पहाड़ी सूबे हिमाचल में वन विभाग की शुरू की गयी योजनाएँ, जहाँ प्रदेश के हरित आवरण में बढ़ोतरी करने में सफल हो रही हैं, वहीं स्थानीय लोगों को आजीविका देने में भी बड़ा रोल अदा कर रही हैं।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, हिमाचल में हरित आवरण में वृद्धि के लिए विशेष पौधरोपण अभियान चलाया जा रहा है। राज्य में 2018 में 9785 हेक्टेयर भूमि में 88,53,532 पौधे इस पहाड़ी राज्य में रोपे गये थे। साल 2019 में प्रदेश में 9785 हेक्टेयर वन भूमि पर 88,53,532 पौधे रोपे गये। इस वर्ष पौधरोपण अभियान के तहत करीब 7499 हेक्टेयर वन भूमि पर 65,34,217 पौधे रोपित किये गये।
वर्तमान में राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का दो-तिहाई भाग वन के अंतर्गत है, जो लगभग 55,673 वर्ग किलोमीटर बनता है। हालाँकि, पिछले एक दशक में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि ने वन उपज बढ़ाने की ज़रूरत महसूस करायी है। इन आर्थिक गतिविधियों के चलते वन भूमि उद्योग और आवासीय ज़रूरतों के गम्भीर दबाव में आयी है। अब राज्य का लक्ष्य हरित क्षेत्र को कम-से-कम 50 प्रतिशत तक बढ़ाना है।
सूत्रों ने बताया कि प्रदेश में पहली बार वनों की आग के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में व्यापक प्रचार अभियान चलाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत विभिन्न माध्यमों से लोगों को वनों को आग से बचाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। वनों की आग की रोकथाम और प्रतिरक्षण के लिए नया मैनुअल बनाया गया है। इसके अतिरिक्त भारतीय वन सर्वेक्षण की सैटेलाइट पर आधारित फायर अलर्ट एसएमएस सेवा से प्रदेश के नागरिकों को जोडक़र एक रैपिड फोरेस्ट फायर फोर्स का गठन किया गया है, ताकि वनों में आग की सूचना का तुरन्त पता चले और उचित कार्रवाई की जा सके।
स्कूली विद्यार्थियों में वन और पर्यावरण संरक्षण की भावना जागृत करने के उद्देश्य से वन मित्र योजना शुरू की गयी हैै। इसके अंतर्गत विभिन्न जमा दो स्कूलों को एक निर्धारित वन क्षेत्र आवंटित किया जा रहा है, जिसमें विद्यार्थियों के माध्यम से पौधे लगाने व उनकी देख-रेख का कार्य किया जाएगा। साल 2018-19 में इस योजना के अंतर्गत 228 स्कूल और 164.30 हेक्टेयर भूमि का चयन किया गया और 166830 पौधे रोपित किये गये। इस वित्त वर्ष के दौरान 146 स्कूलों और 131.5 हेक्टेयर भूमि का चयन किया गया है और 130100 पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। वन विभाग इको पर्यटन को प्रोत्साहन देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इको पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मंडी ज़िले के जंजैहली क्षेत्र को 18.18 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। यह राशि ट्रेकिंग के रास्तों, वन विश्राम गृहों, जन सुविधाओं और वन चौकियों के सुधार पर खर्च की जाएगी। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने मनाली व नाचन में प्राकृतिक उद्यानों और पैदल रास्तों के विकास के लिए तीन-तीन करोड़ रुपये की धनराशि प्रदान की है। इसके अलावा प्रदेश में इको पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 25 स्थानों पर कैम्पिंग साइट्स शुरू की गयी हैं।
