देश में 16 करोड़ से ज़्यादा लोग शराब का सेवन करते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, यह संख्या कुल आबादी की 12 से 15 फीसदी तक के आसपास है और आबादी के हिसाब से यह संख्या बढ़ रही है। शराब की खपत और इससे मिलने वाला राजस्व की बढ़ रहा है। नशा एक बुराई के तौर पर है। लिहाज़ा इसका प्रचार-प्रसार सामाजिक तौर पर ठीक नहीं है। चाहे ऐसा न भी हो, बावजूद इसके शराब सेवन का चलन बढ़ रहा है और आॢथक युग में इसके सिमटने की गुंजाइश नहीं है। शराब की बिक्री का राजस्व सरकारों के लिए सबसे बड़ा कारक है। राज्यों के कुल बजट का एक बड़ा भाग इसी के माध्यम से मिलता है। लेकिन यह भी कहा जा सकता है कि गुजरात और बिहार जैसे राज्यों में, जहाँ शराबबन्दी है; वहाँ भी तो सरकारें चल रही हैं।
हर चीज़ के दो पहलू होते ही हैं। लॉकडाउन में शराब की बिक्री पर रोक को शुरुआत में ठीक माना गया, लेकिन बाद में इसे चालू करने की आवाज़ उठने लगी। अंदाज़ा नहीं था कि इससे सोशल डिस्टेंस बिगड़ेगा और कोरोना कहर बनकर टूटेगा। मगर शराब की बिक्री नहीं की, तो बिना राजस्व सरकार का चलना मुश्किल होगा। लॉकडाउन में सब कुछ मुश्किल ही तो है। लाखों लोगों के लिए दो जून की रोटी और एक बड़े वर्ग को गला तर करने की दरकार थी। आिखरकार विरोधाभास के बीच शराब के ठेके खुले, तो सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा कवच और कोरोना से होने वाली भयावह मौतों का मंज़र गायब हो गया। कोई डेढ़ माह के बाद शराब मिलने पर मची यह अफरा-तफरी बिल्कुल नयी तो नहीं थी। दिल्ली, मुम्बई, सूरत और अहमदाबाद जैसे कई स्थानों पर श्रमिक अपने गाँव जाने के लिए हज़ारों की संख्या में जुटे। दोनों स्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं। पहली में जहाँ अपने घर पहुँचने की गहरी ललक है, वहीं दूसरी में लत पूरी करने की लालसा है।
लॉकडाउन में देश की अर्थ-व्यवस्था जहाँ पटरी से उतरी, वहीं राज्यों की आॢथक हालत कमोबेश इससे ज़्यादा खराब होने लगी। बावजूद इसके सवाल उठने लगे कि क्या राजस्व के लिए ऐसे हालात में शराब की बिक्री खुलनी चाहिए? 40 दिन के बाद जब ठेके खुलेंगे, तो क्या भीड़ को काबू में रखा जा सकेगा? कहीं लॉकडाउन में अराजकता जैसी स्थिति और कानून व्यवस्था बिगडऩे का खतरा न हो जाए। लॉकडाउन के दूसरे चरण के लिए जहाँ राज्य सरकारें इसे और आगे बढ़ाने पर उतावली थीं, वहीं अब कई राज्यों की सरकारें जल्द-से-जल्द शराब बिक्री की अनुमति के लिए उतावली हो उठी थीं। लॉकडाउन में शराब की बिक्री पर रोक के बावजूद यह चोरी-छिपे बिक रही थी। दो से तीन गुने दाम पर शराब उपलब्ध हो रही थी; लेकिन पैसा सरकार के पास नहीं, बल्कि शराब माफिया के पास जा रहा था। इसका खुलासा हरियाणा में हुआ, जहाँ लाखों शराब की बोतले गोदाम से गायब मिली हैं। करोड़़ों रुपए के इस घोटाले ने बता दिया है कि अन्य राज्य भी इससे अछूते नहीं है। दिल्ली मेें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शराब पर 70 फीसदी कोरोना सेस लगाया। अन्य राज्यों ने इसका अनुसरण किया। कहीं कोई विरोध जैसी बात नहीं। शराब और दवा जैसी चीज़ों के दामों पर कभी कहीं विरोध होता नहीं है। एक बड़े वर्ग की राय में शौक और जान के लिए पैसे नहीं देखे जाते पर वो ज़रूरत के हिसाब से उपलब्ध हो जानी चाहिए।
