प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में 19 सितंबर 2018 को रक्षकों की रक्षा के लिए सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें वर्तमान सरकार द्वारा अपनाए जा रहे ‘ड्रेकोनियन लॅा’ और अघोषित आपातकाल की चर्चा की गई। जिसमें नागरिकों की आवाज को बुलंद करने वालों को किस तरह प्रताडि़त किया जाता है।
इस पर अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और साथ-साथ भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया और चर्चा की। इसमें सोनी सोरी के साथ मो आमीर खान और हिमांशु कुमार की दास्तान रोंगटे खडे करने वाली थी। सोनी शौरी ने सदा आदिवासी और दबे कुचले लोगों की आवाज़ को बुलंद किया । आज वह राज्य प्रायोजित मिशनरी का बहादुरी से सामना कर रही है। सम्मेलन में उन्हें ‘फ्रॉन्ट लाइन डिफेन्डर’ के सम्मान से सम्मानित किया। सम्मेलन में उन्होंने मौजूदा उत्पीडऩ की चर्चा में कहा कि पीछे कुछ भी उनके साथ हुआ उसको भूलकर वे आगे देखती हैं और छत्तीसगढ़ के बस्तर में रह रहे आदिवासियों, दलितों की आवाज़ को आगे उठाने का बीड़ा उठाती है।
सामाजिक समरसता पर हो रहे हमले का जि़क्र करते हुए मो आमीर खान ने पूछा कि हमारे साथ जिस तरह से किया गया क्या वे हमें पिछला समय वापस दे सकते हैं? हमारे पिता को मुझसे किला सकते हैं? आज वह 14 वर्ष वनवास काटकर आकर पूछते हैं कि कब इस तरह से निर्दोष लोगों को फसा कर सताया जाता रहेगा? अपने वक्तव्य में आमीर ने बताया कि बचपन में हमने सुना कि मुसलमान कटुए होते हैं। बाद में आतंकवाद से जोड़ा गया। अब तो हर मुसलमान जो दाढ़ी वाला और टोपी वाला है उसे लादेन समझा जाने लगा है।
छत्तीसगढ़ में रमन सरकार की कारगुजारी के बारे में हिमांशु कुमार बताते हैं कि हमने किसी कॉपोरेट या सरकार की नौकरी करने के बजाए जनसेवा को चुना। शादी के 20 दिन बाद ही हमने अपना सामान बांधकर बस्तर के छोटे से गांव में एक पेड़ के नीचे रहना शुरू कर किया। हमने वहां लोगों को मामूली बीमारी मलेरिया, डारिया, डाईसेंटरी से परेशान देखा। जहां विद्यालय, राशन की दुकान, आंगनबाडी स्वास्थ्य केंद्र तो देखा, लेकिन वहां काम होते नहीं देखा। हमने उन्हें लोकतांत्रिक अधिकार के प्रति जागरूक कर अधिकारी के पास ले जाने लगे। अधिकारी लोग काफी खुश थे कि आप लोग दिल्ली से आकर बस्तर में काम करते हैं। जबकि कोई सरकारी कर्मचारी यहां काम नहीं करना चाहता है। हमें सरकार की सभी सलाहकार कमेटियों में रखा गया और मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया। जहां न्यायाधीश के साथ बैठकर लोक अदालत में लोगों को राहत दिलवाई।
कहानी ने तब मोड़ लिया जब हमने जबरन हो रहे उत्पीडऩ के खिलाफ आवाज़ बुलंद की। इस पर मेरे आश्रम को उजाड फेंक दिया गया। वहां के उत्पीडऩ कर सूचना गृहमंत्री का दी। उसके बावजूद वहां उत्पीडऩ और बढ़ गया। सारी दुनिया में आदिवासियों को मारा गया है। दुनिया के 65 देशों में आदिवासियों को मिटा दिया गया। भारत अपने आदिवासियों को आज मिटा रहा है। सवाल यह नहीं है कि आज हम इन आदिवासियों की हत्याओं को रोक सकेंगे। मगर इतिहास में हम यह ज़रूर दर्ज करा देंगे कि भारत में जब यह हो रहा था तो हम चुप नहीं थे।
