चुनाव प्रचार में जनता को मुफ्त में सुविधाएं (बिजली-पानी आदि) उपलब्ध करवाने के वादों पर सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेषज्ञ निकाय बनाने की वकालत करते हुए एक हफ्ते के भीतर इसे लेकर प्रस्ताव पेश करने को कहा है। इस मामले पर अब 11 अगस्त को अगली सुनवाई होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ये मुद्दा (फ्री बी) सीधे देश की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है। अदालत ने एक हफ्ते के भीतर ऐसे विशेषज्ञ निकाय के लिए प्रस्ताव मांगते हुए ऐसे निकाय में केंद्र, विपक्ष के दलों, चुनाव आयोग, नीति आयोग, आरबीआई और अन्य हितधारकों को शामिल करने का सुझाव दिया है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे निकाय में दोनों अर्थात फ्री बी पाने वाले और इसका विरोध करने वाले भी शामिल किये जाएं।
इस मामले पर अब 11 अगस्त को अगली सुनवाई होगी। बुधवार को देश के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है। मुफ्त उपहारों का एक पहलू यह है कि ये गरीबों और दलितों के कल्याण के लिए आवश्यक हैं लेकिन आर्थिक पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि चुनाव आयोग को इससे दूर रखें। यह एक आर्थिक मुद्दा है और इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाए। उन्होंने कहा कि वित्त आयोग सुझाव दे सकता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आपको लगता है कि संसद इस पर बहस करेगी? कोई भी राजनीतिक दल इस पर चर्चा करने के लिए सहमत होगा ? सभी दल मुफ्त चाहते हैं। लेकिन अंतत: करदाता की सोच महत्वपूर्ण है। वे चाहते हैं कि धन का उपयोग विकास के लिए हो न कि केवल राजनीतिक दलों द्वारा उपयोग किया जाए।
उन्होंने कहा कि सभी को एक स्वतंत्र मंच पर बहस में भाग लेने दें। सत्तारूढ़ दल, विपक्ष आदि सहित सभी हितधारकों को इस पर बहस करने दें। उन्हें सभी वर्गों के साथ बातचीत करने दें। मुफ्त के लाभार्थियों के साथ-साथ इसका विरोध करने वाले भी शामिल हों। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दबे-कुचले लोगों के बारे में भी सोचना होगा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि राजनीतिक दलों को फ्रीबीज के लिए पैसा कहां से मिलता है ? केंद्र सरकार के महाधिवक्ता (सॉलिसिटर जनरल ) तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को एक बार समीक्षा करने दी जाए। ये देश राज्य और जनता पर बोझ बढ़ाता है और सैद्धांतिक रूप से सरकार भी इस दलील से सहमत है।