रंगमंच सा बदला दिखा अपना बनारस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात फरवरी को लोकसभा में राष्ट्रपति के भाषण पर धन्यवाद भाषण देते हुए देश में विदेशी निवेश की कामयाबी का उल्लेख किया। वाराणसी में 21 से 23 जनवरी के दौरान ‘प्रवासी सम्मेलन’ हुआ। इस आयोजन में देश-विदेश से आमंत्रित प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इसमें मौजूद थे। इस सम्मेलन में निवेश के तमाम आश्वासनों पर आकलन का काम अब प्रशासन कर रहा है। वाराणसी में विकास की अभुगूंज इस मंच पर भी रही। तमाम धरोहरों पर विकास का खुलासा हावी रहा। व्यापक टूट-फूट पर विशाल हरे पर्दे लगे रहे।

पूरी वाराणसी रंगमंच में तब्दील रही। हर कहीं-कहीं देशी-विदेशी दर्शकों की खासी तादाद। शहर के किसी भी चौराहे, सड़क, गंगाघाट, काशी की गलियों, बनारस-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग हर कहीं सजा-संवरा रहा वाराणसी रंगमंच। शाम उठते ही बिजली के खंभों और घाट के मंदिरों से लेकर पर पाकाया (काशी की प्राचीन गलियों) से लाहौरी टोला तक अद्भुत समां दिखता रहा। यह समां था, विकास की रोशनी का। सड़क किनारे दीवारें भी चहक रही थीं। विभिन्न चित्रों और रोशनी से।

आपको बनारस की संस्कृति, मिजाज, रहन-सहन को समझने के लिए किसी पुस्तकालय या किसी से मिलने की ज़रूरत नहीं। बस भोजूबीर, कचहरी लहुराबीर, अंधरापुल, गोदोलिया, रथयात्रा, कमच्छा, भेलूपुर, रवींद्रपुरी कालोनी, लंका, गंगाघाट के किनारे कहीं भी दीवारों पर आधुनिक संस्कृति पढ़ सकते हैं। लाहौरी टोला में विकास। अब मैदानों मे दिखता है। कभी यहां संकरी ऐतिहासिक तंग गलियां थीं जिनमें छोटे-बड़े मंदिर थे। मकान थे धड़कते दिल की गुजरती बस की तरह यहां छोटी-छोटी दुकानों का व्यवसायिक शोर जिन पर तीर्थयात्रियों की भीड़ थी। वह शोर घर-घडिय़ालों की आवाज़ में डूबता-उतराता था। आज सिर्फ ‘विकास’ है।

प्रधानमंत्री अपने संसदीय क्षेत्र में ‘विकास’ की अद्भुत छटा पेश करने को हैं। प्रदेश और जिले का प्रशासन उनकी महत्वाकांशी योजना की अमल में लाने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पदभार संभालने के बाद से ही जुटा हुआ है। इस परियोजना के अमल में आने के साथ ही इस शहर की पूरी टोपोग्रैफी (प्राकृतिक बनावट) बदल जाएगी। साथ ही सदियों सेबसे एक प्राचीन शहर का सांप्रदायिक ताना-बाना भी बिखर जाएगा। यह दिखाना तब होगा जब देश विदेश में ऐसी तकनीकी सुविधाएं हैं। जिनकी मदद से पुरातन को संजोते हुए आधुनिक को बसाया जा सकता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण योजना अमल में लाने के लिए काम ज़ोर-शोर से चालू है। इस महत्वकांक्षी योजना को अमल में लाते हुए नगर की सांस्कृतिक हिंदू विरासत खत्म कर दी गई। अभी तकरीबन ढाई सौ मकान और ध्वस्त होने हैं। सरकार ने कुछ को भरपूर और कुछ को आंशिक मुआवजा बांटा है इसलिए काशी के पुराने वाशिंदों की आवाज़ में वह दम भी नहीं रहा जो आंदोलन के लिए ज़रूरी होता है।

