अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अर्से से चली आ रही एक मंाग है। बहुसंख्यकों की आस्था इससे जुड़ी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामजन्म भूमि विवाद को तीन पक्षों में बांटने का फैसला लिया था जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपीलें हैं। 28 अक्तूबर से इस मुद्दे पर सुनवाई होनी थी। पर उस पर जनवरी से सुनवाई एक उपयुक्त बेंच द्वारा कराने का फैसला आया। इस पर संत समाज और राजनेता काफी मुखर हो उठे। संतो ने दो दिन की बैठक नई दिल्ली में की और धर्मादेश दिया कि केंद्र सरकार राम मंदिर निर्माण के संबंध में एक आर्डिनेस लाए। आरएसएस ने चेतावनी दी कि 1992 की तरह फिर आंदोलन शुरू कर सकते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि 2019 चुनावों व राज्यों के चुनाव में भावनाएं जगाई जा रही हैं। राज्य सभा में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा निजी सदस्य के बिल बतौर यह मुद्दा सदन में लाना चाहते हैं।
उधर सुदूर केरल में सबरीमाला मंदिर में दस से पचास साल तक की महिलाओं के भी मंदिर प्रवेश पर खासी सरगरमी है। सुप्रीमकोर्ट ने इस भेदभाव के खिलाफ 28 सितंबर को एक आदेश दिया था। आदेश के बावजूद उग्र श्रद्धालुओं ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया। पूरे राज्य में पक्ष और विपक्ष में खूब आंदोलन चले। राज्य सरकार और संघ परिवार में खासी तनातनी जारी है। विभिन्न पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश को दरकिनार तो किया लेकिन उसे जारी रखते हुए पुनर्विचार की बात कही। इसके बाद से आंदोलन का नया दौर शुरू हो गया है।
सवाल उठता है कि यदि अदालत का आदेश नहीं मानना है तो अदालतों में अपील ही क्यों? लेकिन यह भी साफ है कि देश की बहुसंख्यक जनता की न्याय पर आस्था है और वह चाहती है कि न्याय ही हो। न्याय में दबे पांव राजनीति हावी न हो।
एक गौरवपूर्ण देश में विविध धर्म-संप्रदाय हैं जिसके कारण भारत की पूरी दुनिया में अनोखी शान रही है। लेकिन अब वह आजादी शायद नहीं है।
राम मंदिर निर्माण तो होगा
अयोध्या में रामजी चाहेंगे तो ही मंदिर निर्माण होगा। सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई टालने, मोदी सरकार के अध्यादेश लाने और बहुमत में राज कर रही भाजपा के नेतृत्व की एनडीए सरकार के प्रस्ताव सदन में लाने पर भी राम मंदिर निर्माण शुरू नहीं होगा।’ ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास स्वर्गाश्रम में एक बाबा ने गंगा की तेज लहरों को देखते हुए कहा।
संतों की अखिल भारतीय संत समिति के तीन-चार नवंबर को दिल्ली में हुए सम्मेलन में भी ये बाबा गए थे। लेकिन उन्हें आयोजकों में प्रमुखता नहीं दी। वे लौट गए। संत समिति ने अयोध्या में बैठक के बाद अब छह दिसंबर से मंदिर निर्माण पर मुहिम पूरे देश में छेडऩे का संकेत दिया है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कहा है जो राम का नहीं, हमारे काम का नहीं। अपनी दो दिन की बैठक में सरकार से अपील की ‘सरकार जमीन अपने हाथ में ले और मंदिर बनाने की राह प्रशस्त करे।’ भाजपा की पिछली सरकार में केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि विरोधी पार्टियों से किसी भी तरह के संवाद की गुंजायश अब नहीं है। भाजपा के पूर्व सांसद और राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य राम विलास वेदांती ने कहा कि मंदिर किसी अध्यादेश या कानून से नहीं, सिर्फ आपसी सहमति से ही बन सकता है।
उधर भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख जनवरी करके हिंदू समाज और हिंदू समर्थकों को खासा निराश कर दिया है। पहले अक्तूबर में 29 को सुनवाई होनी थी लेकिन बाद में इस मामले को जनवरी तक टाल दिया। इससे लगता है कि अदालती देर से मंदिर के बारे में हालात फिर 1992 जैसे हो गए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी ज़रूरत पडऩे पर पूरे देश में आंदोलन की घोषणा की है। यानी पूरी तैयारी है कि अदालत की सुनवाई का इंतजार किए बिना सरकार से अध्यादेश या सदन में प्रस्ताव पास न होने पर राम भक्तों की फिर जन आंदोलन की तैयारी।
