मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार (छह नवंबर) को राम के जरिए अयोध्या में विकास का एक भव्य खाका खींचा। सरयू तीरे हुए भव्य आयोजन में दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला किम जुंग सूक भी मौजूद थी। इस मौके पर सरयू घाट पर तीन लाख दीप जला कर विश्व रिकार्ड भी बना। देश के सभी मीडिया चैनेल को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री राम की सबसे बड़ी और ऊँची मूर्ति के निर्माण की घोषणा करेंगे, लेकिन उन्होंने अपने पन्ने नहीं खोले। उन्होंने सदियों पहले से एशियाई देशों में राम कथा की लोकप्रियता का उल्लेख किया।
योगी आदित्यनाथ ने जो पहली घोषणा की वह थी कि जनपद फैजाबाद अब अयोध्या जनपद के नाम से जाना जाएगा। पहले से अयोध्या फैजाबाद जिले में हैं उन्होंने राम के पिता दशरथ के नाम पर अयोध्या में चिकित्सा कॉलेज खोलने की घोषणा की। इसके अलावा प्रस्तावित हवाई अड्डे का नाम भी राम पर ही रखने की बात कही। मुख्यमंत्री ने इसके अलावा सत्तरह सौ छह करोड़ की विकास योजनाओं से संबंधित शिलान्यास भी किया।
मुख्यमंत्री ने यह बात ज़रूर साफ कर दी कि राज्य व देश में अगले ही साल लोकसभा चुनाव होने को हैं, इसलिए राम न केवल प्रदेश बल्कि देश में भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, मैं डेढ़ साल में यहां छह बार आया हूं। इस दौरान सड़कों को चौड़ा कराया। बिजली के लटकते तारों को अंडर ग्राउंड कराया। घाटों को सुंदर बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को याद करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने नेपाल, भारत और श्रीलंका को आपस में जोड़ा । अब तक अयोध्या विकास के लिए तड़प रही थी। आज यह विकसित रूप में जगमगाती दिख रही है। अभी विकास के और आयाम स्थापित किए जाएंगे।
मुख्यमंत्री की इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद को अयोध्या मंडल करने पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार 13 नवंबर को हुई कैबिनेट बैठक में आम सहमति से मंजूर किया गया। राज्य सरकार ने धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दोनों मंडलों इलाहाबाद और फैजाबाद का नाम बदला साथ ही फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या करने के फैसले पर मुहर लगा दी। अयोध्या मंडल में पांच जिले अयोध्या, अंबेडकर नगर, बाराबंकी, सुल्तानपुर और अमेठी रहेंगे। इसी तरह इलाहाबाद मंडल में प्रयागराज, फतेहपुर, कौशांबी और प्रतापगढ़ जिले रहेंगे।
भूमि विवाद पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद पर जल्दी सुनवाई की अपीलों को खारिज कर दिया। सोमवार (12 नवंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर जल्दी सुनवाई कराने की अपीलों को अस्वीकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एसके कौल पहले ही एक उपयुक्त बेंच के जरिए जनवरी में इस मामले की सुनवई की बात कह चुके हैं। बेंच ने कहा कि हमने पहले ही इस संबंध में आदेश दिया है। जो अपीलें आ रही हैं उन्हें इस कारण खारिज किया जाता है।
अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से वकील बरुण कुमार सिन्हा की अपील पर अदालत ने यह फैसला लिया। सर्वोच्च अदालत ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर एक उपयुक्त बेंच के जरिए जनवरी के पहले सप्ताह में सुनवाई का आदेश दिया है। यह बेंच ही सुनवाई का कार्यक्रम बनाएगी।
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील सीएल वैद्यनाथ उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से और रामलला मूर्ति की ओर से अदालत में पेश हुए। इन्होंने जल्द सुनवाई के लिए अपील की थी।
इसके पहले तीन जज की बेंच ने दो:एक बहुलता से इंकार कर दिया था कि इसे पांच जज की बेंच को भेजा जाए जो 1994 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करे कि एक मस्जिद इस्लाम से जुड़ी नहीं होती। यह मामला अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। एपेक्स कोर्ट की तब अध्यक्षता कर रहे थे तब के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा। उन्होंने कहा कि साक्ष्य के आधार पर सिविल सूट का निपटारा होना चाहिए।
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 14 अपील फाइल हुई थी। जिन्हें चार सिविल सूट में दायर किया गया था कि 2.77 एकड़ भूमि को तीन पार्टियों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा, और रामलला के बीच बांट दिया जाए।