अयोध्या राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ने आज नया मोड़ ले लिया। सुप्रीम कोर्ट में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर दायर अपील पर गुरूवार (27 सितंबर) को पहली सुनवाई हुई। अब अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई के कार्यकाल में अगले महीने होगी। सुनवाई लगातार चलेगी। अनुमान है दो-तीन महीने में फैसला आ जाएगा।
आश्चर्य इस बात पर ज़रूर है कि टाइटिल सूट की पहली सुनवाई पर ही राजनीतिक सरगर्मी इतनी ज्य़ादा क्यों बढ़ गई। केंद्र में भाजपा नेतृत्व में एनडीए और कई राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। इससे सहज उत्साह संभव है। उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चित्रकूट के एक मंदिर में पूजा अर्चना की। अनुमान है कि इसी साल संभवता फैसला आ जाए और मंदिर का निर्माण शुरू हो जाए।
जानकारों के अनुसार फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जो अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के खिलाफ आई है वह एक तरह का पंचायती फैसला था जिसे किसी भी पक्ष ने मंजूर नहीं किया। जब भी अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद जब छिड़ा तो देश के बहुसंख्यक समाज को यह समझाया गया कि भले ही 21वीं सदी हो, भले ही चांद पर 2022 में जाएं पर आज समस्या डीजल, पेट्रोल, केरोसिन की भले हो लेकिन राम मंदिर का निर्माण ज्य़ादा आवश्यक है। टाइटिल सूट का निपटारा ज्य़ादा ज़रूरी है। इस समस्या का समाधान अब तक हो गया होता। लेकिन यदि दो-तीन महीने में फैसला आ जाता है तो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी शुरू हो जाएगा। भाजपा मानती है कि यह उसकी हैट ट्रिक होगी।
कानूनी जानकार मानते हैं कि बाबरी मस्जिद में 1885 तक नमाज अता होती थी। 1947 में यहां राम लला की मूर्तियां रखी गईं। उसके बाद नमाज अता करना बंद हो गया और 1992 में बाबरी मस्जिद तोड़ दी गई। अब वहां सिर्फ ज़मीन है। पास में ही रामलला की मूर्तियां है जहां उनकी पूजा होती है। भाजपा चाहती है कि उनके लिए वहां राम का भव्य मंदिर बने।
राम जन्म भूमि विवाद
दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि अयोध्या मामले का फैसला फिलहाल भूमि विवाद के तौर पर ही लिया जाएगा। तीन सदस्यीय पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले को बरकरार रखा है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद में नमाज़ पढऩा इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने इसे बड़ी बेंच में भेजने से भी इंकार कर दिया।
अदालत का यह फैसला 2-1 से आया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा वाली पीठ के इस फैसले से अयोध्या मामले की सुनवाई में आने वाली अड़चन दूर हो गई। पीठ के दो सदस्यों जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि अयोध्या मामले का फैसला सबूतों पर होगा न कि किसी धार्मिक महत्व के आधार पर। इस पर जस्टिस नज़ीर की राय अलग थी। फारुकी केस में धर्म के लिए क्या ज़रूरी है, बिना जांच के इस पर निष्कर्ष निकाला गया। उन्होंने कहा कि जो टिप्पणी संदेह के दायरे में थी उसी को आधार मान कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। उसमें ज़मीन को तीन हिस्सों में बांट दिया। इस रोशनी में फारुकी मामले को 1954 के शिरूर मठ मामले के संदर्भ में देखना ज़रूरी है।