बहुचर्चित लड़ाकू विमान – राफेल – को लेकर सर्वोच्च न्यायालय शुक्रवार (१४ दिसंबर) को फैसला सुना सकता है। इस मामले पर सुनवाई सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने दायर याचिकाओं पर १४ नवंबर को सुनवाई पूरी की थी। भारत की राजनीति के लिहाज से भी राफेल खरीद का मामला बहुत अहम बन चूका है।
गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस मामले को संसद और संसद से बाहर जोरशोर से उठाकर खरीद में भ्रष्टाचार का आरोप लगते रहे हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में भी राहुल ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। राहुल का आरोप रहा है कि उसका कहना है कि सरकार एक विमान १,६७० करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि यूपीए सरकार ने प्रति विमान ५२६ करोड़ रुपये कीमत तय की थी।
सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद मोदी सरकार ने पिछले दिनों इंडियन एयरफोर्स के लिए खरीदे गए ३६ राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत को लेकर सील बंद लिफाफे में कोर्ट में कागज़ सौंपे थे। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि फ्रांस से ३६ लड़ाकू राफेल विमानों की खरीद में २०१३ की रक्षा खरीद प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया। सरकार ने यह भी कहा है कि बेहतर शर्तों’ पर बातचीत की गई है। केंद्र ने इस सौदे से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की मंजूरी की बात भी अपने जवाब में कही है।
याद रहे इस सौदे में कथित अनियमितता का आरोप सबसे पहले वकील मनोहर लाल शर्मा ने एक पीआईएल ( जनहित याचिका) दायर करके लगाया था। बाद में एक और वकील विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था। इस सौदे को लेकर आप पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी याचाकि दायर की थी। इसके बाद भाजपा के दो पूर्व मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक अलग याचिका दायर की।
इन तमाम याचिकाओं में अनुरोध किया गया है कि लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे में कथित अनियमितताओं के लिए सीबीआई को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया जा सके।