फ्रांस के एक अखबार के सनसनीखेज़ खुलासे के बाद विवादित राफेल लड़ाकू विमान खरीद मामला फिर चर्चा में आ गया है। इस अखबार ”ले मोंड” ने खुलासा किया है कि फ्रांस सरकार ने अनिल अंबानी की कंपनी पर बकाया १४३.७ मिलियन यूरो (करीब ११२५.१४ करोड़ रुपए) के टैक्स बकाए को माफ कर दिया था। फ्रांस सरकार ने यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राफेल सौदे की घोषणा के फौरन बाद लिया था।
पीएम मोदी ने जिस सौदे की घोषणा की थी उसके मुताबिक राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट का अनिल अंबानी की सिर्फ दो सप्ताह पुरानी कंपनी के साथ करीब ३०,००० करोड़ रुपए का ऑफसेट करार हुआ था। ”ले मोंड” ने खुलासा किया कि फ्रांस सरकार ने इस टैक्स देनदारी को माफ करने के एवज़ सिर्फ ७.३ मिलियन यूरो (करीब ५७ करोड़ रुपए) में मामला रफा-दफा कर दिया था।
अखबार के इस खुलासे के बाद मोदी सरकार के लिए चुनाव के बीच फिर मुसीबत भरी खबर आई है। हालांकि, अखबार की रिपोर्ट के बाद रिलायंस कम्यूनिकेशंस ने सफाई दी है कि टैक्स सेटलमेंट में कोई गड़बड़ी नहीं हुई। उधर रक्षा मंत्रालय ने ”राफेल डील और टैक्स मसले को एक साथ जोड़कर देखने को गुमराह करने वाली शरारत” करार दिया है। इस बीच नई दिल्ली में फ्रांस के दूतावास ने कहा है कि ”टैक्स सेटलमेंट पूरी तरह नियम-कानूनसम्मत था और यह किसी राजनीतिक दखल का विषय नहीं था”।
फ्रांस के नामी अखबार में राफेल से जुडी यह खबर आने बाद रक्षा मंत्रालय की प्रतिक्रिया पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया – ”रक्षा मंत्रालय प्राइवेट कारपोरेट का आधिकारिक प्रवक्ता बन गया है। इसे कहते हैं, चोर की दाढ़ी में तिनका।”
कुछ रोज पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के राफेल को लेकर ”द हिन्दू” अखबार की ख़बरों को सबूत के रूप में मानने और इस समभंद में सरकार की अर्जी खारिज होने के बाद मोदी सरकार में बैचेनी है। अब फ्रांस के अखबार में खुलासे के बाद चुनाव के बीच मोदी सरकार को घेरने में विपक्ष, खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कोइ कसर नहीं उठा रहे। राहुल ही राफेल मुद्दे पर पीएम मोदी के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं।
गौरतलब है कि फ्रांस के अखबार ‘ले मोंड’ ने शनिवार को अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि अप्रैल २०१५ में पीएम मोदी के पैरिस में राफेल डील के ऐलान के कुछ महीनों बाद फ्रांस में रिलायंस कम्यूनिकेशन की सब्सिडियरी कंपनी के १४.३७ करोड़ यूरो (करीब ११२५.१४ करोड़ रुपए) का टैक्स माफ कर दिया गया था।
फ्रांस का पक्ष
रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया में भारत में फ्रांस के राजदूत का कहना – ”२००८ से २०१२ की अविधि से जुड़े टैक्स विवाद के मामले में फ्रेंच टैक्स अथॉरिटीज और टेलिकॉम कंपनी रिलायंस फ्लैग के बीच ग्लोबल सेटलमेंट हुआ था। यह सेटलमेंट पूरी तरह कानून सम्मत और टैक्स ऐडमिनिस्ट्रेशन के सामान्य प्रैक्टिस को चलाने वाले नियामकीय प्रावधानों के तहत था। यह किसी भी राजनीतिक दखल का विषय नहीं था।’
भारत का पक्ष
रिपोर्ट पर भारत के रक्षा मंत्रालय ने कहा – ”राफेल डील और टैक्स मसले को एक साथ जोड़कर देखना गुमराह करने वाली शरारती कोशिश है। हमने एक प्राइवेट कंपनी को मिले टैक्स छूट और भारत सरकार के राफेल सौदे के बीच संबंध की अटकल जोड़ने वालीं रिपोर्ट्स को देखा है। न ही टैक्स कन्सेशन की अवधि और न ही कन्सेशन की विषयवस्तु का मौजूदा सरकार द्वारा किए गए राफेल डील से कोई संबंध है। टैक्स मसले और राफेल मामले को एक साथ जोड़कर देखना पूरी तरह गलत और पक्षपातपूर्ण है बल्कि झूठी सूचना देने की शरारती कोशिश है।”
इससे पहले ”ले मोंड” के दक्षिण एशिया संवाददाता जूलियन बोसो ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर इस पूरी खबर के बारे में जानकारी दी –
”अनिल अंबानी के एक टेलीकॉम कंपनी फ्रांस में रजिस्टर्ड है जिसका नाम रिलायंस एटलांटिक फ्लैग फ्रांस है। इस कंपनी पर टैक्स की देनदारियों की फ्रांस के टैक्स अधिकारियों ने जांच की और पाया कि कंपनी ने २००७ से २०१० के बीच ६० मिलियन यूरो का टैक्स नहीं चुकाया है। रिलायंस ने इस देनदारी के बदले ७.६ मिलियन यूरो (करीब ५७ करोड़ रुपए) चुकाकर मामला रफा-दफा करने की पेशकश की। लेकिन फ्रांस के टैक्स अधिकारियों ने इसे ठुकरा दिया। अधिकारियों ने मामले की और गहराई से जांच की और पाया कि २०१० से २०१२ के बीच रिलायंस पर कुल देनदारी करीब ९१ मिलियन यूरो की है। अप्रैल, २०१५ में प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से ३६ राफेल विमान खरीदने के सौदे का ऐलान किया। उस समय तक रिलायंस पर फ्रांस सरकार के टैक्स की देनदारी करीब १५१ मिलियन यूरो हो चुकी थी।”