प्रदेश के छ: जि़लों के 18 वन मंडलों और 61 वन परिक्षेत्रों में जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जिका) की वित्तपोषित 800 करोड़ रुपये की हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थिकी प्रबन्धन एवं आजीविका सुधार परियोजना कार्यान्वित की जा रही हैं। वन क्षेत्र को बढ़ाने और स्थानीय लोगों को वनों पर आधारित आजीविका के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से चलायी जा रही इस योजना के अंतर्गत पिछले वर्ष 11.58 करोड़ रुपये खर्च किये गये। इस वर्ष इस परियोजना पर लगभग 29.71 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
वनों के प्रवंधन में स्थानीय लोगों को सक्रिय रूप से जोडऩे के लिए सामुदायिक वन संवद्र्धन योजना आरम्भ की गयी है। इसके अंतर्गत गाँवों के पास खाली वन क्षेत्र पर न केवल पौधरोपण किया जाएगा, बल्कि लोग भूमि एवं और संवद्र्धन के कार्य भी करेंगे। प्रदेश सरकार ने एक अन्य योजना वन समृद्धि-जन समृद्धि भी शुरू की है, जिसका उद्देश्य जंगली जड़ी-बूटियों को बेचने और निजी ज़मीन से इनके उत्पादन को बढ़ावा देकर रोज़गार के अवसर पैदा करना है।
इस योजना के अंतर्गत जड़ी-बूटी संग्रह करने वाले स्थानीय निवासियों का समूह बनाकर दोहन के पश्चात् उनका रख-रखाव, मूल्य संवद्र्धन और विपणन के लिए व्यवस्था की जा रही है। योजना में जड़ी-बूटी पर आधारित औषधि निर्माण के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 25 प्रतिशत तक अनुदान देने का प्रावधान किया गया है। साथ ही व्यक्तिगत निजी उद्यमी को भी जड़ी-बूटी व्यापार सम्बन्धी प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान भी किया गया है। वर्तमान में यह योजना सात जि़लों में लागू की जा रही है, जहाँ स्थानीय लोगों के समूह बनाये गये हैं और 45.825 लाख रुपये खर्च किये गये हैं। इस वर्ष इस योजना के लिए 200 लाख रुपये आवंटित किये गये हैं।
प्रदेश सरकार ने एक अन्य नयी योजना ‘एक बूटा बेटी के नाम’ की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य नवजात कन्या के नाम पर पौधे रोपित कर लोगों को वनों के महत्त्व और बालिकाओं के अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी 95वीं जयंती पर श्रद्धांजलि के रूप में हिमाचल के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने प्रीणी में ‘एक बूटा बेटी के नाम’ योजना शुरू की। इस योजना के तहत नवजात कन्याओं के जन्म के समय उनके परिवारों को बेबी किट के साथ पांच पौधे भेंट किये जाएँगे। यहाँ यह बताना दिलचस्प है कि वाजपेयी का हिमाचल से विशेष लगाव था और इसे अपना दूसरा घर कहते थे। वे अक्सर हिमाचल के प्रीणी की यात्रा करते थे। मुख्यमंत्री ने ‘एक बूटा बेटी के नाम’ का लोगो भी जारी किया।
चीड़ की पत्तियाँ आग का मुख्य कारण बनती हैं। इन पत्तियों को इकट्ठा करने और वन भूमि से हटाने के लिए एक नयी नीति तैयार की गयी है। इसके अतंर्गत चीड़ की पत्तियों पर आधारित उद्योग लगाने के लिए पूँजी निवेश पर 50 प्रतिशत अनुदान (अधिकतम 25 लाख रुपये) देने का प्रावधान किया गया है। वन भूमि से लैन्टाना (एक प्रकार का खरपतवार) को हटाने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। पिछले वर्ष 4567 हेक्टेयर क्षेत्र से लैन्टाना हटाया गया, जबकि इस वर्ष 5000 हेक्टेयर क्षेत्र से लैन्टाना हटाने का लक्ष्य रखा गया है।
हिमाचल प्रदेश ने राज्य के वन क्षेत्रों में पेड़ की कटाई सहित अवैध गतिविधियों की जाँच के लिए वन विभाग के एक विशेष पुलिस स्टेशन वन थाना की स्थापना की है। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश यह पहल करने वाला मध्य प्रदेश के बाद देश का दूसरा राज्य बन गया है। विशेष वन पुलिस थानों का उद्देश्य शिकारियों के िखलाफ निवारक और दंडात्मक उपाय करके समृद्ध वन आवरण का संरक्षण करना है। विशेष वन पुलिस थानों में विधिवत् प्रशिक्षित अधिकारी हैं, जो जाँच कार्य में पारंगत हैं।