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सबसे पहले शराब की बिक्री शुरू करने की माँग की पर उन्हें इसकी मंज़ूरी नहीं मिली। उनकी राय में जब केंद्र जीएसटी की बकाया राशि में लेट-लतीफी और अन्य आॢथक मदद करने में हीला-हवाली करगी, तो राज्य को अपने तौर पर राजस्व जुटाना ही होगा। केंद्र से मंज़ूरी मिली, तो पंजाब के मुकाबले अन्य राज्यों ने इसकी पहल कर दी। एक दर्जन से ज़्यादा राज्यों की शुरुआत के बाद पंजाब में इसकी बिक्री शुरू हो सकी।
देश में शराब से राजस्व पौने दो लाख करोड़ के आसपास है। केंद्र के पास राजस्व के और भी माध्यम है पर राज्य सरकारों के लिए यह प्रमुख है। उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष इससे 31 हज़ार करोड़ मिला। वहीं कर्नाटक को 21 हज़ार करोड़, महाराष्ट्र को 18 हज़ार करोड़, पश्चिम बंगाल को 12 हज़ार करोड़ और तेलगांना को 11 हज़ार करोड़ का राजस्व मिला। यह राशि आबादी और खपत के अनुसार कम या ज़्यादा रह सकती है।
केंद्र की अनुमति के बाद राज्यों में शराब के ठेके खुलने लगे, तो इससे अफरा-तफरी जैसा माहौल हो गया। दिल्ली समेत कई राज्यों में पहले दिन हज़ारों की संख्या में लोग जुटे, इसका अनुमान भी था। पर सम्बन्धित सरकारों ने इसे ज़्यादा गम्भीरता से नहीं लिया; लिहाज़ा सोशल डिस्टेंस भी नहीं रहा। कई स्थानों पर पुलिस को बल प्रयोग कर भीड़ हटानी पड़ी, वहीं कानून व्यवस्था का तकाज़ा देकर ठेके बन्द करने की नौबत आयी। अगर ऐसी ही स्थिति रही, तो फिर 40 दिन के लॉकडाउन का क्या मतलब रह जाएगा? यह सब पुलिस प्रशासन की लापरवाही और सरकार की नाकामी ही मानी जाएगी। कोरोना से मामले और ज़्यादा बढऩे से कहीं सरकार फिर से शराब बिक्री पर रोक न लगा दे। इसके लिए लोग ज़रूरत से ज़्यादा खरीदने के लिए उतावले थे। एक साथ बिक्री से कहीं दुकान में स्टाक खत्म होने का खतरा भी पीने वालों को रहा होगा, वरना इतनी भीड़ नहीं जुटती। लोगों के जमावड़े से पहले पुलिस को सब व्यवस्थित करना चाहिए था; लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अब कुछ ढर्रे पर आने लगा है। अब उतनी भीड़ नहीं उमड़ रही। शायद लोगों ने पर्याप्त स्टाक जमा कर लिया हो। सम्भव है, उन्हें लगता है कि सरकारों के पास ठेके खोलने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। व्यंग्य में यह भी कहा जाने लगा कि सरकार के भरोसे न रहो, क्योंकि राजस्व के लिए सरकार खुद शराब का सेवन करने वालों के भरोसे है। कोरोना के मामले जिस तेज़ी से बढ़ रहे हैं, उससे यह वैश्विक महामारी जल्दी से जाने वाली नहीं है। ऐसे में लॉकडाउन कितना लम्बा खिंचेगा? कोई कुछ नहीं कह सकता।
