देश की राजनीति, खासकर संसदीय राजनीति में शुचिता की एक बड़ी पहल हुई है। यह पहल और कहीं से नहीं, देश के सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से हुई है। एक याचिका पर जो आदेश सर्वोच्च अदालत ने दिया है, वह देश की संसदीय राजनीति में शुचिता की बड़ी नज़ीर बन सकता है। देश की राजनीति में पैसे और अपराधियों का जैसा बोलबाला है, उस पर अंकुश के लिए इसे एक बड़ी शुरुआत कहा जा सकता है।
क्योंकि सर्वोच्च अदालत का यह आदेश उम्मीदवारों को लेकर है, यह पहल टिकटों से शुरू होकर अंतत: पूरी राजनीति तक भी पहुँचेगी, यह कल्पना की जा सकती है। एक याचिका पर 13 फरवरी में सर्वोच्च अदालत ने न केवल राजनीति में आपराधिक छवि के लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी पर गहन चिन्ता जतायी, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे अपनी वेबसाइट पर सभी उम्मीदवारों की जानकारी साझा करें। इसमें उन्हें यह भी बताना होगा कि किस मजबूरी में उन्होंने साफ-सुथरी छवि की जगह एक अपराधी छवि वाले को उम्मीदवार के रूप में चुना।
इस आदेश में सबसे सकारात्मक और सम्भावना वाला पहलू यह है कि यदि अदालत के आदेश का पालन राजनीतिक दलों ने नहीं किया, तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी। अतीत में राजनीतिक दल इस तरह के आदेशों को हल्के में लेते रहे हैं, जिससे राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ती गयी है। अब शायद ऐसा नहीं हो पाएगा।
अदालत के आदेश के मुताबिक, सभी राजनीतिक दलों को उम्मीदवार घोषित करने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होगी। कोर्ट के यह आदेश याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर आये हैं, जो खुद एक वकील हैं। इस आदेश के मुताबिक, अब प्रत्याशी पर दर्ज सभी आपराधिक मामले, ट्रायल और उम्मीदवार के चयन का कारण भी राजनीतिक दलों को बताना होगा। राजनीतिक दल को ये भी बताना होगा कि आिखर उन्होंने एक अपराधी को क्यों अपना प्रत्याशी बनाया। आदेश के मुताबिक, राजनीतिक दलों को घोषित प्रत्याशी की जानकारी स्थानीय अखबारों में भी छपवानी होगी और उन्हें उम्मीदवार घोषित करने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होगी।
अतीत में राजनीतिक दल इस तरह के आदेशों को हल्के में लेते रहे हैं, जिससे राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ती गयी है। उपाध्याय के मुताबिक, अगर कोई भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा, तो उसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। अगर किसी नेता या उम्मीदवार के िखलाफ कोई मामला नहीं है और कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं है, तो उसे भी इसकी जानकारी देनी होगी।
राजनीति में पैसे और लाठी के ज़ोर ने लोकतंत्र को धीरे-धीरे कमज़ोर किया है। यदि यह बहुत ज़्यादा चलता, तो निश्चित ही लोकतंत्र की जड़ें पूरी तरह खोखली जो जातीं। सर्वोच्च अदालत ने जो पहल की है, उसके लिए सामजिक संगठनों को भी आगे आकर अवांछित/आपराधिक तत्त्वों को बाहर करने के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा। राजनीति में आपराधिक तत्त्वों या आरोपियों का कितनी दखल डाली जा चुकी है, यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की 2019 लोकसभा के 542 में से 539 सांसदों के शपथपत्रों के विश्लेषण की रिपोर्ट में बताया गया है कि इन 539 में से 233 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि तीन के ऊपर तो बलात्कार से जुड़े मामले हैं।
पैसे का राजनीति, खासकर संसदीय राजनीति में ज़ोर भी इस रिपोर्ट से ज़ाहिर हो जाता है। इसके मुताबिक, इस बार संसद में 475, जो की कुल संख्या का 88 फीसदी है, सांसद करोड़पति हैं, जबकि पिछले चुनाव अर्थात् 2014 में 443 अर्थात् कुल संख्या का 82 फीसदी थे। उपलभ्द न होने के कारण तीन सांसदों के शपथपत्रों का विश्लेषण नहीं किया जा सका, जिनमें दो भाजपा और एक कांग्रेस के थे। रिपोर्ट के मुताबिक, 19 सांसदों पर महिलाओं के िखलाफ अत्याचार से जुड़े मामले दर्ज हैं। इनमें से तीन पर तो दुष्कर्म से जुड़े मामले हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों की बनिस्बत इस बार सबसे ज़्यादा आपराधिक मामलों वाले सांसद चुने गये हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, नकुलनाथ सबसे अमीर सांसद हैं, जो कांग्रेस के टिकट पर छिंदबाड़ा से चुने गए।
