राजस्थान की कांग्रेस सरकार में पड़ रही फूट से गहराया तख्तापलट का संकट फिलहाल टल गया है। इसके साथ ही विधायकों की कथित रूप से खरीद-फरोख्त और पायलट खेमे के कांग्रेस विधायकों में उठ रहे बगावत के सुरों पर मचा जारी सियासी घमासान भी लगभग खत्म हो गया है। यह तब हुआ है, जब हर ओर से निंदा झेल रहे सचिन पायलट कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा की पहल पर पार्टी आलाकमान से मिले। हालाँकि सचिन की यह वापसी उनके और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिलों में पड़ी दरारों को भरती दिखायी नहीं दे रही है। क्योंकि सचिन पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा से कई शिकायतें की हैं। इस मुलाकात में राहुल गाँधी ने पायलट से कहा कि राजस्थान में किसी भी कीमत पर सरकार नहीं गिरनी चाहिए। उन्होंने पायलट को भरोसा दिलाया कि उनकी शिकायतों और माँगों का उचित समाधान किया जाएगा। उनकी शिकायतों की जाँच के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, ताकि पायलट और उनके समर्थक विधायकों द्वारा उठाये गये मुद्दों का समाधान किया जा सके। इस समिति में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा, दो वरिष्ठ नेता के.सी. वेणुगोपाल और अहमद पटेल शामिल हैं। इधर, 13 अगस्त को पार्टी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल गहलोत-पायलट में सुलह के लिए राजस्थान पहुँचे।
दरअसल अशोक गहलोत से मतभेदों के चलते सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक बगावत पर उतर आये थे, जिसके बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने उन पर सरकार तोडऩे का आरोप लगाया था। हालाँकि आरोप में उन्होंने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष दावे के साथ कुछ सुबूत पेश किये थे, जिसके बाद पायलट को उप मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था। सचिन पायलट की घर वापसी की पहल पर अशोक गहलोत के समर्थकों का कहना है कि सचिन को समय रहते समझ आ गयी। लेकिन उन्हें भविष्य में ऐसी हरकतों से बचकर रहना होगा। वहीं सचिन पायलट के समर्थक खामोश हैं और सचिन की तरह ही कांग्रेस को न छोडऩे का राग अलाप रहे हैं। हालाँकि गहलोत समर्थक अब भी पायलट खेमे से खफा बताये जा रहे हैं। वैसे अगर सचिन कांग्रस से बाहर हो जाते, तो कांग्रेस का गुर्जर वोट प्रभावित होता।
पद का लालच नहीं
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी शिकायतों के दौरान सचिन पायलट ने कहा है कि उन्हें पद का लालच नहीं है और न ही वह किसी राजनीतिक दुर्भावना के शिकार हैं। क्योंकि राजनीति में व्यक्तिगत दुर्भावना की कोई जगह नहीं होती। वह तो कांग्रेस में रहकर समाज सेवा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम सभी ने मिलकर पाँच साल तक मेहनत की और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनायी और राज्य सरकार में हम सब भागीदार हैं। लेकिन कुछ सैद्धांतिक मुद्दे हैं, जिन्हें सुना जाना चाहिए। शायद उनका इशारा था कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उन्हें तथा उनके सुझावों को नज़रअंदाज़ करते हैं।
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से बातचीत के बाद पायलट काफी खुश नज़र आये। उन्होंने मीडिया को बताया कि मैंने कांग्रेस नेतृत्व के सामने अपनी समस्याओं को रखा है और मुझे खुशी है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं से मेरी विस्तार से बातचीत हुई, जिसमें उन्हें सहयोग का पूरा आश्वासन मिला है। पार्टी द्वारा सभी पद छीने जाने के सवाल पर पायलट ने कहा कि पार्टी ने पद दिये थे, उसे उनको वापस लेने का पूरा अधिकार है और उन्हें किसी पद का लालच भी नहीं है। वह पार्टी में रहकर जनसेवा करना चाहते हैं। पायलट ने कहा कि उन्हें पार्टी की तरफ से उनके द्वारा उठाये गये मुद्दों के समाधान का पूरा आश्वासन दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते थे कि सैद्धांतिक और गवर्नेंस के मुद्दों को सुना जाए, ताकि पार्टी और सरकार जनता से किये गये वादों पर खरी उतर सकें, जो वादे करके हम सत्ता में आये थे।
गहलोत की नीतियों के खिलाफ हूँ…
सचिन पायलट ने केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद भी यही कहा कि उन्हें पार्टी से कोई शिकायत नहीं है और न ही वह पार्टी के खिलाफ हैं। लेकिन वह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ डटे हुए हैं। इसका मतलब यह है कि गहलोत के साथ उनके मतभेद अभी समाप्त नहीं हुए हैं। सचिन पायलट ने राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी से कहा कि वह कांग्रेस पार्टी के खिलाफ नहीं, बल्कि अशोक गहलोत की नीतियों के खिलाफ हैं। उनकी यह मुखालिफत उसूलों और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले किये जनता के वादों को लेकर है। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो सचिन पायलट अब भले ही कुछ कहें, लेकिन पहले वह भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर ही चले थे। मगर उनका पलड़ा काफी हल्का रहा और उन्हें मजबूरन कांग्रेस नेतृत्व के आगे घुटने टेकने पड़े। राजनीतिक जानकार यह भी कहते हैं कि अशोक गहलोत एक मझे हुए खिलाड़ी हैं और सरकार चलाना जानते हैं। इसीलिए राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बची रह गयी, अन्यथा अब तक तो यहाँ भी मध्य प्रदेश वाला हाल हो चुका होता। कुछ लोगों का कहना है कि पायलट और गहलोत के बीच हुआ मतभेद अब मनभेद में बदल चुका है। इसलिए राजस्थान में सरकार भले ही बची रह गयी, पर इनके बीच हुए मनमुटाव के जख्म भरने मुश्किल हैं।
बागी विधायक भी पलटे
इधर सचिन के घर वापसी की भनक लगते ही राजस्थान के निलंबित कांग्रेस विधायक भँवर लाल शर्मा और अन्य विधायक भी पलट गये हैं। शर्मा ने अशोक गहलोत के साथ बैठक के बाद कहा कि वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं। बता दें कि यह वही विधायक हैं, जिन पर गहलोत सरकार के खिलाफ कथित तौर पर साज़िश रचने का आरोप लगा था। भँवर लाल शर्मा पर यह आरोप उनका टेप सामने आने के बाद लगा था, जिसमें वह विधायक खरीद-फरोख्त के बिचौलिया संजय जैन के साथ सौदा करते हुए सुने गये थे।
इसके बाद कांग्रेस ने कहा था कि संजय जैन ने भँवर लाल शर्मा को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मिलाया था और वह पैसे लेने-देने की चर्चा कर रहे थे। हालाँकि भँवर लाल शर्मा ने पहले की तरह ही अपने द्वारा किसी भी तरह की साज़िश रचे जाने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि वह किसी कैम्प नहीं थे, बल्कि अपनी तरफ से वहाँ गये थे और अपनी ही तरफ से वापस आये। बता दें कि जब पार्टी की राज्य इकाई में फूट पड़ रही थी, तब पायलट समर्थक विधायक गुरुग्राम (गुडग़ाँव) के एक होटल में ठहरे थे। भँवर लाल ने उसी होटल (कैम्प) में खुद के शामिल न होने की बात कही। ऑडियो टेप के झूठे होने की बात दोहराते हुए शर्मा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हैं।
गहलोत के निशाने पर रहा केंद्र
राजस्थान के कुछ कांग्रेस विधायकों द्वारा राज्य की सत्ता से बगावत करने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कई बार सीधे केंद्र सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने यहाँ तक कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में यह तमाशा को बन्द करवाएँ। अशोक गहलोत ने फिर से आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा उनकी सरकार को गिराने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त का बड़ा खेल खेल रही है। इस बार भाजपा का प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त का खेल बहुत बड़ा है। वह कर्नाटक और मध्य प्रदेश वाला प्रयोग राजस्थान में भी कर रही थी; लेकिन दुर्भाग्य से उसका पर्दाफाश हो गया। गहलोत ने कहा कि उन्हें किसी की परवाह नहीं। उन्हें केवल लोकतंत्र की परवाह है और उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष या दल से न होकर विचारधारा, नीतियों एवं कार्यक्रमों की लड़ाई है; लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है।
क्या खोयी हुई प्रतिष्ठा वापस पा सकेंगे पायलट
सवाल यह उठता है कि अब जब सचिन पायलट को कांग्रेस नेतृत्व ने राजस्थान वापस भेज दिया है, तो क्या उन्हें कांग्रेस की राजस्थान इकाई में और जनमानस के मन में वह जगह, वह प्रतिष्ठा मिल सकेगी, जो पहले थी। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी में सचिन के प्रति जो प्रेम है, उसे देखकर लगता है कि सचिन की घर वापसी तो हो गयी है; लेकिन सचिन पायलट को पहले जैसी प्रतिष्ठा नहीं निल सकेगी। क्योंकि जनता की नज़रों में पहले जैसी छवि बनाने में उन्हें लम्बा समय लगेगा।
दरअसल जब मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत और उनके साथ कई विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद सचिन पालयट ने कहा था कि वह कांग्रेस का दामन कभी नहीं छोड़ेंगे। उस समय यह सुगबुगाहट थी कि सचिन भाजपा में जाने के मूड में हैं। खबरें तो यहाँ तक उड़ी थीं कि सचिन राजस्थान के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।
सचिन पायलट ने मुलाकात के दौरान प्रतिबद्धता जतायी है कि वह पार्टी और राजस्थान की कांग्रेस सरकार के हित में काम करेंगे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के दौरान सचिन पायलट ने विस्तार से अपनी शिकायतें बतायी हैं। दोनों के बीच स्पष्ट, खुली और निर्णायक बातचीत हुई; उसके बाद कांग्रेस हित में साथ मिलकर काम करने पर सहमति बनी है।
के.सी. वेणुगोपाल, महासचिव, कांग्रेस