उत्तरप्रदेश से आए स्वामी प्रज्ञानंद ने कहा कि गुजरात में जिस तरह सोमनाथ मंदिर बना था उसे ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार को राम जन्मभूमि में राम मंदिर ज़रूर बनाना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद का कहना था कि आज जैसी अच्छी स्थिति कभी संभव ही नहीं थी। राम भक्त नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और दूसरे राम भक्त योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री हैं। मोदी भगवान राम के ही एक अवतार पुरुष हैं। यदि राम मंदिर नहीं बना तो इसे ज्य़ादा चकित करने वाला कुछ और नहीं।
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महा सचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती जो वृंदावन से आए थे, उन्होंने कहा कि यदि मुस्लिम समाज श़रिया अदालतें रखते रहेंगे तो संत समिति भी केसरिया अदालतें शुरू करेगी। यह सिर्फ हिंदुओं की जिम्मेदारी नहीं है कि वे संविधान का पालन करें। सरस्वती ने कहा कि जज से मंदिर के मुद्दे पर यह पूछना जायज है कि वह जज के रूप में काम कर रहा है और उसे तनख्वाह के रूप में जनता का धन मिलता है।
स्वामी चिन्मयानंद ने कहा, भाजपा को 2014 में मिला जनादेश गंवा नहीं देना चाहिए। अदालत शायद फैसला लेना ही नहीं चाहती। प्रधानमंत्री के पचपन इंच के सीने ने जो कमाल सर्जिकल स्ट्राइक और विमुद्रीकरण (नोटबंदी) पर दिखाया वह अब अयोध्या का फैसला कर दिखाना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के महासचिव सुरेश भैय्या जी जोशी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामलों की सुनवाई की जो तारीख बढ़ा कर जनवरी कर दी है उससे हिंदू जनमानस बहुत दुखी है। इस मामले को प्रमुखता से लिया जाना चाहिए था। हिंदू इससे खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। संभव है कि यदि ज़रूरत हुई तो फिर 1992 के रामजन्मभूमि आंदोलन जैसी शुरूआत करनी पड़े।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुंबई के बाहरी इलाके में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की तीन दिन की बैठक के बाद दो नवंबर को प्रेस में बातचीत में यह जानकारी दी। इस बैठक में पूरे देश से आए संघ के बड़े-बड़े नेता और पदाधिकारी थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी इसमें शामिल हुए।
आरएसएस के महासचिव सुरेश भैय्या जी जोशी ने कहा कि यदि ज़रूरत हुई तो हम राम मंदिर निर्माण में कतई नहीं हिचकेंगे। आरएसएस सरकार पर कतई दबाव नहीं डाल रहा है क्योंकि हम कानून और संविधान की इज्ज़त करते हैं। उन्होंने कहा कि इस मसले पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी चर्चा हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के इंतज़ार में काफी समय निकल गया है। पहले इस पर सुनवाई की तारीख 29 अक्तूबर तय की गई थी। हम सब दीवाली से पहले अच्छी खबर का इंतजार कर रहे थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख ही और आगे बढ़ा दी।
आरएसएस के नेता ने यह ज़रूर माना कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानूनी विधान ज़रूरी है।
राम मंदिर जल्द न बना तो आत्मदाह
हरिद्वार के साधु, संत महात्मा अयोध्या में राममंदिर निर्माण को लेकर कुछ ज्य़ादा ही बयानबाजी में लगे है। बाबा रामदेव आश्रम चेरिटेबल समिति के संस्थायक सीताशरण दास का कहना है कि केंद्र सरकार जल्द अध्यादेश जारी कर मंदिर का निर्माण करे। कोई समयाविधि न बता कर वे चेतावनी देते हैं कि हर की पौड़ी पर आत्मदाह करेंगे। उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर का निर्माण कराने का वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदू संतों और समाज से किया। लेकिन चार साल में से वे मंदिर नहीं बनवा सके। वे गंगा की शुद्धता, अविरलता और निर्मलता पर भी कम बात करते हैं। शहर में सड़कों, पेयजल की बर्बादी पर नहीं के बराबर बोलते हैं। वे तीर्थयात्रियों की परेशानियों पर भी कुछ नहीं बोलते।