भाजपा को उसी की तर्ज पर विपक्षी गठबंधन ने दे दी चुनौती
विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया (I.N.D.I.A.) रखकर भाजपा को असहज कर दिया है। धर्म और राष्ट्रवाद के सहारे राजनीति करने वाली भाजपा के इस एकाधिकार को विपक्ष ने इस बार अलग अंदाज़ में चुनौती दे दी है। विपक्ष ने अपने लिये नारा भी राष्ट्रवाद से जुड़ा चुना है- ‘जीतेगा भारत।’
विपक्ष ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) नाम बहुत सोच समझकर रखा है। विपक्ष के बड़े नेताओं की मानें, तो यह नाम राहुल गाँधी ने दिया है। सन् 2014 के बाद यह पहला अवसर है, जब विपक्ष को सिर्फ़ उसके नाम के ही आधार पर ऐसी चर्चा देश भर में मिल गयी है। विपक्ष ने हाल के दिनों में अपने गठबंधन को तेज़ी से आकार दिया है। यह इस बात से भी ज़ाहिर हो जाता है कि गठबंधन के 26 दलों में, जिनके सदस्य संसद में हैं; उन्होंने भाजपा (एनडीए) सरकार के ख़िलाफ़ साझा रणनीति अपनायी है। विपक्ष की तेज़ी का ही असर था कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को भी लम्बे समय बाद साझी बैठक करनी पड़ी।
हाल के दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ख़ुद को हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का चैम्पियन बताकर चुनाव लड़ा और उसे सफलता भी मिली। निश्चित ही 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात और 2023 में कर्नाटक के चुनाव में भाजपा ने खुलकर इस मुद्दे को अपनाया। लेकिन उसे सफलता मिली-जुली ही मिली। बंगाल, कर्नाटक और हिमाचल में उसे नाकामी मिली और दो जगह कामयाबी। भाजपा के इस राष्ट्रवाद को विपक्ष ने उसी की पिच पर जाकर चुनौती दी है। विपक्ष, जैसा कि राहुल गाँधी अक्सर कहते हैं कि ‘भाजपा के राष्ट्रवाद के विपरीत कांग्रेस (विपक्ष) का राष्ट्रवाद संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित है, जो भारत की धर्मनिरपेक्ष सोच पर आधारित है।’
देखें, तो राष्ट्रवाद वास्तव में कांग्रेस का नारा था। आज़ादी के समय से ही। लेकिन भाजपा ने बहुत चतुराई से इसे कांग्रेस से छीन लिया। आज़ादी से पहले की बात करें, तो स्वतंत्रता आन्दोलन में कांग्रेस की ही भूमिका था; आरएसएस की नहीं। नरम और गरम दल दोनों के ही अधिकतर नेता कांग्रेस की ही विचारधारा में पले, बढ़े; या फिर वामपपंथी तेवर के साथ, जिसमें देश के लिए जान भी दे देने का ज़ज़्बा शामिल था।
आरएसएस तो कहीं तस्वीर में कभी रहा ही नहीं। लेकिन भाजपा ने पिछले दो दशक में राष्ट्रवाद का नारा कांग्रेस से चुराकर अपना बना लिया। हाँ, एक अंतर यह ज़रूर है कि भाजपा का राष्ट्रवाद ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ है, जबकि कांग्रेस का ‘समग्र राष्ट्रवाद’।
यानी सभी धर्मों और समुदायों से मिलकर बना राष्ट्रवाद। गठबंधन को इंडिया नाम देकर विपक्ष ने इसी राष्ट्रवाद को अपनाकर भाजपा को चुनौती देने की ठानी है।
विपक्षी गठबंधन के ‘इंडिया’ नाम रखने से भाजपा ख़ेमे में चिन्ता है। यह उसके नेताओं के बयान से साफ़ ज़ाहिर होता है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री अब अपने हर भाषण में ‘इंडिया’ नाम का ज़िक्र करने लगे हैं। एक बार उन्होंने विपक्ष के ‘इंडिया’ नाम की तुलना ‘इंडियन मुजाहिदीन’ और ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ से कर दी। अगले भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- ‘भ्रष्टाचार छोड़ो इंडिया, परिवारवाद छोड़ो इंडिया।’ भाजपा की कोशिश ‘विपक्ष के इंडिया’ को बदनाम करने की है, ताकि उसके ‘अपने इंडिया’ के लिए चुनौती पैदा न हो। लेकिन राहुल गाँधी समेत विपक्षी गठबंधन के नेता भाजपा की इस बेचैनी को समझ रहे हैं और उसी तर्ज में जवाब भी दे रहे हैं। लेकिन आख़िर में यह इंडिया (देश) की जनता होगी, जो यह तय करेगी कि वास्तव में किसका ‘इंडिया’ उसे पसन्द है- भाजपा का या विपक्ष का। अर्थात् ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ या ‘समग्र राष्ट्रवाद।’
देखा जाए, तो विपक्ष का यह इंडिया नामकरण कांग्रेस नेता राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से उपजा है। राहुल का ‘द आइडिया ऑफ इंडिया’ समग्र राष्ट्रवाद की बात करता है- ‘एक ऐसा राष्ट्रवाद, जो देश के सभी धर्मों और समुदायों को समाहित करता है; न कि भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद की तरह एक ही धर्म की बात करता है।’
कहा जा सकता है कि 2024 का चुनाव इस ‘समग्र राष्ट्रवाद’ और ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ के बीच होना है। विपक्ष इसी एजेंडे के साथ आगे बढ़ेगा और भाजपा विपक्ष (कांग्रेस) के इस राष्ट्रवाद को भ्रष्ट, परिवारवादी, देश-विरोधी आदि-आदि बताती जाएगी।
साफ़ है कि विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखकर भाजपा के एकाधिकार को गम्भीर राजनीतिक चुनौती दे दी है। यह भाजपा के ‘हिन्दू राष्ट्र’ के एजेंडे को भी चुनौती होगी। हो सकता है भाजपा किसी ‘प्रॉक्सी’ के ज़रिये विपक्ष के इंडिया नाम के ख़िलाफ़ कोर्ट में पहुँचे और विपक्ष को ‘इंडिया’ नाम इस्तेमाल करने से रोकने की कोशिश करे। देखना दिलचस्प होगा कि यदि ऐसा होता है, तो उसका क्या नतीजा निकलता है? क़ानून के ज़्यादातर जानकार मानते हैं कि शायद ही अदालत विपक्ष को ऐसा करने से रोकेगी; क्योंकि देश में कई ऐसे राजनीतिक दल हैं, जिनके नाम में इंडिया शब्द इस्तेमाल होता है। राहुल गाँधी की कोशिश हाल के महीनों में भाजपा के राष्ट्रवाद को भेदभावपूर्ण, बहुसंख्यकवादी और हिंसक बताने की रही है।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ का मक़सद भी उन्होंने यही बताया था और इसे ‘मोहब्बत की दुकान’ कहा है यानी देशज के हर नागरिक से प्यार, नफ़रत नहीं। ज़मीनी जानकारी बताती है कि राहुल गाँधी को इस यात्रा से अपनी छवि बदलने और ख़ुद को जनता की बीच पहुँचाने में सफलता मिली है। राहुल यह सन्देश देने में सफल रहे कि उनकी यात्रा सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश को बचाने की है। अब इंडिया नाम रखकर गठबंधन यही सन्देश दे रहा है।
गठबंधन की रणनीति
कांग्रेस इस महागठबंधन का नेतृत्व अभी नहीं कर रही; लेकिन बेंगलूरु की बैठक में जिस तरह सभी नेता कांग्रेस के इर्द-गिर्द दिखे, उससे साफ़ लगता है कि इन दलों ने यह महसूस कर लिया है कि कांग्रेस के ही नेतृत्व में भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दी जा सकती है। महागठबंधन अब मुम्बई की बैठक में आगे जाने की बड़ी चीज़ेंतय करेगा।
यह बैठक 20-22 अगस्त तक होने की संभावना है। हालाँकि अभी तारीख़ तय नहीं की गयी है। बेंगलूरु बैठक के दौरान सीटों के बँटवारे को लेकर चर्चा नहीं हुई थी। बैठक में भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए वैकल्पिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडा देने पर ज़रूर सहमति बनी है। सीटों पर बँटवारे में शायद अभी व$क्त लगे।
इंडिया गठबंधन के सभी दल एक समय में एक ही काम करने की रणनीति पर चल रहे हैं। संसद के मानसून सत्र में जिस तरह से विपक्ष ने कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार को मणिपुर और अन्य मुद्दों पर घेरा है, उससे ज़ाहिर है कि संसद में भी यूपीए की जगह ‘इंडिया’ सरकार से लड़ रहा है। शायद भाजपा को भी इसकी उम्मीद नहीं रही होगी।
गठबंधन अब मुम्बई की बैठक में शायद गठबंधन के अध्यक्ष और संयोजक के अलावा अन्य पदाधिकारियों के नामों को अन्तिम रूप दे दे। गठबंधन के एक नेता ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘मुम्बई की बैठक में हम 11 सदस्यों वाली एक समन्वय समिति को अन्तिम रूप दे सकते हैं।’
गठबंधन अलग-अलग समितियाँ गठित करने पर भी काम कर रहा है, जो अलग-अलग मुद्दों को देखेंगी। मुम्बई में ‘इंडिया’ में शामिल 26 दलों के बीच सीट-बँटवारे, चुनाव की तैयारियों और प्रचार प्रबंधन को लेकर चर्चा होनी है। गठबंधन अपना मुख्य सचिवालय दिल्ली में बनाने पर भी सहमत हो सकता है। यह तय है कि गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश भर में बड़ा अभियान शुरू करेगा। देश के विभिन्न हिस्सों में बैठकें आयोजित होंगी और भाजपा पर प्रहार किया जाएगा।
कोई चेहरा नहीं
गठबंधन किसी एक नेता को अभी अपने चेहरे के तौर पर सामने नहीं करेगा। पिछली दो बैठकों में दिखा है कि ज़्यादातर दलों का झुकाव राहुल गाँधी की तरफ़ है। लेकिन उनकी लोकसभा सदस्यता का मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। यदि उनकी सदस्यता बहाल हो जाती है, तो यह कांग्रेस ही नहीं गठबंधन के लिए भी बड़ी जीत होगी। राहुल गाँधी ही गठबंधन में ऐसे नेता हैं, जिनकी राष्ट्रव्यापी छवि है। बेंगलूरु की बैठक के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि वह प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार नहीं हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कुछ ऐसा ही कह रहे हैं।
दिलचस्प बात यह भी है कि टीवी चैनलों के हाल में गठबंधन के नेता को लेकर किये सर्वे में भी अधिकतर लोग राहुल गाँधी को ही नेता के रूप में सबसे ज़्यादा वोट दे रहे हैं। वैसे इस दौड़ में ममता बनर्जी, शरद पवार, नीतीश कुमार से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक का नाम लिया जाता है। लेकिन कांग्रेस के गठबंधन वाले यूपीए के मुख्यमंत्री भी राहुल गाँधी के ही हक में दिखते हैं, जिनमें तमिलनाडु के एम.के. स्टालिन से लेकर झारखण्ड के हेमंत सोरेन तक शामिल हैं।
मुम्बई की बैठक में गठबंधन सोनिया गाँधी को अपना अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर सकता है। बेंगलूरु की बैठक में सोनिया गाँधी ने जो सक्रियता दिखायी थी, उससे साफ़ है कि वह इस भूमिका को निभाने के लिए तैयार हैं। सोनिया गाँधी की उपस्थिति ने इस बैठक में मीडिया का ध्यान भी अपनी तरफ़ काफी खींचा था, जिससे विपक्ष में सोनिया गाँधी के महत्त्व का पता चलता है। भाजपा ने इसे कांग्रेस के गठबंधन को हाईजैक करने से जोड़ा और प्रचार भी किया कि नीतीश कुमार गठबंधन का नाम इंडिया रखे जाने से ख़ुश नहीं हैं। हालाँकि एक दिन के ही भीतर नीतीश कुमार ने बयान देकर साफ़ कर दिया कि यह बात सही नहीं है और सब मिलकर भाजपा को हराएँगे।
सीटों का पेच
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने देश भर में अपनी मज़बूत सीटों या उन सीटों जो बदले माहौल में (भविष्य के विधानसभा चुनाव नतीजों के कारण) उसकी झोली में आ सकती हैं; को लेकर खाका तैयार कर लिया है।
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पार्टी 390 से 400 सीटों पर लडऩे पर ज़ोर दे सकती है। हालाँकि कांग्रेस के रणनीतिकार इस चीज़ का ध्यान रखेंगे कि साथी विपक्षी दलों का सीटों के बँटवारे में कोई विरोध नहीं रहे। शायद कोशिश रहेगी कि जहाँ भी कांग्रेस का उम्मीदवार हो, वहाँ साथी विपक्षी दल का उम्मीदवार न उतरे और न कांग्रेस का अपना उम्मीदवार अन्य दलों की सीटों पर उतरे। कांग्रेस 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में 400 से अधिक सीटों पर लड़ती रही है और 2009 में उसे 200 से ज़्यादा सीटें मिली थीं।
देश भर में 152 सीटें ऐसी हैं, जहाँ कांग्रेस की सीधी टक्कर भाजपा से है और दूसरे दलों का अस्तित्व नहीं है। कांग्रेस मान रही है कि यदि वह ख़ुद को मज़बूत करती है, तो 2019 के मुक़ाबले इस बार भाजपा को ज़्यादा सीटों पर मात दे सकती है। ऐसी स्थिति में भाजपा की यह सीटें सीधे उसके कुल योग से घट जाएँगी। कांग्रेस मानकर चल कि दक्षिण में इस बार भाजपा की बहुत-सी सीटें कांग्रेस की झोली में आएँगी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, असम, गुजरात, हिमाचल और उत्तराखण्ड में भाजपा को क्लीन स्वीप नहीं करने देगी और ऐसी रणनीति बनाएगी कि विधानसभा में जीती सीटों और लोकसभा की सीटों में ज़्यादा अन्तर न रहे। इन राज्यों में 152 लोकसभा सीटें हैं और भाजपा ने 2019 में इनमें से अधिकतर सीटें जीतकर केंद्र में सरकार बनायी थी। इन राज्यों में कांग्रेस को ख़ुद अपनी लड़ाई लडऩी होगी, क्योंकि दूसरे दल वहाँ ज़्यादा प्रभाव नहीं रखते।
यही नहीं, कांग्रेस इस बार तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी $खूब ज़ोर लगाने की तैयारी में है। कांग्रेस ने उन सीटों को चिह्नित किया है, जहाँ उसके जीतने की सबसे ज़्यादा संभावना है। इन राज्यों के आलावा कांग्रेस दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार में दूसरे दलों पर निर्भर रहेगी और वहाँ उसे का$फी कम सीटें लडऩे को मिलेंगी। हाँ, पंजाब में वह कुछ कर सकती है; लेकिन आप के गठबंधन में होने से वहाँ भी मिल-बाँटकर ही खाना होगा। पार्टी वहाँ 6-7 सीटों की माँग कर सकती है। सन् 2019 में कांग्रेस 421 सीटों पर लडक़र 52 सीटों पर जीती थी; लेकिन इस बार उसे अपना आँकड़ा का$फी ऊपर जाने की उम्मीद है।
इसके अलावा सन् 1999 में कांग्रेस ने 453 सीटों में से 114 सीटें, सन् 2004 में 417 में से 145 सीटें, सन् 2009 में 440 सीटों पर लडक़र 206 सीटें और सन् 2014 में 464 सीटों पर लडक़र सिर्फ़ 44 सीटें जीती थीं। यदि सीटों पर तालमेल सही से बैठ जाता है, तो इसका सबसे ज़्यादा लाभ कांग्रेस को ही मिलेगा; यह तय है।
भारत जोड़ो यात्रा-2 बदलेगी माहौल?
राहुल गाँधी ‘भारत जोड़ो यात्रा-2’ की तैयारी कर रहे हैं। यह यात्रा गुजरात के पोरबंदर से त्रिपुरा के अगरतला तक की हो सकती है। उत्तर प्रदेश सहित कुछ चुनावी राज्यों में यह यात्रा होगी। अकेले उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं।
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, राहुल गाँधी प्रदेश में पूरे 23 दिन यात्रा करेंगे। कांग्रेस की कोशिश है कि यात्रा से पहले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी कुछ जगह साथ रखने के लिए सहमत कराया जा सके। यही नहीं, रालोद के जयंत चौधरी, जो बेंगलूरु बैठक में शामिल हुए थे; को राहुल गाँधी के साथ यात्रा में शामिल करने की कोशिश की जाए। कांग्रेस रालोद के साथ गठबंधन कर ले, तो हैरानी नहीं होगी।
इसके अलावा बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव यात्रा में राहुल गाँधी के साथ नज़र आ सकते हैं। कांग्रेस का फोकस पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर है और उसकी नज़र लोकसभा की 27 सीटों पर है। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 21 जीती थीं और उसके नेता मानते हैं कि राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ राज्य में उसे फिर ऐसा कारण का अवसर दे सकती है। ‘भारत जोड़ा यात्रा-2’ का ज़िम्मा इस बार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर होगा, जो इसकी रूपरेखा बनाने में जुटे हैं। यात्रा का संभावित महीना सितंबर हो सकता है। यदि 2 अक्टूबर की तारीख़ तय हुई, तो यात्रा गुजरात के पोरबंदर से शुरू की जा सकती है। यह यात्रा त्रिपुरा तक जाएगी। पिछली यात्रा में राहुल उत्तर प्रदेश पहुँते तो थे; लेकिन $गाज़ियाबाद से प्रवेश करते हुए शामली, बा$गपत होते हुए हरियाणा चले गये थे। ‘भारत जोड़ो यात्रा-2’ का मार्ग मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए तय होगा।