लेकिन फिर भी काशी में कुछ लोग बेहद बेचैन हैं। वे भले उस इलाके में कभी रहते न हों पर वे मानते हैं कि काशी की पूरी दुनिया में पहचान है। गंगा नदी, किनारे के घाट और यहां की प्राचीन संकरी तंग गलियों के लिए जहां मुगलों की सेनाओं और फिरंगियों की सेनाओं का मुकाबला होता रहा। उस इतिहास को ही दुबारा लिखा जा रहा है अपनी ही लोकतांत्रिक सरकार के हाथों। पुलिस की मौजूदगी में घर, मंदिर, दूकान सब तोड़े गए। काशी विद्वत समाज मन ही मन में आंदोलित है। अब वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार के जरिए जवाब देने की बात करते हैं। वे दबे सुर में कहते हैं, यह सरकार आई थी अयोध्या में राम मंदिर बनाने लेकिन तबाह कर दिया बाबा की नगरी को। बर्बाद हो गई यहां की हिंदू आबादी। उनका काम-धंधा छिन गया। ‘का गंगा जी साफ हो गइलीं। गंगा जी उनके बुलौले रहलीं न।’ कुछ लोग बताते हैं कि कैसे अक्तूबर में एक प्राचीन धर्मस्थल के चबूतरे से जेसीबी छू गया तो किस तरह भीड़ जमा हो गई। प्रशासन ने माफी मांगी। लेकिन यहां तो क्या छोटे या क्या बड़े। सब टूटे। कोई नहीं बोला। अब खुले मैदान में कभी-कभी गाएं दिखती हैं।

दशाश्वमेघ घाट पर पंडागीरि करने वाले पंडा कन्हैया बनाते हैं कि गिने-चुने लोगों ने विरोध किया लेकिन पैसा और राजनीति के चलते वे भी चुप हो गए क्योंकि सरकार उन्हीं की थी। ‘एक वह समय था जब प्रदेश में बसपा या सपा की सरकार होती थी तो एक टूटे हुए शिवलिंग को लेकर धरना शुरू हो जाता था। आज तो ढेरों टूटे और साबुत शिवलिंग एक प्लॉट पर मिले तो कुछ भी नहीं हुआ। किसी नेता के मुंह से विरोध में कुछ एक बोल भी नहीं फूटा।’

कन्हैया कहते हैं कि प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी विकास परियोजना अगर यह रही है तो विकास आप प्राचीन काशी का ध्वंस करने की बजाए बाकी वाराणसी में कर देते। कम से कम तोड़-फोड़ करते हुए विशाल फ्लाई ओवर बनाते। आज तो दुनिया आपकी मुट्ठी में है। ग्लोबल टेंडर करते। प्राचीन काशी, गलियां भी सुरक्षित रहतीं और प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना भी तरीके से अमल में आती। आपने तो सब तबाह कर दिया।

उधर वाराणसी के डिवीजनल कमिश्नर का कहना है कि प्रशासन ने सबसे राय-बात करके दूकानें, घर खरीदें। तोड़-फोड़ के दौरान घरों में मंदिरों का पता चला कोई मंदिर नहीं टूटा। वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे कृष्ण कुमार ने कहा, ‘इस महत्वाकांक्षी योजना को अमल में लाते हुए ढेरों मंदिर तोड़े गए। धर्मसंसद में विहिप ने इस पर सवाल भी उठाए।

काशी में कभी कहा जाता था कि ‘मंदिर में घर है या घर में मंदिर।’ केदारनाथ में श्री विद्या मठ के अध्यक्ष अविमुक्तेश्वरानंद ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के लिए गलियों, घरों-मंदिरों की तोड़ फोड़ का खासा विरोध किया। कई बार आंदोलन किए। लेकिन कभी प्रशासन ने उनकी नहीं सुनी। वे सुबह से शाम तक पूरे इलाके में अपने कुछ समर्थकों के साथ घूमते। लोगों से अपील करते लेकिन उन्हें वह व्यापक जनसमर्थन नहीं मिल सका जिसके बल पर विनाश को संभाला जा सकता। उन्होंने बताया कि इस महत्वकांक्षी योजना को अमल में लाने के लिए पुरानी काशी की गलियों में बोझ से ज्य़ादा मंदिर और अनगिनत छोटे-छोटे मंदिर और मूर्तियां टूटीं।

