
राव जून के आख़िर तक अपनी पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, इस पार्टी का नाम भी तय कर लिया गया है और यह भारतीय राष्ट्र समिति हो सकता है। पिछले पाँच-छ: महीने से राव अचानक सक्रिय हुए हैं और वे शरद पावर, ममता बनर्जी सहित कई बड़े नेताओं से मिल चुके हैं। राव को विश्वास है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा और ऐसे में प्रधानमंत्री पद के लिए चंद्रशेखर, देवेगौड़ा या आई.के. गुजराल की तरह किसी को मौ$का मिल सकता है।
मतों का गणित
यह रिपोर्ट लिखे जाने समय तक राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए बहुमत के आँकड़े से क़रीब 13,000 मत (वोट) दूर है। पार्टी वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल पर निर्भर है। दोनों का समर्थन मिल जाता है, तो एनडीए उम्मीदवार की जीत का रास्ता साफ़ हो जाएगा। इन दोनों दलों ने 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राम नाथ कोविंद का समर्थन किया था।
राज्यों में कुल 4,790 विधायक हैं। उनके वोटों का मूल्य 5.4 लाख (5,42,306) होता है। सांसदों की संख्या 767 है, जिनके मतों का कुल मूल्य भी क़रीब 5.4 लाख (5,36,900) बैठता है। इस तरह राष्ट्रपति चुनाव के लिए कुल मत लगभग 10.8 लाख (10,79,206) हैं। एक विधायक के मत (वोट) का मूल्य राज्य की आबादी और विधायकों की संख्या के आधार पर तय होता है। सांसदों के मत का मूल्य विधायकों के मतों का कुल मूल्य को लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की संख्या से भाग देकर तय होता है।
एनडीए के पास 5,26,420 मत हैं। यूपीए के हिस्से में 2,59,892 मत हैं। अन्य (तृणमूल कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल, सपा और वामपंथी) के पास 2,92,894 मत हैं। अगर वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल (43,500+31,700 मत) एनडीए के पाले में जाते हैं, तो उसका उम्मीदवार आसानी से जीत जाएगा, अन्यथा एनडीए को दिक़्क़त आएगी। कारण यह है कि हाल के महीनों में क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा के सम्बन्ध ख़राब हुए हैं। शिवसेना और अकाली दल उसके पाले से बाहर हैं।
अभी तक भाजपा विपक्ष के एकजुट नहीं होने से ताक़तवर दिखती। यदि विपक्ष एकजुट होता है, तो उसके लिए दिक़्क़त हो सकती है। विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिश में दिख रहे हैं। ग़ैर-कांग्रेस उम्मीदवार बनाकर विपक्ष का काम नहीं चलेगा। ऐसे में सब साथ आते हैं, तो कुछ कमाल हो सकता है।
चर्चा में नाम
राष्ट्रपति पद के लिए अभी किसी भी पक्ष से कोई नाम सामने नहीं है। भाजपा से कुछ नाराज़ दिख रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का क्या रोल रहेगा, यह बहुत अहम होगा। विपक्ष में कुछ नेता उन्हें राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाने के हक़ में हैं। कोई हैरानी नहीं यदि कांग्रेस ग़ुलाम नबी आज़ाद का नाम आगे करे। केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद $खान का नाम भी हाल में तेज़ी से चर्चा में आया है। ऐसे में जबकि भाजपा पर मुस्लिम-विरोधी होने के आरोप तेज़ी पकड़ रहे हैं, पार्टी आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को राष्ट्रपति बनाकर विरोधियों को चुप करा सकती है। यदि किसी महादलित या दलित को राष्ट्रपति बनाया जाता है, तो राज्यसभा से बेदखल किये गये मुख़्तार अब्बास नक़वी उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन सकते हैं। पार्टी किसी सिख को भी आगे कर सकती है। विपक्ष के पास शरद पवार, फ़ारूक़ अब्दुल्ला, मीरा कुमार, मनमोहन सिंह, मुलायम सिंह यादव, यहाँ तक कि मायावती भी हैं।