मोदी सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों के बारे में तलब की गई जानकारी सीलबंद लिफाफे में सबमिट कर दी। साथ ही केंद्र सरकार ने राफेल विमान खरीद के फैसले की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी के दस्तावेज भी याचिककर्ताओं को सौंप दिए।
रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं को सौंपे अपने दस्तावेजों में कहा है कि राफेल की खरीद में तमाम प्रकियाओं का पालन किया गया है। इसमें कहा गया है कि यह सौद्दा उन्हीं प्रक्रियाओं के तहत किया गया जो यूपीए के समय थीं। सरकार ने कहा है कि राफेल विमान का सौद्दा २३ सितम्बर, २०१८ को किया गया।
केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता को दिए दस्तावेज में कहा है कि खरीद में सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया और कैबिनेट कमेटी की भी मंजूरी ली गयी। सरकार के मुताबिक इस प्रक्रिया के लिए फ्रांस की सरकार से करीब एक साल तक बात चली। सरकार ने दस्तावेजों में यह भी कहा कि सीसीएस (कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी) से अनुमति लेने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस दस्तावेज का शीर्षक ”३६ राफेल विमानों की खरीद में फैसले लेने की प्रक्रिया की विस्तार से जानकारी” है।
सरकार ने यह भी कहा है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार का कोई रोल नहीं रहा। नियमों के मुताबिक विदेशी निर्माता किसी भी भारतीय कम्पनी को बतौर ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है। कहा कि जब भारतीय वार्ताकारों ने ४ अगस्त, २०१६ को ३६ राफेल जेट से जुड़ी रिपोर्ट पेश की, तो इसका वित्त और कानून मंत्रालय ने भी आंकलन किया और सीसीएस ने २४ अगस्त, २०१६ को इसे मंजूरी दी। इसके बाद भारत-फ्रांस के बीच समझौता २३ सितंबर, २०१६ को हुआ।
गौतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने ३१ अक्टूबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता को भी यह दस्तावेज उपलब्ध कराये। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राफेल विमान खरीद की प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी जाए। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई अब १४ नवंबर को करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ऐडवोकेट प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी। याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी।