देश के विभिन्न राज्यों में हाल के महीनों में बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत हुई है। लेकिन इसके बावजूद बजाय गम्भीर चिन्तन के इसे सिर्फ राजनीतिक का मुद्दा बना दिया गया है। चाहे उत्तर प्रदेश हो, राजस्थान या गुजरात। सैकड़ों बच्चे अस्पतालों या बाहर काल का ग्रास बन गये हैं। लेकिन इस विषय पर बजाय एक गम्भीर राष्ट्रीय बहस या बच्चों की बेशकीमती ज़िन्दगियाँ बचने के रास्ते खोजने के, देश के तमाम राजनीतिक दल बच्चों की मौत जैसे दु:ख भरे मसले को भी बेशर्मी से राजनीतिक सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करने में जुट गये हैं।
अभी भाजपा कांग्रेस शासित राजस्थान में बच्चों की बड़े पैमाने पर मौतों को लेकर राजनीतिक हाहाकार मचा ही रही कि भाजपा शासित और प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में बच्चों मौतों का डराबना आँकड़ा सामने आ गया। और भाजपा के विरोधी दल उस पर टूट पड़े। किसी ने भी यह ज़हमत नहीं कि इन मौतों को रोकने और देश के भविष्य को बचाने के लिए कोइ गम्भीर सुझाव देता।
देश को पाँच मिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के दावों के बीच क्या यह शर्मनाक लगता कि हमारे अस्पतालों में सुविधाओं के अभाव में पिछले दो साल में 3000 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। देश के नेता नागरिकता कानून आदि-आदि को अच्छा या खराब बताने के लिए मरे जा रहे हैं, लेकिन बच्चों की मौत पर चिन्ता करने वक्त उनके पास नहीं है। क्या करेगा देश ऐसी पाँच मिलियन इकोनॉमी का, जो हमारे बच्चों की जान बचाने के ही काम न आये?
पड़ताल बताती है कि कोई भी राज्य सरकार अपने यहाँ बच्चों की मौते जैसे गम्भीर मसले पर ज़रा भी संवेदनशील नहीं है। होती तो मौतों की जानकारी सामने आने के बाद बजाय पिछली सरकारों के आँकड़े गिनाने के, बच्चों की जान बचाने के तरीके खोजती। भाजपा ने देखा कि कांग्रेस के शासन वाले राजस्थान में मौतें हो रही हैं, राजनीति की बहती गंगा में हाथ धो लो। अब गुजरात में बड़े पैमाने पर मौतों की सच्चाई सामने आ गयी, तो भाजपा की तो बोलती बंद हो गयी और कांग्रेस ने मौके को लपक लिया।
लेकिन यह सच है कि देश हरेक संवेदनशील व्यक्ति को बच्चों की बड़े पैमाने पर इन मौतों ने विचलित करके रख दिया है। राजस्थान से लेकर गुजरात तक अस्पतालों में बच्चे ज़िन्दगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। सैकड़ों बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है। राजस्थान के कोटा के जेके लोन अस्पताल का मामला सामने आने के बाद जोधपुर, बूंदी और बीकानेर में शिशुओं की मौत से हडक़ंप मचा हुआ थी कि 5 जनवरी को गुजरात में भी 200 बच्चों के मरने की जानकारी सामने आ गयी। पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार भाजपा के निशाने पर थे, अब भाजपा कांग्रेस के निशाने पर आ गयी। अहमदाबाद और राजकोट के अस्पताल में तकरीबन 200 बच्चों की मौत के बाद गुजरात की विजय रूपाणी सरकार सवालों के घेरे में है। रिपोट्र्स के मुताबिक, इनमें से 100 बच्चे तो उस क्षेत्र से हैं, जो खुद मुख्यमंत्री रुपाणी का गृह क्षेत्र है। अब भाजपा क्या कहेगी?
