दिल्ली में आज संस्कृति व पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने प्रेसवार्ता को संबोधित किया जिसमें उन्होंने रामसेतु को पुराणिक और पुरातात्वक धरोहर बताते हुए कहा कि राम सेतु की उम्र के बारे में रिसर्च कर जानकारी प्राप्त करने के लिए गोवा के ओसियन सांइस सेंटर को मंजूरी दे दी गई है। जिसमें नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी के वैज्ञानिक इसमे मौजूद पत्थरों के विषय पर खोज करेंगे।
यह अंडरवाटर रिसर्च प्रॉजेक्ट इस वर्ष शुरू किया जाएगा जिसमें पानी में 40 मीटर नीचे जाकर सतह से सैंपल लिए जाऐंगे। जिससे की राम सेतु से जुड़े सभी सवालों कि यह कब, कैसे, कहा, तथा उस समय इसके आस-पास किसी गांव के होने ना होने का पता भी चल सकेगा।
ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) बोर्ड ने भी इसे मंजूरी दे दी है। इस आधुनिक तकनीक से पुल से संबंधित सभी जरूरी सवालों को पता लगाने में मदद मिलेगी। यह पुल लगभग 48 किलोमीटर लंबा व भारत और श्रीलंका को के बीच स्थित है। इसकी गहराई करीब 30 फीट है।
यह वहीं राम सेतु है जिसके बारे में हम रामायण में पढ़ते या सुनते है। राम सेतु के द्वारा भगवान राम रावण की लंका तक पहुंचे थे और माता सीता को उसकी कैद से छुड़ा कर लाए थे। इस सेतु को बनाने में वानर सेना ने पत्थरों पर राम नाम लिख कर सेतु बनाया था जिसमें कोरल और सिलिका पत्थरों का उपयोग किया गया था।
आपकों बता दें, 2005 में यूपीए 1 के कार्यकाल के दौरान सेतुसमुद्रम शिप चैनल प्रॉजेक्ट की घोषणा की गई थी। जिसपर काफी विवाद भी हुआ था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था। जहाजों की आवाजाही के लिए पुल की चट्टानों को तोड़ने की आवश्यकता भी पड़ी जिससे गहराई बढ़ सकें और जहाज आसानी से आ जा सकें। लेकिन 2007 में इस निर्माण कार्य पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी और यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में आनिर्णित है।