यौन उत्पीडऩ के गम्भीर आरोपों से चहुँतरफ़ा घिरे हरियाणा के राज्यमंत्री को बचाने में लगे खट्टर
यौन उत्पीडऩ और गम्भीर धाराओं में नामज़द हरियाणा के राज्यमंत्री संदीप सिंह आरोपी हैं। लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर शिकायतकर्ता के आरोपों को अनर्गल मतलब बेबुनियाद, मनगढ़ंत और आधारहीन बता रहे हैं। यह बयान न केवल पूर्वाग्रस्त और बेतुका है, बल्कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ वाले राज्य के आदर्श वाक्य के विपरीत भी है।
पुलिस जाँच से पहले ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान आख़िर कोई मुख्यमंत्री भला कैसे दे सकता है? जाँच राज्य पुलिस नहीं, बल्कि केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ की पुलिस कर रही है। सरकार ने तो यह किया कि मामला प्रकाश में आते ही हरियाणा पुलिस की विशेष जाँच समिति गठित कर दी, जबकि हरियाणा में कोई प्राथमिकी ही दर्ज नहीं हुई थी।
पुलिस महानिदेशक पीके अग्रवाल के आदेश पर तुरत-फुरत एडीजीपी ममता सिंह के नेतृत्व में जाँच समिति ने मामले की छानबीन भी शुरू कर दी। ममता सिंह के अलावा समिति में पंचकूला के डीसीपी सुमेर प्रताप सिंह और एसीपी राजकुमार कौशिक को रखा गया। जिस सरकार में मंत्री गम्भीर आरोपों के बावजूद अपने पद पर बना रहे, मुख्यमंत्री आरोपों को अनर्गल बताते रहे और आरोपी झूठे आरोपों से छवि ख़राब होने के राग अलापते हों, वहाँ शिकायतकर्ता की क्या बिसात? मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक कार्यालय तक पीडि़ता पहुँची; लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई। मामला लगभग छ: माह पुराना है और यह सब किसी एक दिन में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में कई बार हुआ। सवाल यह कि आख़िर छ: माह पुराने इस मामले में शिकायतकर्ता अब क्यों जागी। अगर उसके आरोपों में दम और उसके पास कोई सुबूत थे, तो वह इतन समय तक चुप क्यों रही? यह देरी उसे भी संदेह के घेरे में खड़ा करती है; लेकिन उसके पास देरी के कुछ तर्क है। वह कितने सही हैं यह दो जाँच से स्पष्ट होगा; लेकिन राज्य सरकार का इस मामले में रुख़ बेहद नकारात्मक ही रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के अब तक के कार्यकाल में यह पहला ऐसा मामला है, जिसमें उनके किसी मंत्री पर यौन उत्पीडऩ के आरोप लगे हैं। विडंबना देखिए कि चंडीगढ़ के सेक्टर-26 थाने में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी खेल विभाग में तैनात लोगों ने मंत्री की छवि ख़राब करने का इसे एक ज़रिया बताया।
तीन माह पहले नियुक्त हुई जूनियर कोच को क्या यह पता नहीं कि जिस विभाग में वह है उसके ही मंत्री के ख़िलाफ़ ऐसी शिकायत करने का क्या हश्र होगा? उसकी न केवल नौकरी, बल्कि उसके खेल करियर ख़राब होने का ख़तरा है। अभी वह हरियाणा और देश के लिए खेल में बहुत कुछ करना चाहती है। उसके साथ कुछ तो अप्रिय हुआ ही है, जिसके चलते उसने इतना बड़ा क़दम उठाने का साहस किया।
अब वह अकेली नहीं है, हरियाणा की कुछ खाप पंचायतें उसके समर्थन में आ गयी हैं। जूनियर महिला कोच के पक्ष में न केवल खाप पंचायतें, बल्कि भारतीय किसान यूनियन की इकाई भी इंसाफ़ की इस लड़ाई में आगे आयी है। हरियाणा में खाप पंचायतों का अपना महत्त्व है और इस मामले में वो लामबंद होने लगी हैं। सर्वखाप पंचायत की बैठक में आरोपी संदीप सिंह को तुरन्त प्रभाव से मंत्री पद से हटाने और उसकी गिरफ़्तारी की माँग की है। पंचायत ने इस मामले की जाँच सेवानिवृत्त किसी जज से कराने की माँग है।
हर आरोपी आरोपों को झूठा और शिकायतकर्ता आरोपों को सच्चा कहता है; लेकिन सच पहले पुलिस जाँच और फिर अदालत के फ़ैसले से उजागर होता है। चौतरफ़ा दबाव के चलते आरोपी संदीप सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की बजाय खेल विभाग मुख्यमंत्री को सौंप दिया। आलोचना के बावजूद सरकार ने इस बाबत सर्कुलर भी जारी कर दिया। उनका मंत्री पद तो अब भी क़ायम है, वह जाँच को प्रभावित कर सकते हैं; वह सरकार का हिस्सा है।
राज्य में यह पहला मामला है, जब किसी मंत्री ने नैतिकता के आधार पर कोई एक विभाग छोड़ा हो और मंत्री बना रहा हो। नैतिकता के आधार पर कोई इस्तीफ़ा क्यों देता है, इसलिए कि जाँच निष्पक्ष हो सके। लेकिन इस मामले में ऐसा बिलकुल नहीं हुआ। खिलाड़ी से राजनीति में आये और मंत्री बने संदीप सिंह जैसा ऊपर से आदेश हो रहा है, वही कर रहे हैं।
संदीप सिंह इतनी आलोचनाओं के बावजूद नैतिकता की दुहाई देते रहे कि मामला खेल विभाग से जुड़ा है, इसलिए वह इस विभाग से जाँच पूरी होने तक दूरी बनाये रखेंगे। इसके बाद जैसा फ़ैसला होगा यह मुख्यमंत्री पर निर्भर करेगा। उन्हें पता होना चाहिए कि आरोप साबित नहीं हुए, तभी मुख्यमंत्री करेगे वरना अदालत करेगी। क्या संदीप सिंह सरकार के मुताबिक ही सब कर रहे हैं या फिर उन्हें किसी बात का डर है?
भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे ओलंपियन संदीप सिंह ने देश और हरियाणा का नाम रोशन किया है। ड्रेग फ्लिकर के तौर पर उसने कई बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को जीत भी दिलायी है; लेकिन इस मामले में वह फ़िलहाल ऑफ साइड ही नज़र आते हैं।
वह हरियाणा पुलिस में खेल कोटे से डीएसपी नियुक्त हुए थे; लेकिन बाद में राजनीति में आये। भाजपा की टिकट पर वह पेहोवा से विधायक बने और पहली बार मंत्री भी बन गये। उन्हें खेल, युवा, प्रिटिंग और स्टेशनरी विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। वह अच्छा काम कर रह थे और कभी विवाद में नहीं फँसे; लेकिन इस मामले में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। शिकायतकर्ता जूनियर महिला कोच के मोबाइल में ऐसा बहुत कुछ है। यही वजह है कि उसने चंडीगढ़ पुलिस के बुलाने पर अपना वह मोबाइल फोन सौंप दिया था, जबकि आरोपी ने एक सप्ताह बाद ऐसा किया। इस दौरान मोबाइल से बहुत कुछ उड़ाया जा सकता है; लेकिन साइबर विशेषज्ञ इसे फिर से बहाल कर सकते हैं। यौन उत्पीडऩ की घटना चंडीगढ़ के सेक्टर-7 में मंत्री संदीप सिंह के सरकारी आवास की है, लिहाज़ा मामला वहीं का बनता था।
शिकायतकर्ता खेल विभाग में तीन माह पहले नियुक्त हुई जूनियर एथलेटिक्स कोच को पुलिस ने चार बार बुला लिया, जबकि आरोपी मंत्री संदीप सिंह को प्राथमिकी दर्ज होने के एक सप्ताह बाद बुलाया; जबकि विषय की गम्भीरता को देखते हुए मामला दर्ज होते ही आरोपी को पूछताछ के लिए पहले बुलाया जाना चाहिए था। शिकायतकर्ता ने दबाव डालने और अपरोक्ष तौर पर धमकी जैसे आरोप लगाये हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हरियाणा पुलिस ने सुरक्षा मुहैया करायी है। राज्य पुलिस की जाँच का तो कोई मतलब ही नहीं है।
यह मामला न केवल यौन उत्पीडऩ का है, बल्कि प्रशासकीय गोपनीयता का भी है। हालाँकि पुलिस जाँच में दूसरे पक्ष को नहीं रखा गया है। अगर इसकी विस्तृत और निष्पक्ष जाँच हो जाए, तो कई बड़े अधिकारी भी लपेट में आएँगे। शिकायतकर्ता महिला कोच का आरोप है कि संदीप सिंह ने शॉर्टलिस्टिंग ऑफ आउट स्टैंडिंग स्पोट्र्स पर्सन की वह सूची भी शेयर की, जिसके आधार पर खेल विभाग में सरकारी नियुक्तियाँ की जानी थीं।
सोशल मीडिया पर शिकायतकर्ता के चरित्र पर तरह रह के आक्षेप लग रह हैं; लेकिन उसका मानना है कि इसी चरित्र के बूते उसने इतना बड़ा क़दम उठाने का साहस किया है। जब पानी सिर से गुज़रने लगा, तो उसने मंत्री के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की सोची। यह जानते-बूझते कि यह काम इतना आसान तो नहीं। यह सोचकर कि हरियाणा सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के तहत उसे इंसाफ़ दिलाएगी। यह उसका भ्रम ही रहा, अब तक की जाँच में आरोपी की वही रुतबा दिख रहा है; जो घटना से पहले था। देखते हैं कि इंसाफ़ की लड़ाई का क्या हश्र होगा।
महिला आयोग चुप क्यों?
हरियाणा महिला आयोग की रहसमयमयी चुप्पी बहुत कुछ संकेत करती है। महिला कोच ने आयोग को मेल के माध्यम से शिकायत करने की बात कही है; लेकिन आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया इससे इनकार करती हैं। उनका कहना है कि न तो ऐसा कोई मेल मिला और न कोई शिकायत किसी अन्य माध्यम से आयी। आयोग बिना शिकायत भी मामले की पड़ताल कर सकती है। राज्य के कई मामलो में ऐसा हुआ; लेकिन मंत्री से जुड़े इस प्रकरण में आयोग मूक ही रहा। ऐसे कई उदाहरण मिल जाएँगे कि जिनमें आयोग ने स्वत: संज्ञान के आधार पर कार्रवाई को अंजाम दिया।
“बेटी को इंसाफ़ दिलाने के लिए कई खापें तैयार हैं। इस मामले में आरोपी को वीआईपी की तरह लिया जा रहा है, जबकि शिकायतकर्ता मारी-मारी फिर रही है। संदीप सिंह खिलाड़ी है, जिसने राज्य और देश का नाम रोशन किया; लेकिन वह बेटी भी तो पदक जीत रही है। उसे न्याय दिलाने से पीछे नहीं हटेंगे।’’
– धनखड़ खाप पंचायत
“एक युवा खिलाड़ी ने अनर्गल आरोप लगाये हैं। आरोप लगाने से कोई व्यक्ति दोषी नहीं हो जाता। चंडीगढ़ पुलिस जाँच कर रही है। जाँच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई होगी। खेल विभाग से उन्होंने (संदीप सिंह ने) खुद को दूर कर लिया है।’’
मनोहर लाल खट्टर
मुख्यमंत्री, हरियाणा