राजनीतिक बिसात पर पिता-पुत्र

छत्तीसगढ़ में इन दिनों दो शीर्ष राजनीतिज्ञ अपने-अपने बेटों का राजतिलक करने को लालायित हैं. इनमें पहले हैं अजीत जोगी. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अपने बेटे अमित जोगी को मरवाही से विधायक बनवाकर एक कदम आगे बढ़ चुके हैं. वहीं दूसरे, राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने बेटे अभिषेक को सीधे देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में भेजने की तैयारी कर रहे हैं. दोनों ही पिता लंबी राजनीतिक पारी खेल चुके हैं और अब अपने बेटों को राजनीति में स्थापित करने के लिए बेकरार हैं.

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रमन के अभिषेक
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह यूं तो इन दिनों लोकसभा चुनाव के प्रचार में व्यस्त हैं. उनके ऊपर राज्य की जिम्मेदारी तो है ही साथ में वे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में भी जाकर चुनावी सभाएं कर रहे हैं. हालांकि उनके करीबी बताते हैं कि इस दौरान भी वे अपने बेटे अभिषेक सिंह (32 वर्ष) की लोकसभा सीट पर नजर रखे रहते हैं. मुख्यमंत्री मोबाइल फोन और इंटरनेट के जरिए पल-पल राजनांदगांव लोकसभा सीट पर चल रहे अभिषेक के चुनाव अभियान की जानकारी लेते रहते हैं.

हालांकि अभिषेक का यह पहला चुनाव है लेकिन इसी में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह उन्हें अपने पिता से भी अच्छा वक्ता करार दे चुके हैं. जहां तक रमन सिंह की बात है तो उनकी तैयारी देखकर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि वे भाषण कला के अलावा राजनीति में भी अभिषेक को खुद से आगे देखना चाहते हैं. यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने अपने बेटे के चुनाव प्रचार में सहायता के लिए सबसे युवा, होनहार और तकनीक से लैस कार्यकर्ताओं की टीम काम पर लगाई है. लोधी बहुल सीट होने के कारण कांग्रेस ने जाति कार्ड खेलते हुए राजनांदगांव सीट से कमलेश्वर वर्मा को टिकट दिया है. वर्मा इसे हल और महल की लड़ाई बता रहे हैं. वहीं भाजपा कार्यकर्ता इसे युवा वर्ग की बढ़त बता रहे हैं क्योंकि अभिषेक सिंह के रूप में लंबे समय बाद राजनांदगांव को वाकई ‘युवा’ उम्मीदवार मिल पाया है.

भाजपा आईटी सेल के प्रदेश सहसंयोजक प्रकाश बजाज कहते हैं, ‘ अभिषेक सिंह खुद उच्च शिक्षित हैं. उन्होंने इंजीनियरिंग के बाद बिजनेस मैनेजमेंट की शिक्षा भी ली है. अभिषेक की एक खूबी ये भी है कि वे मुख्यमंत्री के बेटे होते हुए भी बहुत जमीनी व्यक्ति हैं.  यही उनकी ताकत है. चुनावी मैनेजमेंट में उन्हें महारथ हासिल है, जो हाल ही में हुए विधानसभा में वे साबित कर चुके हैं.’

भाजपा ने 2009 में यह सीट 1,19,074 वोट के अंतर से जीती थी. लेकिन बीते विधानसभा चुनाव के नतीजे पार्टी के लिए चुनौती पेश करते हैं. राजनांदगांव की आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस और भाजपा के पास चार-चार सीटें हैं. भाजपा ने राजनांदगांव, डोंगरगढ़, पंडरिया और कवर्धा सीट जीती जबकि कांग्रेस ने खैरागढ़, डोंगरगांव, खुज्जी और मोहला मानपुर सीट जीतीं. लेकिन बावजूद इसके अभिषेक अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई देते हैं. वे कहते हैं, ‘कई बार चुनाव प्रचार के दौरान महिलाएं उन्हें गोंदली (प्याज) देते हुए कहती हैं कि रख लो, इससे तुम्हें लू नहीं लगेगी. बस यहीं मुझे लगता है कि मैं उनका बेटा हूं, उनके बीच का हूं. तब ऐसे में मुझे लगता है कि मेरी जीत सुनिश्चित है.’

मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके बेटे अभिषेक दोनों ही क्रिकेट के शौकीन हैं. दोनों ही राजनीति के विषय पर जितना ज्ञान रखते हैं उतनी ही क्रिकेट पर भी पकड़ है. लेकिन राजनीति और क्रिकेट में कब कौन बाजी मार ले जाए इसका अंदाजा पहले से नहीं लगाया जा सकता. कुछ इसी तर्ज पर यहां भी कहा जा सकता है कि पिता-पुत्र की स्टार जोडी की जुगलबंदी तो काफी अच्छी चल रही है लेकिन राजनांदगांव की घरेलू राजनीतिक पिच पर अंतिम फैसला आने में अभी वक्त है.

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अजीत के मैनेजर अमित
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ दो मिथक जुड़े हुए हैं. पहला यह कि वे हारने के लिए नहीं लड़ते (मध्य प्रदेश में शहडोल चुनाव जैसे एकाध अपवाद को छोड़कर) और दूसरा यह कि वे प्रदेश स्तर पर सर्वाधिक मतों से जीतते हैं. ऐसा ही कुछ उनके सुपुत्र अमित जोगी (36 वर्ष) के साथ है. उनके नजदीकी लोग बताते हैं कि इतिहास और राजनीति शास्त्र के छात्र रह चुके अमित बेहद तेज दिमाग हैं और अपने पिता की ही तरह किसी भी तरह के चुनाव के कुशल प्रबंधक भी. दोनों का नाम अक्सर सुर्खियों में रहता है. इस समय पिता-पुत्र की यह जोड़ी भी छत्तीसगढ़ में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

अजीत जोगी महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से किस्मत आजमा रहे हैं. चुनाव की रणभूमि में उनके पुत्र अमित जोगी सारथी की भूमिका निभा रहे हैं. अजीत जोगी के चुनाव का पूरा प्रबंधन अमित ने अपने हाथ में ले रखा है. रायपुर स्थित सागौन बंगले को वॉर रूम में तब्दील कर दिया गया है. अमित ना केवल रायपुर के अपने वॉर रूम से चुनाव संचालित कर रहे हैं, बल्कि समय मिलने पर अपने पिता के लोकसभा क्षेत्र में जाकर भी चुपचाप समीकरण बदलने में जुटे हुए हैं. अमित जोगी ने इसके लिए विशेष रणनीति बनाई है. इसके तहत महासमुंद के मतदाताओं को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया गया है ताकि उन तक व्यवस्थित तरीके से पहुंचा जा सके. उनका सबसे ज्यादा फोकस सामाजिक संगठनों पर है. महासमुंद में बहुतायात में रहने वाले साहू (22 फीसदी), कुर्मी (अघरिया पटेल 20 फीसदी), सतनामी (15 फीसदी), गणा (5 फीसदी) महार (5 फीसदी) और तांडी व कोलता (उड़िया समुदाय) को रिझाने का काम अमित ने अपने जिम्मे ले रखा है. वे इन समुदाय के लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिल रहे है. महासमुंद में बड़ी संख्या में ईसाई मतदाता भी निवास करते हैं. इस समुदाय को लेकर जोगी गुट निश्चिंत है. माना जा रहा है कि महासमुंद के ईसाई वोट अजीत जोगी के पक्ष में ही पड़ेंगे क्योंकि ‘छुईपाली’ का कैथोलिक चर्च अजीत जोगी को समर्थन दे रहा है. लेकिन हिंदू वोट साधने के लिए जोगी जोड़ी को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है. इसका कारण उनके लोकसभा क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सक्रियता है. संघ की सक्रियता का ही नतीजा है कि महासमुंद में ईसाई बनाम हिंदू फैक्टर भी काम कर रहा है.