वाराणसी विकास प्राधिकार के सचिव और काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के स्थानीय कर्ताधर्ता मिशाल सिंह है। उनकी खासी ख्याति है। लगभग 40 साल का यह अधिकारी 24 घंटे में 18 घंटे काम और दौरों में जुटा रहता है। उनका कहना है कि उनका नाम अब माताएं अपने रोते हुए बच्चों को धमकाने के लिए लेती हैं। जबकि न कभी उनकी प्रवृति न तो ऐसी है और न ही उनका वैसा व्यक्तित्व है। उनका कहना है कि किसी भी दिन देख लें काशी में एक लाख से ऊपर की संस्था में यहां श्रद्धालु और भक्त आते हैं। समय के साथ गलियां तो डेढ़ से दो फुट की चौड़ाई की हो गई थीं और तीज त्यौहार में भक्तों की कतार मुख्य सड़कों गलियों तक पहुंच जाती थी। बढ़ रहे ट्रैफिक से शहर यों ही बिहाल हो जाता था। फिर कतार में भक्त खड़े रहते दर्शन के लिए। न कहीं खाना पीना, न पानी और न शौचालय हमने सारी तोडफ़ोड़ और नवनिर्माण भक्त की श्रद्धा बनाए रखने के लिए थोड़ी सहज की है।

गलियों में जिन भी लोगों के घर-दुकानें टूटीं। उन्हें उसके लिए कानून के तहत उन्हें अच्छा खासा मुआवजा दिया गया। सर्किल टेंट का भी दुगुना जिसके चलते तो किसी ने विरोध नहीं किया। मुआवजा लिया और दूसरी ओर चलते बने। लेकिन लालच पैसा देख कर बढ़ता ही है। इसलिए अब खूब शोर है। हिंदुओं के धार्मिक इतिहास में यह पहली बार हुआ कि किसी प्राचीन धार्मिक स्थल को बेहतर बनाने की कोशिश की गई हो। अब तक कहीं किसी प्रशासन ने ऐसा नहीं किया। हम इस मिशन को रोकेंगे नहीं। पूरा करेंगे। यदि और भी मकान दूकान हमारी राह में आएंगे तो उन्हें भी ले लेंगे।

गलियों को मकानों दूकानों को ध्वंस करने का 80 फीसद काम हो गया है। बाकी तेजी से पूरा भी लेंगे। इस परियोजना को जिसमें काशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट और गंगा रीवर फं्रट व्यू के लिए जिस सलाहकार को चुना गया वह अहमदाबाद से ही एचसीपी डिजाइन, लैंडिंग और मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड है। इसकी स्थापना हसमुख पटेल ने की थी जो साबरमती रिवरफ्रंट डेपलपमेंट परियोजना पूरी की थी। पिछले साल उनकी मौत हुई। उनके मित्र विमल पटेल को यह ठेका मिला है। कोशिश यह है कि वाराणसी के सभी रास्ते काशी विश्वनाथ और गंगा की ओर हो आएं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के दो सौ मीटर के दायरे में अब न गलियां है, न मकान और न दूकान। जबकि पिछले साल अप्रैल तक मंदिर के आसपास बेहद व्यस्त बाजार हुआ करता था। अब व्यापार खत्म हो गया है। अभी काशी विश्वनाथ मंदिर के दूसरी तरफ विश्वनाथ गली भी टूटेंगी। कारिडोर की जगह और चौड़ा होगी। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री का कहना है कि यह पूरा काम महाश्विरात्रि तक पूरा कर लिया जाएगा।