भाषा सिंह बताती है कि यह अघोषित आपातकाल है और हम सेल्फ सेंसरशिप में जी रहे हैं। हर तरफ खौफ बैठाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रसिद्ध पत्रकारों से लेकर आम जन को भी परेशान किया जा रहा है। किस तरह राफेल की खबर को दबाया जा रहा है। किस तरह व्यापम में 150 लोगों की हत्या की गई थी वह जगजाहिर है। सुधा भारद्वाज, उमर खालिद और खबरों पर एक साथ हमला किया जा रहा है। इस तरह हम देखते है कि गौरी लंकेश, कुलबर्गी, दाभोलकर से लेकर बारबरा राव तक पर किस तरह से नियोजित हमल किया गया है। हरतोष सिंह बल कहते हैं कि झूठे व्यपारियों द्वारा मिडिया का ध्यान रखा जाता है। एनडीटीवी पर हमले से यह विदित है। साथ ही शारीरिक उत्पीडऩ का शिकार बनाया जाता है। हर तरह से मनोबल को तोडऩे का प्रयास किया जाता है। अमीत बरुआ कहते हैं कि इन लोगों के द्वारा पत्रकारों की स्वतंत्रता को सीमित किया जा रहा है। हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं।
इस सत्र के मोडरेटर संजीव माथुर ने एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि समाज में फर्क है। दलित वर्ग के नेताओं का सीधे नाम लेकर लिखा जाता है जैसे मायावती और अगर वे सवर्ण हैं तो आदर सूचक शब्द अटलजी। साथ ही वे बताते हैं कि रणनीति को बताया नहीं जा सकता। अगर बता दिया जाए तो संगठन का क्या मतलब। हां नीति बताई जा सकती है। रक्षकों के रक्षार्थ सम्मेलन के आखिरी सत्र के मोडरेटर कविता कृष्णन बताती है कि आज जिस तरह से स्थिति है वह कैसे पहले से ही बस्तर जैसी जगह में एक तरह से प्रयोग की तरह से किया जा रहा है। समाज में जुड़े हुए लोगों को देशद्रोही कहना, नक्सल कहना, माओवादी कहना और उसके नाम पर भयानक स्थिति खड़ी करना। सही बात है कि सोनी ने कहा कि बस्तर अभी भी खून से लथपथ है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित मानवाधिकार कानून के नेटवर्क पर बोलते हुए उमा चक्रवर्ती ने 43 साल पहले लगी इमरजेंसी की याद दिलाई और कहा कि उस समय कई लोगों को उठा कर ले गए थे। आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं जो हमें अलग चीज दिखती है। आज वे किसी को वैसे पकड़ कर नहीं ले जा सकते हैं। उन्होंने सूची बनाकर रखी है। चाहे माओवादी के नाम पर हो या किसी और चीज के नाम पर। छत्तीसगढ़ में मज़ाक बना हुआ है कि आज तुम्हारी बारी हैै तो कल तुम्हारी। आपातकाल के दौरान एक अच्छी बात हुई कि जनता आई और उसने उखाड़ कर फेंक दिया । जो सविधान की बहुत बड़ी जीत थी। आज भी जनता को उसी तरह का सबक सिखाने की ज़रूरत है। शिक्षा के ऊपर हो रहे हमले तथा उसके हक में खड़े नेतृत्व पर हो रहे हमलों के साथ-साथ अपने साथ हो रहे हमले का जि़क्र करते हुए नंदिता नारायण बताती हैं कि खास तौर पर शिक्षा के ऊपर हमले क्यों होते हैं? हमारे समाज में सबको स्वतंत्रता नहीं है। अमीर और गरीब के बीच में हमेशा संघर्ष रहता है। उन्होंने बताया कि जेएनयू ने इस मिथक को तोड़ा है कि अगर आप गरीब तबके से हैं तो आप ऐसा नहीं कर सकते। उन्होंने शिक्षण संस्थानों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। चाहे वह जेएनयू हो,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय हो, हैदराबाद विश्वविद्यालय हो चाहे अन्य कोई शिक्षण संस्थान सबके खिलाफ सोची समझी रणनीति के तहत हमला किया जा रहा है।
