मिलीभगत से नशे की तस्करी जारी, पुलिस महानिदेशक ने दिखायी सख़्ती
सरकार और अफ़सरों की लाख कोशिशों के बावजूद संगीन अपराध बेइंतहा फलने-फूलने लगता है, तो इस बात को पूरी तरह मुहरबंद करता है कि इसके पीछे किसी बड़ी राजनीतिक ताक़त या सरकारी विभागों के गठजोड़ का पहलू जुड़ा हुआ है। राजस्थान में मादक पदार्थों के ख़िलाफ़ अभियान चलाये जाने के बावजूद रोकथाम निरर्थक साबित हो रही है, तो इसकी भी यही वजह हो सकती है।
इस मामले में राजस्थान के पुलिस महानिरीक्षक (डीजीपी) एम.एल. लाठर की रेंज के महानिरीक्षकों से की गयी जवाब तलबी इस बात की पुष्टि करती है। लाठर द्वारा जारी चिट्ठी में ‘वर्दी में छिपे ब्लेक शिप्स’ की रिपोर्ट माँगते हुए बड़ी बेबाकी से कहा गया है कि लगातार सामने आ रही घटनाओं से लगता है कि संगठित अपराध का इतना हौसलामंद होना पुलिस और व्यवस्था से जुड़े व्यक्तियों की जानकारी और मौन स्वीकृति के बिना सम्भव नहीं है। भीलवाड़ा में तस्करों की फायरिंग में जिस तरह दो जवानों की मौत हुई, उसके बाद ही इस बात का ख़ुलासा हुआ है। इसमें सीमावर्ती और नज़दीकी ज़िलों के 13 थाने सन्देह के घेरे में आये हैं।
तस्करों के हौसले बुलंद
सवाल उठा कि जब तस्करों की गाडिय़ाँ इसी रूट से निकल रही थीं, तो पुलिस कैसे बेख़बर हो सकती थी? पिछले दिनों भीलवाड़ा से निकल रहे ड्रग (मादक पदार्थ) तस्करों को रोका, तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग कर दी। इसमें एक कांस्टेबल की मौत हो गयी। इसी गिरोह ने दूसरी जगह फायरिंग करके दूसरे कांस्टेबल की हत्या कर दी थी। पड़ताल में सामने आया कि गिरोह ने नया रूट पकड़ा था, जिससे उनकी मिलीभगत का खेल नहीं चल सका। सुनील डूडी और कुख्यात राजू फ़ौजी उर्फ़ राडू द्वारा गिरोह मिलकर पाँच वाहनों में मादक पदार्थ ले जा रहे थे। सुनील डूडी के पकड़े जाने पर मिलीभगत का खेल उजागर हुआ।
मादक पदार्थ तस्करी का रास्ता सीमावर्ती ज़िलों से शुरू होता है। प्रतापगढ़, चित्तौडग़ढ़, झालावाड़ कोटा ग्रामीण क्षेत्र में अफ़ीम की खेती हो रही है। यहाँ अफ़ीम को अवैध रूप से परिष्कृत कर ब्राउन शुगर और स्मैक बनाने का काम भी होता है। यहाँ से मादक पदार्थ दो हिस्सों में जाता है। इसमें एक हिस्सा मारवाड़ या अन्य इलाक़ों से होता हुआ पंजाब जा रहा है। भीलवाड़ा में मादक पदार्थ व पाली में तेल चोरी मामले की घटना में भयावह प्रमाण मिले हैं। गोपनीय जानकारियों से स्पष्ट हो गया है कि अपराधियों की घुसपैठ व पुलिस तंत्र के भीतर तक है। पुलिस महानिदेशक ने यहाँ तक कहा कि हम जब तक सफल नहीं हो सकते, तब तक कि वर्दी में छिपे अपराधियों की पहचानकर उनके ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ तत्काल विभागीय कार्रवाई की जाए तथा पुलिसकर्मियों से सुपरवाइजरी अधिकारी के उत्तरदायित्व का निर्धारण भी करें।
जवानों पर फायरिंग करने वाले कुख्यात राजू फ़ौजी उर्फ़ डारा को कांस्टेबल ने ही फ़रार कराया था। उस पर 11 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। सीआरपीएफ का पूर्व जवान डारा पहली बार सन् 2017 में चर्चा में आया था, जब बाड़मेर में टोल प्लाजा पर फायरिंग की थी। फ़रारी में ही वह चित्तौड़ से मारवाड़ तक तस्करी कर रहा था। भीलवाड़ा की घटना के बाद राजू फ़ौजी को जोधपुर रेंज के टॉप 10 अपराधियों में शामिल किया गया।
मिलीभगत का खेल
मादक पदार्थ तस्करों से 13 थानों में मिलीभगत का खेल उजागर हुआ है। यह केवल दो गिरोह की पड़ताल में सामने आया है। ऐसे कई गिरोह क्षेत्र में सक्रिय हैं। पड़ताल में पता चला है कि हर थाने में एक ट्रिप के 5,000 रुपये देते थे। बंधी (इस धंधे) के लिए सम्पर्क (लाइजनिंग) ख़ास सिपाही करते हैं, जिन्हें गिरोह अलग से भुगतान करते हैं। अब आला अधिकारी यह जानकारी जुटा रहे हैं कि इनमें थाना अधिकारियों की कितनी भूमिका है?
