राफेल लड़ाकू विमान की खरीद पर मचे बबाल और कैग रिपोर्ट संसद में होने के बीच राफेल को लेकर एक और खुलासा हुआ है। रक्षा मंत्रालय के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने राफेल डील को पिछली यूपीए-२ सरकार के समय किये सौद्दे से महंगा माना है।
इसका खुलासा अंग्रेजी अखबार ”द हिंदू” के आज के अंक में किया गया है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक ये तीनों अधिकारी फ्रांस की कंपनी दसॉ से बातचीत करने वाली रक्षा मंत्रालय की टीम में शामिल थे। इन अधिकारियों ने मोदी सरकार की डील के खिलाफ अपने नोट में यह माना था कि डील महंगी है। नॉट में यह भी कहा कि इसमें पहले चरण के तहत विमानों की आपूर्ति भी देर से हो रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय निगोशिएशन टीम (एनआईटी) में कुल सात लोग शामिल थे, जिनमें से तीन वरिष्ठ एक्सपर्ट ने साफ तौर पर यह माना था कि फ्लाइ अवे कंडीशन में ३६ राफेल विमान खरीद का मोदी सरकार का सौदा यूपीए सरकार के दसॉ एविएशन से १२६ विमान खरीद के प्रस्ताव से ”बेहतर शर्तों” पर नहीं था।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन अधिकारियों ने यह निष्कर्ष रखा था कि ३६ राफेल विमान के नए सौदे में पहले चरण में १८ विमान की आपूर्ति का शेड्यूल भी यूपीए सरकार के दौरान मिले प्रस्ताव की तुलना में धीमा है। रिपोर्ट में अखबार ने डील की बातचीत में शामिल रक्षा मंत्रालय के इन तीन एक्सपर्ट अधिकारीयों के नाम एडवाइजर (लागत) एमपी सिंह जो इंडियन कॉस्ट एकाउंट्स सर्विस में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी थे, फाइनेंशियल मैनेजर (एयर) एआर शुले और एक्विजिशन मैनेजर (एयर) और संयुक्त सचिव राजीव वर्मा बताये हैं। तीनों अधिकारियों ने बातचीत की प्रक्रिया पूरी होने पर पहली जून, २०१६ को डिप्टी चीफ ऑफ एयर स्टाफ (डीसीएएस) को एक कड़े विरोध वाला नोट भेजा था। डीसीएएस ही इस बातचीत के दल का नेतृत्व कर रहे थे। अखबार ने इस आठ पेज के पूरे डिसेंट नोट को प्रकाशित किया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक यह नोट दोनों देशों के बीच २३ सितंबर, २०१६ को हुए अंतर सरकारी समझौते से तीन महीने पहले ही दे दिया गया था। नोट में कहा गया है – ”एस्केलेशन के आधार पर फ्रांस सरकार ने विमानों की जो फाइनल प्राइस तय की, वह पहले तय बेंचमार्क कीमत से ५५.६ प्रतिशत ज्यादा है।”