पिछले साल उत्तर प्रदेश में सैकड़ों बच्चों की मौत की खबरें लम्बे समय तक चर्चा में हैं। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजस्थान में मौतों को लेकर दहाड़ रहे थे। तब अशोक गहलोत रक्षात्मक थे। हालाँकि, तर्क उनके भी बेहूदे थे। जैसे आज हो रही मौतों पर पिछली सरकारों के वक्त में हुई मौतों के आँकड़े गिनाना। भले पहले के आँकड़े ज़्यादा रहे हों, क्या एक सीएम को तरह के तर्कों से संकट का सामना करना चाहिए? और योगी, जो अशोक गहलोत से इस्तीफा माँग रहे थे, क्या अब अपनी ही पार्टी के विजय रूपाणी से भी इस्तीफा माँगने की हिम्मत दिखाएँगे, क्योंकि दोनों ही मामलों की संवेदनशीलता एक जैसी ही है।
यूपी में योगी सरकार के ही रहते पिछले महीनों में सैकड़ों बच्चों की मौत हुई है। राज्य में सबसे बड़े अस्पताल बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त 2017 में ऑक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत हो गयी थी। वहाँ आज तक सिस्टम को सुधारने के लिए कोई गम्भीर प्रयास नहीं हुए।
गुजरात में जब बच्चों की बड़े पैमाने पर मौत की जानकारी सामने आयी और मीडिया ने मुख्यमंत्री रूपाणी से सवाल पूछने चाहे, तो वे मुँह फेरकर निकल गये, जिससे हमारे नेताओं की इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर गम्भीरता का पता चलता है। वे कभी भी खुद को जवाबदेह नहीं बनाना चाहते। हाँ, राजनीति की रोटियाँ सेंकने का अवसर मिल जाये, तो पीछे नहीं हटते।
मीडिया रिपोट्र्स का अध्ययन करें, तो ज़ाहिर होता है कि राजस्थान में बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। कोटा जेके लोन अस्पताल में 35 दिन में 110 बच्चों की मौत के बाद बीकानेर के पीबीएम शिशु अस्पताल में यह रिपोर्ट तक 31 दिन में 162 बच्चे काल का ग्रास बन चुके थे। अध्ययन किया जाए, तो ज़ाहिर होता है कि हर दिन औसतन पाँच से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई है। दिसंबर, 2019 की ही बात करें तो अस्पताल में जन्मे और बाहर से आये 2219 बच्चे पीबीएम शिशु अस्पताल में भर्ती हुए जिनमें से 162 यानी करीब साड़े सात फीसदी की मौत हो गयी। दिसंबर में एनआईसीयू और पीआईसीयू में बच्चों की कुल मौतों की संख्या 146 है। एसएन मेडिकल कॉलेज से प्राप्त आँकड़ों के मुताबिक, इन दोनों ही अस्पतालों में दिसंबर महीने में 4689 बच्चों को भर्ती कराया गया था। इनमें से 3002 नवजात थे। इलाज के दौरान कुल 146 बच्चों की मौत हो गयी, जिनमें से 102 नवजात थे।
जनवरी, 2019 से दिसंबर तक कुल 1681 बच्चों की मौत हो चुकी है। अस्पताल में सुविधाओं का ज़बरदस्त टोटा है। विस्तर बहुत कम हैं। सबसे ज़्यादा मौतें नियोनेटल केयर यूनिट यानी नवजात बच्चों की देखभाल वाले केन्द्र में हुई हैं। वेंटिलेटर तक पूरे नहीं हैं।
गुजरात में मौतें
उधर अब राजस्थान के बाद भाजपा शासित और पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात में 200 से ज़्यादा बच्चों की मौत का मामला गरमा गया है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद के दो सरकारी अस्पतालों में 200 के करीब बच्चों की मौत हो चुकी थी। सरकारी अस्पताल में शिशुओं की मौत की रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कोई जवाब नहीं दिया। सीएम रूपाणी राजकोट की पश्चिम विधानसभा सीट से ही विधायक हैं, जहाँ ज़्यादा मौतें हुई हैं।
राजकोट और अहमदाबाद के सिविल अस्पतालों में बच्चों की मौत पर कांग्रेस ने भाजपा पर हमला बोला। अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुष्मिता देव ने ट्वीट कर पूछा- ‘क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भाजपा शासित गुजरात में बच्चों की मौत पर मौन रहेंगे।’ रिपोट्र्स के मुताबिक, राजकोट के सिविल अस्पताल में 134 बच्चों, जबकि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 85 बच्चों की मौत हुई है। खबर आने के बाद राजकोट सिविल अस्पताल के डीन मनीष मेहता ने कहा कि अस्पताल में दिसंबर के महीने में 111 बच्चों की मौत हो गयी थी, जबकि अहमदाबाद सिविल अस्पताल के अधीक्षक जीएस राठौड़ ने कहा कि दिसंबर में 455 नवजात शिशुओं नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती किये गये थे, जिनमें 85 की मौत हो गयी। हालाँकि, बच्चों की मौत के लिए दोनों ही डॉक्टरों ने कोई कारण नहीं बताया।
भयावह आँकड़े
यदि आँकड़े देखें, तो यह सचमुच डराने वाले हैं। हाल के वर्षों में लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में एक साल में 650 बच्चों की मौत, भोपाल के हमीदिया अस्पताल में एक साल में ही 800 बच्चों की मौत, पुणे के ससून अस्पताल में एक साल में 208 बच्चों, जोधपुर के उम्मेद और एमडीएम अस्पताल में दिसंबर से 146 बच्चों की मौत, बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में पिछले 35 दिन में 162 से ज़्यादा मौतें, रांची के सरकारी अस्पताल रिम्स में हर महीने औसतन 96 बच्चों की मौत और कोटा के जेके लोन अस्पताल में 35 दिन में 110 बच्चों की मौत के आँकड़े आधिकारिक रूप से सामने आ चुके हैं। और अब गुजरात में 200 बच्चों की मौत की खबर ने सभी को झकझोरकर रख दिया।