लेकिन इन सबके परे अमित जोगी की टीम के सदस्य के रूप में काम कर रहे सुबोध हरितवाल बताते हैं, ‘ अमित पूरे लोकसभा क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं. बूथ स्तर पर बैठकें ले चुके हैं. युवाओं से मुलाकात कर रहे हैं. वे अपनी टीम के सदस्यों को काम तो सौंप ही रहे हैं, साथ ही हरेक की मॉनिटरिंग भी कर रहे हैं. खुद के दफ्तर को उन्होंने वॉर रूम बना लिया है. उनकी रणनीति के अगले चरण में वे 11 अप्रैल के बाद से सभाएं भी लेना शुरू करेंगे. लेकिन सभाओं के पहले सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों से खुद मिलकर अपने पिता के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं.’ खुद अजीत जोगी भी मानते हैं, ‘अमित का चुनाव प्रबंधन बेजोड़ है. वे लगातार लोगों के संपर्क में रहते हैं. क्षेत्र के लोगों में उनकी अच्छी पकड़ भी है. ‘

2009 के पिछले चुनाव में भाजपा की टिकट पर इस सीट से चंदूलाल साहू मैदान में उतरे थे. कांग्रेस ने मोतीलाल साहू को अपना उम्मीदवार बनाया था. तब यह सीट जीतने वाली भाजपा को 47 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस के पक्ष में 41 फ़ीसदी वोट पड़े थे. इस चुनाव में भाजपा को सरायपाली, बसना, महासमुंद, बिंद्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल हुई थी. जबकि कांग्रेस खल्लारी, राजिम, कुरुद और धमतरी विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही. 2013 के पिछले विधानसभा चुनाव में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति काफी खराब रही. इस चुनाव में क्षेत्र अंतर्गत आने वाली धमतरी सीट ही कांग्रेस के खाते में आई. जबकि सरायपाली, बसना, खल्लारी, राजिम, बिंद्रानवागढ़ और कुरुद सीटों पर भाजपा का परचम लहराया. महासमुंद की सीट निर्दलीय के हिस्से में आई. कुल मिलाकर महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को करीब सत्तासी हजार वोट की बढ़त मिली. अब एक बार फिर चंदूलाल साहू भाजपा के उम्मीदवार हैं और उनका चुनाव प्रचार भी तयशुदा रणनीति के तहत हो रहा है. इस बार अजीत जोगी के मुकाबले में होने की वजह से माहौल थोड़ा अलग है. महासमुंद के अंतिम गांव बलोदा (इसके बाद ओडिशा शुरू हो जाता है) के निवासी और उड़िया समुदाय के प्रमुख नेता महेंद्र बाघ इस बात की पुष्टि करते हैं, ‘अजीत जोगी खुद अपने आप में सक्षम नेता हैं. वे अपनी योजना खुद बनाते हैं. लेकिन उनके पुत्र अमित भी उनकी मदद कर रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी अलग टीम है. जो चुनाव संचालन में पूरी तरह दक्ष है.’

विधानसभा चुनाव के परिणामों पर गौर करें तो महासमुंद के समर में भाजपा की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है. वहीं जोगी का इतिहास भी अपने आप में उनके लिए काफी सकारात्मक तस्वीर बनाता है. ऐसे में यदि इसबार भाजपा के इस अभेद्य किले में वे सेंध लगा दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा. वहीं एक दूसरी बात यह भी है जोगी पिता-पुत्र साम-दाम-दंड-भेद की सभी नीतियों में एक समान ही कुशल माने जाते हैं. उनकी चुनावी रणनीति का एक हिस्सा तो उजागर है लेकिन इनका एक पक्ष ऐसा भी है जिसके बारे में कोई नहीं जानता. इस बात का प्रमाण यह है कि अमित जोगी की टीम के कई समर्पित स्थाई सदस्य इन दिनों ना तो कहीं दिखाई दे रहे हैं, ना ही वे मोबाइल फोन पर उपलब्ध हैं. उनके फोन लगातार स्विच ऑफ वाले मोड में हैं. चर्चा है कि अमित ने अपने इन विश्वस्तों को अंडरग्राउंड सक्रिय किया हुआ है. अब अंडरग्राउंड होकर वे किस तरह से अजीत जोगी के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं इस पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा के गढ़ को ढहाने और अपने पिता की जीत पक्की करने के लिए अमित कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहते.