रफाल लड़ाकू विमान खरीद में भ्रष्टाचार का जिन्न फिर बाहर आ गया है। कांग्रेस और राहुल गांधी इस मामले में भाजपा पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। अब फ्रांस की एक समाचार वेबसाइट ‘मीडिया पार्ट’ ने रफाल खरीद सौदे में भ्रष्टाचार की बात कहते हुए ढेरों सवाल उठा दिए हैं। मीडिया पार्ट ने बाकायदा फ्रेंच भ्रष्टाचार निरोधक एजंसी की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया है कि दसो एविएशन ने बोगस नजर आने वाले भुगतान किए हैं।
यह खबर सामने आने के बाद भारत में राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ है। रफाल खरीद में भ्रष्टाचार होने का मामला फिर मीडिया में आने के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार पर तीखा हमला किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो पहले से ही इस मामले में मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं।
मीडिया पार्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दसो एविएशन कंपनी के 2017 के खातों के ऑडिट में 5 लाख 8 हजार 925 यूरो (4.39 करोड़ रुपए) क्लाइंट गिफ्ट के नाम पर खर्च दर्शाए गए हैं, हालांकि तनी बड़ी राशि का कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। मॉडल बनाने वाली कंपनी का मार्च 2017 का एक बिल ही उपलब्ध कराया गया।
एएफए की जांच के दौरान दसो एविएशन ने बताया कि उसने रफाल विमान के 50 मॉडल एक भारतीय कंपनी से बनवाए। इन मॉडल के लिए 20 हजार यूरो (17 लाख रुपए) प्रति पीस के हिसाब से भुगतान किया गया। यह मॉडल कहां और कैसे इस्तेमाल किए गए, इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मॉडल बनाने का काम कथित तौर पर भारत की कंपनी डेफसिस साल्यूशंस को दिया गया।
बता दें यह कंपनी दसो की भारत में सब-कॉन्ट्रैक्टर कंपनी है। इसका स्वामित्व रखने वाले परिवार से जुड़े सुषेण गुप्ता रक्षा सौदों में बिचौलिए रहे और दसो के एजेंट भी।सुषेण गुप्ता को 2019 में अगस्ता-वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले की जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था। रिपोर्ट के मुताबिक सुषेण ने ही दसो एविएशन को मार्च 2017 में रफाल मॉडल बनाने के काम का बिल दिया था।
यह रिपोर्ट सामने आने के बाद अब रफाल का मामला फिर गरमा गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में रफाल खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले रफाल का मामला आने से भाजपा को परेशानी हो सकती है।
रिपोर्ट सामने आते ही कांग्रेस ने सोमवार को मोदी सरकार पर हमला किया है। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा – ‘इस पूरे लेन-देन को गिफ्ट टू क्लाइंट की संज्ञा दी गई। अगर ये मॉडल बनाने के पैसे थे, तो इसे गिफ्ट क्यों कहा गया? क्या ये छिपे हुए ट्रांजेक्शन का हिस्सा था। ये पैसे जिस कंपनी को दिए गए, वो मॉडल बनाती ही नहीं है। 60 हजार करोड़ रुपए के रफाल रक्षा सौदे से जुड़े मामले में सच्चाई सामने आ गई है। ये हम नहीं फ्रांस की एक एजेंसी कह रही है।’
सुरजेवाला ने मोदी सरकार से 5 सवाल भी किए हैं। इनमें पहला यह है कि 1.1 मिलियन यूरो के जो क्लाइंट गिफ्ट डसॉल्ट के ऑडिट में दिखा रहा है, क्या वो रफाल डील के लिए बिचौलिये को कमीशन के तौर पर दिए गए थे? दूसरा – जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है? तीसरा – क्या इस सबसे राफेल डील पर सवाल नहीं खड़े हो गए हैं?
कांग्रेस ने चौथा वाल यह किया है कि क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि डील के लिए किसको और कितने रुपए दिए गए?
क्या प्रधानमंत्री इस पर जवाब देंगे?
याद रहे कांग्रेस ने रफाल सौदे में गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया था। पार्टी का आरोप था कि जिस लड़ाकू विमान को यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपए में लिया था उसे एनडीए सरकार ने 1670 करोड़ प्रति विमान की दर से लिया। कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया था कि सरकारी एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया। इस फैसले के खिलाफ लगाई गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर, 2019 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस मामले की जांच की जरूरत नहीं है। हालांकि, विमान खरीद में राशि को इसमें नहीं जोड़ा गया था।
अब मीडिया पार्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रफाल लड़ाकू विमान डील में गड़बड़ी का सबसे पहले पता फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए को 2016 में हुए इस सौदे पर दस्तखत के बाद लगा। एएफए को मालुम हुआ कि रफाल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन ने एक बिचौलिए को 10 लाख यूरो देने पर रजामंदी जताई थी। यह हथियार दलाल इस समय एक अन्य हथियार सौदे में गड़बड़ी के लिए आरोपी है, हालांकि एएफए ने इस मामले को प्रोसिक्यूटर के हवाले नहीं किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर 2018 में फ्रांस की पब्लिक प्रोसिक्यूशन एजेंसी को राफ़ेल सौदे में गड़बड़ी के लिए ‘अलर्ट’ मिला और कमोवेश उसी समय फ्रेंच कानून के म्युताबिक दसौ एविएशन के ऑडिट का भी समय हो गया। कंपनी के 2017 के खातों की जाँच का दौरान ‘क्लाइंट को गिफ्ट’ के नाम पर हुए 508925 यूरो के खर्च का पता लगा। यह समान मद में अन्य मामलों में दर्ज खर्च राशि के मुकाबले कहीं अधिक था।
मीडिया पार्ट के दावे के मुताबिक इस खर्च पर मांगे गए स्पष्टीकरण पर दसौ एविएशन ने एएफए को 30 मार्च, 2017 का बिल मुहैया कराया जो भारत की डेफसिस साल्यूशंस की तरफ से दिया गया था। यह बिल राफ़ेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दिए ऑर्डर का आधे काम के लिए था। इसके लिए प्रति पीस 20, 357 यूरो की राशि का बिल थमाया गया। अक्टूबर 2018 के मध्य में इस खर्च के बारे में पता लगने के बाद एएफए ने दसौ से पूछा कि आखिर कंपनी ने अपने ही लड़ाकू विमान के मॉडल क्यों बनवाये और इसके लिए 20 हज़ार यूरो की मोटी रकम क्यों खर्च की गई? साथ ही सवाल पूछे गए कि क्या एक छोटी कार के आकार के यह मॉडल कभी बनाए या कहीं लगाए भी गए? जाहिर है रफाल भ्रष्टाचार का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है।
मीडिया पार्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दसो एविएशन कंपनी के 2017 के खातों के ऑडिट में 5 लाख 8 हजार 925 यूरो (4.39 करोड़ रुपए) क्लाइंट गिफ्ट के नाम पर खर्च दर्शाए गए हैं, हालांकि तनी बड़ी राशि का कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। मॉडल बनाने वाली कंपनी का मार्च 2017 का एक बिल ही उपलब्ध कराया गया।
एएफए की जांच के दौरान दसो एविएशन ने बताया कि उसने रफाल विमान के 50 मॉडल एक भारतीय कंपनी से बनवाए। इन मॉडल के लिए 20 हजार यूरो (17 लाख रुपए) प्रति पीस के हिसाब से भुगतान किया गया। यह मॉडल कहां और कैसे इस्तेमाल किए गए, इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मॉडल बनाने का काम कथित तौर पर भारत की कंपनी डेफसिस साल्यूशंस को दिया गया।
बता दें यह कंपनी दसो की भारत में सब-कॉन्ट्रैक्टर कंपनी है। इसका स्वामित्व रखने वाले परिवार से जुड़े सुषेण गुप्ता रक्षा सौदों में बिचौलिए रहे और दसो के एजेंट भी।सुषेण गुप्ता को 2019 में अगस्ता-वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले की जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था। रिपोर्ट के मुताबिक सुषेण ने ही दसो एविएशन को मार्च 2017 में रफाल मॉडल बनाने के काम का बिल दिया था।
यह रिपोर्ट सामने आने के बाद अब रफाल का मामला फिर गरमा गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में रफाल खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले रफाल का मामला आने से भाजपा को परेशानी हो सकती है।
रिपोर्ट सामने आते ही कांग्रेस ने सोमवार को मोदी सरकार पर हमला किया है। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा – ‘इस पूरे लेन-देन को गिफ्ट टू क्लाइंट की संज्ञा दी गई। अगर ये मॉडल बनाने के पैसे थे, तो इसे गिफ्ट क्यों कहा गया? क्या ये छिपे हुए ट्रांजेक्शन का हिस्सा था। ये पैसे जिस कंपनी को दिए गए, वो मॉडल बनाती ही नहीं है। 60 हजार करोड़ रुपए के रफाल रक्षा सौदे से जुड़े मामले में सच्चाई सामने आ गई है। ये हम नहीं फ्रांस की एक एजेंसी कह रही है।’
सुरजेवाला ने मोदी सरकार से 5 सवाल भी किए हैं। इनमें पहला यह है कि 1.1 मिलियन यूरो के जो क्लाइंट गिफ्ट डसॉल्ट के ऑडिट में दिखा रहा है, क्या वो रफाल डील के लिए बिचौलिये को कमीशन के तौर पर दिए गए थे? दूसरा – जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है? तीसरा – क्या इस सबसे राफेल डील पर सवाल नहीं खड़े हो गए हैं?
कांग्रेस ने चौथा वाल यह किया है कि क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि डील के लिए किसको और कितने रुपए दिए गए?
क्या प्रधानमंत्री इस पर जवाब देंगे?
याद रहे कांग्रेस ने रफाल सौदे में गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया था। पार्टी का आरोप था कि जिस लड़ाकू विमान को यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपए में लिया था उसे एनडीए सरकार ने 1670 करोड़ प्रति विमान की दर से लिया। कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया था कि सरकारी एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया। इस फैसले के खिलाफ लगाई गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर, 2019 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस मामले की जांच की जरूरत नहीं है। हालांकि, विमान खरीद में राशि को इसमें नहीं जोड़ा गया था।
अब मीडिया पार्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रफाल लड़ाकू विमान डील में गड़बड़ी का सबसे पहले पता फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए को 2016 में हुए इस सौदे पर दस्तखत के बाद लगा। एएफए को मालुम हुआ कि रफाल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन ने एक बिचौलिए को 10 लाख यूरो देने पर रजामंदी जताई थी। यह हथियार दलाल इस समय एक अन्य हथियार सौदे में गड़बड़ी के लिए आरोपी है, हालांकि एएफए ने इस मामले को प्रोसिक्यूटर के हवाले नहीं किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर 2018 में फ्रांस की पब्लिक प्रोसिक्यूशन एजेंसी को राफ़ेल सौदे में गड़बड़ी के लिए ‘अलर्ट’ मिला और कमोवेश उसी समय फ्रेंच कानून के म्युताबिक दसौ एविएशन के ऑडिट का भी समय हो गया। कंपनी के 2017 के खातों की जाँच का दौरान ‘क्लाइंट को गिफ्ट’ के नाम पर हुए 508925 यूरो के खर्च का पता लगा। यह समान मद में अन्य मामलों में दर्ज खर्च राशि के मुकाबले कहीं अधिक था।
मीडिया पार्ट के दावे के मुताबिक इस खर्च पर मांगे गए स्पष्टीकरण पर दसौ एविएशन ने एएफए को 30 मार्च, 2017 का बिल मुहैया कराया जो भारत की डेफसिस साल्यूशंस की तरफ से दिया गया था। यह बिल राफ़ेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दिए ऑर्डर का आधे काम के लिए था। इसके लिए प्रति पीस 20, 357 यूरो की राशि का बिल थमाया गया। अक्टूबर 2018 के मध्य में इस खर्च के बारे में पता लगने के बाद एएफए ने दसौ से पूछा कि आखिर कंपनी ने अपने ही लड़ाकू विमान के मॉडल क्यों बनवाये और इसके लिए 20 हज़ार यूरो की मोटी रकम क्यों खर्च की गई? साथ ही सवाल पूछे गए कि क्या एक छोटी कार के आकार के यह मॉडल कभी बनाए या कहीं लगाए भी गए? जाहिर है रफाल भ्रष्टाचार का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है।