मारुति यूनियन के खुशी राम गुडगांव में चर्चित घटना के नेतृत्वकारी साथी हैं। उन्होंने बताया कि मारुति यूनियन बनाने के लिए हमने सबसे पहले तेरह दिन हड़ताल की थी। हमारे ऊपर प्रबंधकीय यूनियन को थोपा जा रहा था। उसका विरोध करते हुए हमने अपनी यूनियन बनाने के लिए संघर्ष किया। वहां किसी भी कंपनी में यूनियन नहीं थी। हर कंपनी में कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया जाता था। वहां कोई न कोई मामला लगाकर नौकरी से निकाल दिया जाता था। हमारे संघर्ष के बाद दूसरे कंपनियों में भी यूनियन बनाने के लिए संघर्ष हुआ हौर लगभग 30 कंपनियों में यूनियन बनी।
अविनाश गोयल की हत्या होने के पीछे प्रबंधकों का हाथ था क्योंकि उन्होंने कहा कि मज़दूरों का जो हक है यूनियन बनाने का उसे बनने दें। मुझे इन लोगों से कोई दिक्कत नही है। प्रबंधन ने एक तीर से दो शिकार किए कि उस अधिकारी को मरवा दिया जो मजदूर हितैषी थे साथ ही हमारे साथियों को जेल में डाल दिया। उनकी जमानत 12 दिन तक नहीं हुई।
प्रख्यात अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने मानवाधिकार कानूनी नेटवर्क पर अपना मत रखते हुए बताया कि आज मैं एक किताब में पढ़ रहा था जो हावर्ड के दो प्रोफेसर ने लिखी है उसका एक शीर्षक है लोकतंत्र की हत्या कैसे होती है। ये किताब तो वैसे अमेरिका के बारे में लिखी है। अगर उसे हम हिंदूस्तान के संदर्भ में देखें तो उसके सारे संकेत आज हिंदूस्तान में मौजूद है।। आज कल मिलिट्री फोर्स नहीं बल्कि चुनी हुई सरकार लोगों के मौलिक अधिकार खत्म कर लोकतंत्र की हत्या कर रही है। न्यायपालिका, चुनाव आयोग जैसे लोकतांत्रिक संस्थानों को कमज़ोर कर देती है। जो लोग सरकार के खिलाफ बोलते हैं उनके ऊपर हमले होते हैं। उनको गैर राष्ट्रवादी कहा जाता है । उस किताब में एक टेबल बना है जिसमें कि 12-14 संकेत दिए हैं कि फासीवाद कैसे आता है और लोकतंत्र कैसे खत्म होता है। अगर आप उसको देखें तो आपको पता लग जाएगा कि लगभग सारे संकेत भारत में मौजूद हैं। अगर सिविल सोसायटी खड़ी हो जाती है तो ड्रेकोनियन कानून अपने आप खत्म हो जाता है।
सम्मेलन के अंतिम वक्ता के तौर पर बोलते हुए कोलिन गोल्डवांडविज ने कहा कि सोनी जिस तरह वर्गीय संघर्ष के लिए जिस तरह उभरी है वह सराहनीय है। चंद्रशेखर , कन्हैया कुमार का आंदोलन ऐतिहासिक है । सेडिशन सबसे बड़े अपराध के लिए लगाया जाता। अगर हम कहते हैं कि सशस्त्र कानून होना चाहिए, एके फोर्टीसेवन का बंटवारा होना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि उसके बाद क्या हुआ। कुछ हुआ तो इसमें क्या मामला बनता है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महान नेता ईएम नमूद्रीपाद ने कहा था वी मस्ट वाइलेन्ट रिवोल्यूशन इन इंडिया देन स्टेविलिश सोशियेलिज्म। न्यायालय ने कहा क्या हुआ। भाषा बोलने के लिए संविधान अधिकार देता है। हमें बोलने का अधिकार संविधान देता है। ये हमारा मौलिक अधिकार है। हिमांशु की बेटी पूछती है कि पापा पुलिस वाले हमारे घर को क्यों तोड़ दिया। इस तरह से बहुत सारे रक्षक जेल में बंद है। इसके खिलाफ हमें उठ खड़ा होने की ज़रूरत है।