राजस्थान में राज्यपाल कलराज मिश्र के विधानसभा सत्र बुलाने के राजी होते ही, कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी अगली रणनीति बनाने में जुट गए हैं। गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हो रही है। उधर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए हैं।
गहलोत अभी तक बहुत नाप तोल कर आगे बढ़ रहे हैं। विधानसभा सत्र बुलाने के राज्यपाल के फैसले को उनकी पहली जीत के रूप में देखा जा सकता है। गहलोत ने बिना धैर्य खोए, तीन बार राज्यपाल को पत्र पेश कर विधानसभा का सत्र बुलाने का आग्रह किया और इस दौरान कांग्रेस के नेता लगातार राज्यपाल के सत्र न बुलाने के लिए सीधे भाजपा नेतृत्व पर हमला करते रहे और राज्यपाल के फैसले के पीछे भाजपा को बताते रहे।
गहलोत ने दो पत्र भी इसके विरोध में पीएम मोदी को लिखे। इससे भाजपा पर दबाव बना, क्योंकि जनता में यह संदेश जा रहा था कि भाजपा सचिन पायलट गुट और राज्यपाल के जरिये गहलोत की सरकार गिराने का षड्यंत्र रच रही है। राज्यपाल से ‘न की संभावना’ को देखते हुए गहलोत ने बहुत चतुराई से तीन प्रस्ताव राज्यपाल को सत्र को लेकर भेजे।गहलोत ने पहले प्रस्ताव वाली तारीख के हिसाब से तीसरे में 14 अगस्त की तारीख लिखी, जिसे राज्यपाल को मंजूर करना पड़ा। वैसे भी मंत्रिमंडल की सिफारिश को संविधान के मुताबिक राज्यपाल को मानना ही पड़ना था। संविधान विशेषज्ञ मंत्रिमंडल की सिफारिश के बावजूद विधानसभा सत्र न बुलाने के राज्यपाल कलराज मिश्र के कदम को गलत बता रहे थे। यही नहीं राज्यपाल के फैसले से उंगली सीधे भाजपा की भूमिका पर उठ रही थी।
राज्यपाल चाहते थे कि सरकार बताए कि एजंडा क्या होगा। इसके अलावा गहलोत ने मंत्रिमंडल के प्रस्ताव में यह कहीं नहीं लिखा है कि सरकार विश्वास मत लेना चाहती है। ऐसा करते तो राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश का बहाना मिल सकता था। सचिन पायलट के सोशल मीडिया पर कांग्रेस का अपना पुराना चिन्ह हाथ दोबारा लगाने से कई कयास लगने शुरू हो गए हैं।
राजस्थान कांग्रेस विधायक दल की इस समय बैठक चल रही है। इस बैठक में कांग्रेस आलाकमान के दूत भी शामिल हैं। इस बैठक में भविष्य की रणनीति पर विचार किया जाएगा।
बहुत से लोग मानते हैं कि पायलट को अब लगता है कि उनका कांग्रेस में रहना ही उनके राजनीतिक भविष्य के लिए सही रहेगा। दूसरे यह भी चर्चा रही है कि भाजपा कथित तौर पर उनके समर्थक विधायकों को ही फोड़ने की कोशिश कर रही थी। इस सारी कवायद में सीएम गहलोत पायलट पर ही नहीं, भाजपा के रणनीतिकारों पर भी अभी तक भारी पड़े हैं। हो सकता है, बागी अब कांग्रेस में ही रहने को तैयार हो जाएं।
गहलोत की रणनीति ने राजस्थान भाजपा में भी बड़ी लकीर खींच दी है। पूर्व मुख्यमंत्री और ताकतवर भाजपा नेता वसुंधरा राजे सिंधिया ने इन इस पूरे प्रकरण के दौरान सिर्फ एक बार कोई ब्यान दिया और बाकी समय वे चुप रहीं। राजस्थान के अधिकतर विधायक सिंधिया के समर्थक हैं। भाजपा, जो आमतौर पर ऐसे हालत में विपक्षी सरकारों वाले राज्यों में ‘तुरंत विश्वास प्रस्ताव हासिल करने’ की मांग शुरू कर देती है, राजस्थान में वह एक बार भी यह मांग करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। इससे जाहिर था कि गहलोत के पास बहुमत था, जो इस लड़ी में उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है।
इस बीच राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी ने एक बार फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया है। जोशी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक नई एसएलपी दायर की गई है जिसमें उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट के 24 जुलाई के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें बागी विधायकों पर किसी तरह का एक्शन लेने पर रोक लगाई गयी है। पहले ही एक याचिका जोशी ने दायर की थी लेकिन उसे बाद में वापस ले लिया गया था।
उधर एक नए घटनाक्रम में हरियाणा के मानेसर के रिजॉर्ट की ओर से राजस्थान एसओजी को लिखित में दिए जवाब में बताया है कि उनके यहां कोई भी विधायक नहीं है। यही नहीं राजस्थान ऑडियो टेप मामले में आरोपी कारोबारी संजय जैन का वॉयस सैंपल लेने की इजाजत भी एसआईटी को मिल गई है। जैन का वॉयस सैंपल शुक्रवार को लिए जाने की संभावना है।