कोरोना को ज़्यादा फैलने से रोकने में लॉकडाउन प्रमुख कवच के तौर पर है और इसके अच्छे नतीजे भी हमारे देश में मिले है; लेकिन पर यह स्थायी तो नहीं रह सकता। अर्थ-व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास होने लगे हैं। बचाव के साथ अर्थ-व्यवस्था को भी बनाये रखना होगा। वरना इसके गम्भीर परिणाम भुखमरी और बेकारी के तौर पर सामने आएँगे। जब विकसित देशों की अर्थ-व्यवस्था कोरोना की वजह से चरमरा गयी है, तो भारत भला इससे कैसे बच सकता है? शराब की बिक्री के राजस्व से तो सरकारें फिर भी नहीं चल सकेंगी। हाँ, इससे कुछ सहारा मिल सकता है। शायद इसी के लिए शराब की दुकानें खोलने का फैसला किया गया।
लॉकडाउन में भी शराब घोटाला
हरियाणा में लॉकडाउन के दौरान करोड़ों रुपये का शराब घोटाला हो गया। खरखौदा (सोनीपत) के सीलबन्द गोदाम से शराब की लाखों बोतलें गायब हो गयीं। दीवार तोडक़र सुनियोजित तरीके से यह चोरी बिना मिलीभगत के नहीं हो सकती। लॉकडाउन के दौरान शराब के हज़ारों बाक्स यहाँ से पार कर दिये गये। अवैध तौर पर पकड़ी यह शराब आबकारी और कराधान विभाग के इस गोदाम में काफी समय से रखी हुई थी। इसे अदालती आदेश के बाद नष्ट किया जाना था। इसके लिए लम्बी प्रक्रिया होती है। लॉकडाउन की वजह से यह काम रुका हुआ था। शराब माफिया ने मौके का पूरा फायदा उठाया।
जब मामला प्रकाश में आया, तो सरकार को गम्भीरता दिखानी पड़ी। जबकि यह सब उसकी नाक के नीचे ही हो रहा था। हज़ारों बॉक्स यहाँ से वाहनों में गये, लेकिन कैसे? यह बड़ा सवाल है। राज्य की सीमाएँ सील थीं। एक ज़िले से दूसरे ज़िले में बिना विशेष अनुमति से आने-जाने पर रोक थी, तो यह सब कुछ कैसे हो गया? आबकारी और कराधान विभाग उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पास है। लिहाज़ा उन्होंने इसकी जाँच के आदेश दिये हैं। गृहमंत्री अनिल विज ने इसे ज़्यादा गम्भीरता से लिया और विशेष जाँच समिति (एसआइटी) के अनुशंसा की। वरिष्ठ आईएएस के नेतृत्व में तीन सदस्यीय टीम गठित होगी। इसमें एक-एक वरिष्ठ पुलिस तथा आबकारी एवं कराधान विभाग के अधिकारी रहेंगे। फिलहाल दो थानाधिकारियों को निलम्बित किया गया है। करोड़ों रुपये के इस घौटाले में शराब ठेकेदारों के अलावा सफेदपोश लोगों की भूमिका है। शराब से लदे वाहन कैसे बेरोक-टोक के गोदाम से अपने-अपने गंतव्य स्थलों तक सकुशल पहुँच गये। चोरी हुई शराब की बिक्री लॉकडाउन के दौरान खूब हुई। हर बोतल तीन से चार गुना दाम पर कालाबाज़ारी में बेची गयी। भ्रष्टाचार मुक्त होने का दावा करने वाली भाजपा सरकार के लिए इस घोटाले को उजागर करना उसे कसौटी पर कसने जैसा होगा। यह घोटाला कुछ शराब ठेकेदार या पुलिस की वजह से नहीं, इसमें कुछ सफेदपोश लोगों की संलिप्तता है। सवाल अब सरकार की मंशा पर रहेगा।