पड़ताल में यह भी सामने आया कि एस्कॉर्ट करने वाले ही थानों से साँठगाँठ करते हैं। वे पहले किसी पुलिसकर्मी को पकड़ते, उसके ज़रिये एक से दूसरे थाने में मिलीभगत के रिश्ते बढ़ाते हैं। चित्तौडग़ढ़ से जोधपुर जाते समय पकड़े 43 किलो कुंतल (क्विंटल) डोडा (अफ़ीम का पोस्त) पूरा मामले में बड़ा ख़ुलासा हुआ है। इसमें जोधपुर के सफ़ेदपोश भागीरथ जाणी का नाम सामने आया है।
भागीरथ जाणी ने ही खेप जोधपुर में आपूर्ति (सप्लाई) के लिए मँगायी थी। हालाँकि उससे पहले ही सीआइडी ने उसे चित्तौड़ के मंगलवाड़ में पकड़ लिया। पड़ताल में भागीराथ का नाम सामने आया, तो उसे दर्ज मामलों में नामज़द किया गया। तस्कर खेप जल्द पहुँचाने के लिए वाहनों को तेज़ गति से दौड़ाते हैं। वे ट्रक जैसे बड़े वाहनों के बजाय छोटे वाहनों का उपयोग कर रहे हैं। इनमें 14 कुंतल तक डोडा ले जाया जाता है। एक वाहन गंतव्य तक पहुँचाने में ये दो से तीन लाख रुपये कमाते हैं। ख़ास बात यह है कि ये अकसर चोरी के वाहन उपयोग में लेते हैं। ख़ुद का वाहन भी हो, तो पहचान छिपाने के लिए उसके चेचिस व रजिस्ट्रेशन नंबर बदल देते हैं।
जोधपुर पाली सीमावर्ती क्षेत्र में रविवार तडक़े डोडा तस्करी व पुलिस के बीच मुठभेड़ हो गयी। तस्करों ने क़रीब 15-20 राउण्ड गोलियाँ दाग़ीं, जिसका जवाब पुलिस ने पिस्तोल से छ: व एके-47 से चार राउण्ड फायरिंग करके दिया। पाली ज़िले के सोजत व शिवपुरा में तस्कर दो एससयूीव छोड़ भाग गये।
दरअसल तस्करी की सूचना पर डीएसटी ने 23 जुलाई देर रात पाली सीमा के पास बिलाड़ा थाना क्षेत्र में नाकाबंदी की थी। 24 जुलाई को तडक़े 5:00-6:00 बजे के बीच तेज़ रफ़्तार दो एसयूवी आती नज़र आयीं। पुलिस ने टायर बस्र्ट करने वाली लोहे की कीलों को सडक़ पर रखा और रुकने का इशारा किया; लेकिन तस्कर तेज़ रफ़्तार से गाड़ी भगा ले गये।
सरपरस्तों पर होगी कार्रवाई
राजस्थान के सिरोही ज़िले के आबूरोड बॉर्डर से गुजरात तक हरियाणा की शराब की तस्करी का रैकेट गिरोह के सरपरस्त तत्कालीन एसपी हिम्मत अभिलाष टांक चलवा रहे थे। इसमें सिरोही के ही चार थानों रोहड़ा, रीको, आबूरोड सदर व स्वरूपगंज थाने के पुलिसकर्मी भी शामिल थे। हिम्मत इतनी कि टांक ने तस्करी रोकने वालों को धमकी तक दे दी। नहीं माने, तो उन्हें झूठे आरोप लगाकर फँसाया। यह ख़ुलासा विजिलेंस और एसओजी की जाँच में सामने आया है।
दरअसल मामला तो 29 मई को ही उठ गया था, जब आबकारी विभाग ने रोहिड़ा एरिया में बने अवैध डंपिंग व कटिंग स्टेशन का भंडाफोड़ करके क़रीब पाँच करोड़ की अवैध शराब पकड़ी थी। फिर पुलिस महानिरीक्षक एम.एल. लाठर ने सत्यता जाँचने के लिए विजिलेंस व एसओजी से जाँच करायी और यह जाँच रिपोर्ट भी तैयार हो चुकी है। इसमें ही अभिलाष टांक की मिलीभगत के सुबूत मिले हैं। टांक ने पहले एक रिटायर्ड एएसआई और मौज़ूदा हैड कांस्टेबल के मार्फ़त तस्करों से साँठगाँठ की, फिर उन पुलिसकर्मियों को रास्ते से हटाया, जो रास्ते में शराब पकड़ रहे थे। यही नहीं, उन्होंने डीएसटी वथानों की पुलिस को भी हाईवे पर नाकाबंदी करने से रोका तथा एनडीपीएस की सूचनाएँ देकर रास्ते से भी हटाया; लेकिन उनकी एक भी सूचना पर एडीपीएस का माल कभी नहीं पकड़ा गया। एडीजी विजिलंस बीजू जॉर्ज जोसफ़ का कहना है कि एसओजी व विजिलेंस की कामॅन रिपोर्ट बनेगी। यह रिपोर्ट उच्च अधिकारी के समझ पेश होगी, उसके बाद दोषियों पर कार्रवाई होगी।