देश में एक दल से कई-कई दलों का उदय होता रहा है। यह राजनीतिक दलों के विखण्डन और उनसे नयी पार्टियों के उदय में भी देखा जाता है। शिक्षाविद् क्षेत्रीय दलों के उदय को एक जटिल और बहुआयामी घटना मानते हैं, जो वास्तव में 19वीं शताब्दी में देश में उभरी क्षेत्रीय चेतना और स्वतंत्रता के बाद सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के बीच अंतर्सम्बन्ध का नतीजा है। आज़ादी से पहले भी पूरे देश में राजनीतिक दल बहुतायत में थे; लेकिन तब उनका एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों के साम्राज्यवाद से आज़ादी हासिल करना था।
सामाजिक सुधार आन्दोलनों से राजनीतिक दल भी उभरे। हिन्दुओं और मुसलमानों के अपने स्वयं के राजनीतिक प्रभुत्व वाले आन्दोलन भी उठे, जिन्होंने बाद में ख़ुद को राजनीतिक दलों में स्थापित किया। संघीय व्यवस्था में लोकतांत्रिक राजनीति के प्रभुत्व के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय दलों का गठन असामान्य नहीं है। साथ ही एक विविध समाज में मतभेद भी क्षेत्रीय राजनीति पर अपना प्रभाव डालते हैं, जो नयी पार्टियों को जन्म देता है।
अकु श्रीवास्तव पत्रकारिता, सम्पादन और लेखन की लम्बी पारी खेल चुके हैं। उनकी नयी किताब ‘सेंसेक्स क्षेत्रीय दलों का’ राज्यों की राजनीति की जानकारी के लिहाज़ से एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है।
यह जानना किसी के लिए भी बहुत दिलचस्प हो सकता है कि एक विशेष पार्टी का गठन कब हुआ? किन परिस्थितियों के कारण इसका गठन हुआ? और यह अब कैसे कार्य कर रही है? हिन्दी में अपनी तरह की यह पहली किताब है, जो इन सभी जिज्ञासाओं का समाधान करती है। पुस्तक में क्षेत्रीय दलों की चर्चा है; लेकिन विषय से परे जाकर और कांग्रेस से टूटकर बनी नयी पार्टियों के इतिहास को भी इसमें संजोया गया है, जो पुस्तक को अधिक प्रासंगिक बना देता है।
क्षेत्रीय दलों के उदय ने निर्विवाद रूप से भारत की चुनावी राजनीति की प्रकृति को बदला है। सन् 1990 के दशक की शुरुआत में और अन्त में क्षेत्रीय दलों की स्थिति में अभूतपूर्व वृद्धि के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी प्रतिस्पर्धा में शक्ति का एक नया सन्तुलन उभरा; और यह था- जातिगत और सामुदायिक राजनीति। क्षेत्रीय दलों ने वहाँ न केवल अपने-अपने राज्यों, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज करायी। अब राज्यों के भीतर अपनी पसन्दीदा क्षेत्रीय पार्टी को मतदान करने वाले मतदाता लोकसभा चुनाव में अपना नज़रिया बदल लेते हैं। इस नये चलन को रेखांकित करते हुए क्षेत्रीय दलों की दिलचस्प कहानियाँ इस किताब में हैं।
पाठकों की सुविधा के लिए पुस्तक को पाँच भागों में विभाजित किया गया है। पुस्तक के आरम्भ में एक विस्तृत ब्रीफिंग है, जिसमें लेखक ने क्षेत्रीय दलों और राष्ट्रीय दलों के बीच के अन्तर को स्पष्ट किया है और भारतीय राजनीति पर उनके बढ़ते और गिरते प्रभाव पर प्रकाश डाला है। लेखक क्षेत्रीय दलों के उदय को स्वतंत्रता के बाद के इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक मानते हैं।
लेखक का मानना है कि असन्तुलित क्षेत्रीय विकास, प्रतिस्पर्धा और जातीयता, जाति और धर्म की बढ़ती भावना आदि ने इस आग में घी डाला। इस पुस्तक में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की राजनीति, नेताओं और घटनाओं का व्यापक ब्योरा है। पुस्तक में लेखक ने पक्षों और उनके गठन के पीछे की कहानी के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने इन दलों के गठन, विकास और चुनावी सफलता में प्रमुख हस्तियों की भूमिका को भी रेखांकित किया है।
लेखक : अकु श्रीवास्तव
पुस्तक का नाम : सेंसेक्स क्षेत्रीय दलों का
प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
मूल्य : 400/- रुपये