राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई के बीच बड़ी खबर यह है कि वहां अब लगातार राहुल गांधी की पसंद के नेता ही अध्यक्ष बन रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू ताजपोशी के बाद पिछले एक साल में राज्यों में अध्यक्ष बनने वाले राहुल गांधी की पसंद की चौथे नेता हैं। उनसे पहले तेलंगाना में कई दिग्गजों को किनारे कर राहुल के भरोसेमंद सांसद रेवंत रेड्डी, महाराष्ट्र में थोराट की जगह विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिलवाकर नाना पटोले और केरल में विधानसभा चुनाव में हार के बाद के सुधाकरण को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जबकि वीडी सतीशन को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। राहुल केरल से ही सांसद हैं। पंजाब के बाद अब अन्य राज्यों के अलावा राजस्थान में भी सचिन पायलट समर्थकों में उम्मीद जगी है कि उनका मामला भी जल्द निपटा दिया जाएगा। यूपी में पहले ही दो बार के विधायक अजय कुमार लल्लू प्रदेश अध्यक्ष हैं जो प्रियंका गांधी की पसंद हैं।
तेजतर्रार और जनता में अपने भाषणों के तरीके से लोकप्रिय नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर और कार्यकारी अध्यक्षों के रूप में अपनी पसंद के नेताओं को जगह देकर आलाकमान ने बता दिया है कि पार्टी के फैसले करने का अधिकार किसका है। आलाकमान ने इसके लिए पर्याप्त समय लिया और पंजाब के सभी मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं से विस्तृत बातचीत की। कांग्रेस में राज्यों के इस फेरबदल में राहुल गांधी की छाप साफ़ दिख रही है।
हाल के महीनों में राज्यों के कांग्रेस नेता पार्टी आलाकमान को जिस तरह हलके से ले रहे थे, उनको भी पंजाब में सिद्धू को अध्यक्ष बनाकर इस जरिये सन्देश दे दिया गया है। पंजाब में ऐसा माना जाता है कि मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह उनका विरोध कर रहे थे। अब आलाकमान ने यह सन्देश दे दिया है कि मुख्यमंत्री का काम चुनाव के समय जनता से किये गए वादे पूरे करना है और संगठन में किसे क्या बनाना है, यह पार्टी आलाकमान का अधिकार है।
पंजाब में हाल के घटनाक्रम में कैप्टेन अमरिंदर सिंह को उनके ही उत्साही समर्थकों के दबाव बनाने की इरादे से मीडिया को दिए गए इस ‘फीडबैक’ से बड़ा नुक्सान पहुंचा है कि आलाकमान यदि ‘कैप्टेन की बात नहीं मानती है’ तो वह ‘भाजपा में जा सकते हैं’। पंजाब में किसान यदि किसी से सबसे ज्यादा खफा हैं तो वह भाजपा है। ऐसे में कैप्टेन अमरिंदर के भाजपा में जाने के शोर से सिर्फ उनका नुक्सान ही हुआ है।ऊपर से कांग्रेस के भीतर तक कैप्टेन से इस बात पर नाराजगी है कि पिछले चुनाव के कई वादे पूरे नहीं हुए हैं। यहाँ तक कि सिद्धू भी यह बात उठाते रहे हैं।
सिद्धू भाजपा से लगातार तीन बार अमृतसर से सांसद रहे हैं जो जनता में उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है। सिद्धू जनहित के मुद्दों से समझौता करने वाले नेता नहीं माने जाते और सबसे बड़ी बात यह है कि पंजाब में उन्हें बादलों का कट्टर राजनीतिक विरोधी माना जाता है। यह बात कैप्टेन के मामले में नहीं कही जा सकती। उन्हें बादलों के प्रति ‘सॉफ्ट’ माना जाता है जिससे अकाली दल की सरकारों के समय ‘पीड़ित’ होने वाले कांग्रेसी नाराज रहते रहे हैं। उन्हें उम्मीद बंधी है कि सिद्धू के नेतृत्व में कांग्रेस ‘बादलों से मुक्त रहकर’ अपनी दबंग छवि बनाएगी।
पंजाब में पार्टी अध्यक्ष बनकर सिद्धू निश्चित ही अगले विधानसभा के लिए मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन गए हैं। बेशक कांग्रेस ने कैप्टेन के ही नेतृत्व में पंजाब में अगला चुनाव लड़ने की बात कही है, यह नहीं कहा है कि कांग्रेस के चुनाव जीतने पर वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। सिद्धू यदि ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे, तो वे निश्चित ही एक मजबूत दावेदार होंगे।
सिद्धू के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष चुनने में भी पार्टी आलाकमान ने कैप्टेन के ‘दबाव’ को दरकिनार किया है और संगत सिंह गिलजियां, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत सिंह नागरा को चुना है, जिन्हें पूरी तरह कैप्टेन की पसंद तो नहीं ही कहा जा सकता, भले इनमें से दो नेता कभी कैप्टेन के नजदीकी रहे हों। राजनीति के काफी जानकार मानते हैं कि इतना अनुभवी होने के बावजूद कैप्टेन ने सिद्धू के मामले में बेवजह की उलझनें पैदा कर लीं, जिनकी ज़रुरत ही नहीं थी।
कांग्रेस आलाकमान हमेशा से कैप्टेन के साथ खड़ी रही है, लेकिन हाल के घटनाक्रम से यह साफ़ सन्देश गया कि अमरिंदर अपनी मर्जी चलाने के लिए आलाकमान की ‘बेअदबी’ भी कर सकते हैं। उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था और वे मुख्यमंत्री बने थे और अब वैसे ही सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। संकेत समझे जा सकते हैं।
इस तरह राहुल गांधी की टीम राज्यों में खड़ी हो रही है। दिल्ली में पिछले साल तब 44 साल के अनिल चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उनके काम की समीक्षा होनी है। अब राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड में नए अध्यक्ष बनाये जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश भगेल अपने काम से पार्टी आलाकमान में अपना भरोसा बनाये हुए हैं, हालांकि, वहां नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना है। भगेल को जब मुख्यमंत्री बनाया गया था तब टीएस सिंह देओ भी दावेदार थे। माना जाता है कि दोनों को आधे-आधे समय मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला अपनाया गया था लेकिन भगेल ने एक मुख्यमंत्री के रूप में इतने कम समय में ही जिस तरह अपनी चमकदार छवि बनाई है, उनको हटाने से कांग्रेस को नुक्सान भी हो सकता है। ऐसे में हो सकता है देओ को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाए।
राहुल के समर्थकों सांसद रेवंत रेड्डी को तेलंगना, महाराष्ट्र में नाना पटोले, केरल में के सुधाकरण को हाल के महीनों में प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा चुका है। देखना है पंजाब में सिद्धू की तैनाती के बाद अब अन्य राज्यों में क्या होता है।