अब चूँकि विपक्षी गठबंधन आकार ले चुका है, जनता को एकता का सन्देश देने के लिए कुछ राज्यों में राहुल गाँधी के साथ विपक्ष के बड़े नेता भी शामिल हो सकते हैं। राजनीति के जानकार यह बार-बार कह चुके हैं कि राहुल गाँधी ने जनता की बीच जाकर साबित कर दिया है कि जनसंवाद का कोई विकल्प नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक एस.पी. शर्मा कहते हैं कि राहुल गाँधी की छवि पिछली यात्रा के बाद काफी बदली है। उन्होंने कहा- ‘भाजपा से लडऩे के लिए उसे जनता की बीच जाना ही होगा। राहुल गाँधी ने पहली यात्रा से जो शुरुआत की थी, उससे कांग्रेस को कर्नाटक और हिमाचल में चुनावी लाभ मिला। यही नहीं, दक्षिण में कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल बनाती दिख रही है, जिससे भाजपा में भी बेचैनी है।’
भाजपा पहले ही 2024 के लिए महा जनसम्पर्क अभियान शुरू कर चुकी है। ‘टिफिन’, ‘मेरा बूथ सबसे मज़बूत’, ‘पन्ना प्रमुखों की बैठक’ इसका हिस्सा हैं। ऐसे में कांग्रेस (विपक्ष) को भी तेज़ी दिखानी होगी और जनसंवाद इसका सबसे बेहतर औज़ार है। इसे पहले देश लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा (कई प्रदेश, 1990), अखिलेश यादव की साइकिल यात्रा (यूपी, 2012), प्रजा संकल्प यात्रा (आंध्रा प्रदेश 2018) जैसे उदाहरण हैं; जब नेताओं ने यात्राओं के ज़रिये जनसंवाद करके अपने-अपने दलों को सत्ता में लाने में अहम भूमिका अदा की। ऐसे ही राहुल गाँधी की 2022-23 की भारत जोड़ो यात्रा का भी व्यापक असर दिखा है। यदि इसका दूसरा चरण भी होता है, तो निश्चित ही इसका असर दिखेगा। लिहाज़ा भारत जोड़ो यात्रा-2 के रूट पर रणनीति तैयार हो रही है। तय है कि राहुल गाँधी की यह यात्रा भी ज़्यादा लम्बी हो सकती है।
“आज़ादी का आन्दोलन जब पूरी प्रखरता पर था, तो महात्मा गाँधी ने जो नारा दिया था; आज फिर से देश के कल्याण के लिए उस नारे की ज़रूरत है। महात्मा गाँधी ने नारा दिया था- अंग्रेजों भारत छोड़ो (क्विट इंडिया) और अंग्रेजों को देश छोडक़र जाना पड़ा था। जैसे गाँधी जी ने भारत छोड़ो का नारा दिया था। वैसे ही आज का मंत्र है- भ्रष्टाचार छोड़ो इंडिया, परिवारवाद छोड़ो इंडिया, तुष्टिकरण छोड़ो इंडिया। यह क्विट इंडिया ही देश को बचाएगा।’’
नरेंद्र मोदी
(राजस्थान में भाषण के दौरान)
“आपको जो कहना है, वो कहिए मिस्टर मोदी! हम इंडिया हैं। ये गठबंधन देश के साथ है। लड़ाई किसके लिए है? आक्रमण किस पर हो रहा है? हमला किस पर हो रहा है? देश के संविधान, लोगों, संस्था, प्रजातंत्र पर। ये भारत बनाम मोदी है। हमारा उद्देश्य देश, लोकतंत्र और संविधान को बचाना है। यही आइडिया ऑफ इंडिया है।’’
राहुल गाँधी
कांग्रेस नेता
‘हमारा फेवरेट…’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी ने बेंगलूरु बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में जहाँ एनडीए पर निशाना साधा, वहीं राहुल गाँधी की ओर इशारा करते हुए कहा- ‘हमारा फेवरेट राहुल गाँधी।’ सभी का ध्यान इस पर ममता की तरफ़ गया।
इससे पहले पटना की बैठक में रालोद नेता लालू यादव ने राहुल गाँधी को दूल्हा बनने की सलाह देते हुए कहा था- ‘आप दूल्हा बनिए, हम आपके बाराती बनेंगे।’ ज़ाहिर है विपक्ष में अब राहुल गाँधी को लेकर भरोसा बढ़ा है। लेकिन बहुत चर्चा है कि यदि राहुल गाँधी मानहानि मामले में क़ानूनी पेच में उलझे, तो उनकी जगह कांग्रेस प्रियंका गाँधी को आगे करेगी या अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को।