शपथ दस्तावेज़ों में उनकी कुल सम्पत्ति 660 करोड़ है। उनके अलावा कांग्रेस के ही कन्याकुमारी से चुने गये एच वसंतकुमार की सम्पत्ति 417 करोड़ है। तीसरे सबसे अमीर भी कांग्रेस के ही डीके सुरेश हैं जो कर्नाटक के बेंगलूरु ग्रामीण इलाके से चुने गए। उनकी सम्पत्ति 338 करोड़ है। जाने माने राजनीतिक विश्लेषक बीडी शर्मा कहते हैं कि जब तक राजनीति में पैसे और अपराध का गठजोड़ नहीं तोड़ा जाता, तक तक राजनीति देश के लिए अभिशाप जैसी ही रहेगी। तहलका से बातचीत में शर्मा ने कहा कि जनता को जल्दी न्याय, विकासयुक्त और भ्रष्टाचारमुक्त सिस्टम वास्तव में तभी सम्भव होगा, जब राजनीति से अपराध और पैसे का बोलबाला खत्म हो जाएगा। हालाँकि वे मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश स्थिति को बदलने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। हाल के वर्षों में कई ऐसे उदाहरण सामने आये हैं, जिनमें देखा गया है बलात्कार के आरोपियों तक को राजनीतिक दल पूरी ताकत से बचाने लग जाते हैं। ऐसा लगता है कि उनकी जवाबदेही जनता नहीं अपराधियों के प्रति है। अपराध से जुड़े लोग राजनीति की ताकत से मिलकर मनमर्ज़ी करते हैं। प्रशासन और पुलिस से लेकर न्यायालयों तक को अपनी उँगलियों पर नचाते हैं। समय समय पर कानून से जुड़े लोग स्वीकार करते रहे हैं कि उनके फैसलों में राजनीति से जुड़े लोगों का हस्तक्षेप रहता है।
नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की 2019 लोक सभा के 542 में से 539 सांसदों के शपथपत्रों के विश्लेषण की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अध्ययन का वर्गीकरण दो आधार पर किया गया है, जिसमें आपराधिक मामले और गम्भीर अपराध शामिल हैं। इसके मुताबिक, भाजपा के 301 में से 116 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल संख्या का 39 फीसदी बनता है। जबकि भाजपा के 87 सांसदों पर गम्भीर मामले दर्ज हैं, जिनका फीसदी 29 बनता है। कांग्रेस के कुल 51 सांसदों में से 29 पर आपराधिक मामले हैं, जो उनकी संख्या का 57 फीसदी बनता है। जबकि 19 पर गम्भीर िकस्म के मामले दर्ज हैं जो 37 फीसदी है। अन्य प्रमुख दलों में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के कुल 23 सांसदों में से विश्लेषित 10 सांसदों पर आपराधिक मामले हैं जो 43 फीसदी है, जबकि 6 पर गम्भीर मामले दर्ज हैं, जो 26 फीसदी है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कुल 22 सांसदों में से 9 यानी 41 फीसदी पर आपराधिक मामले, जबकि 4 पर गम्भीर मामले दर्ज हैं, जो 18 फीसदी बनता है। बिहार के राजनीतिक दल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के कुल 16 में से 13 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो 81 फीसदी होता है।
साल-दर-साल के आँकड़े
लोकसभा चुनाव के पिछले तीन साल का रिकार्ड देखा जाए, तो नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 में 543 सांसदों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 162 (30 फीसदी) पर आपराधिक मामले और 76 (14 फीसदी) पर गम्भीर आपराधिक मामले थे। इसी तरह 2014 में 542 सांसदों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 185 पर (34 फीसदी) पर आपराधिक मामले जबकि 112 (21 फीसदी) पर गम्भीर आपराधिक मामले थे। अब 2019 के लोक सभा चुनाव में 539 सांसदों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 233 (43 फीसदी) पर आपराधिक जबकि 159 (9 फीसदी) पर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
अमीर सांसदों की फेहरिस्त
नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2009 में 543 में से 315 (58 फीसदी) करोड़पति थे, जबकि 2014 में यह संख्या बढ़कर 442 (82 फीसदी) हो गयी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 539 विश्लेषित मामलों में से 475 (88 फीसदी) करोड़पति हो गए। इस तरह देखा जाए तो संसद में अमीरों का प्रवेश बढ़ा है। पार्टीवाइज देखना हो, तो भाजपा के 301 में से 265 (88 फीसदी), कांग्रेस के 51 में से 43 (84 फीसदी), डीएमके के 23 में से 22 (96 फीसदी), टीएमसी के 22 में से 20 (91 फीसदी), वाईएसआर कांग्रेस के 22 में से 19 (86 फीसदी), जबकि शिव सेना के 18 में 18 (100 फीसदी) करोड़पति हैं।