विपक्ष जब मज़बूत हो, तो वह सरकार से सीधे सवाल कर सकता है, उसे किसी मुद्दे पर घेर भी सकता है। मगर योगी पर हमलावर होने वालों को यह छूट नहीं है। इसे तानाशाही कहें या कुछ और, मगर योगी आदित्यनाथ को अपने विरोध में कुछ भी सुनना उसी तरह नागवार गुज़रता है, जिस तरह एक तानाशाह को अपने विरोध में कुछ भी सुनना पसन्द नहीं होता। देश के एक बड़े राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने विरोधी सुरों को बुलडोज़र से दबाने में अपनी शान समझते हैं। इसके उपरांत भी योगी आदित्यनाथ के विरोध में उठने वाले सुर दिनोंदिन बुलंद होते जा रहे हैं। योगी बुलडोज़र का जितना अधिक प्रयोग कर रहे हैं, उनके विरोध में लोगों के सुर भी उतने ही बुलंद होते जा रहे हैं, जिसे लेकर उनका पूरा अमला इम विरोधी सुरों को दबाने में लगा हुआ है। इन विरोधी सुरों में सबसे अधिक विरोध समाजवादी पार्टी अध्यक्ष तथा नेता विपक्ष अखिलेश यादव दर्ज करा करे हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लाल टोपी वाले अखिलेश के विरुद्ध भी बुलडोज़र का प्रयोग कर पाएँगे?
विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही अखिलेश यादव नाराज़ हैं। कुछ समय पहले ही विधानसभा के बजट सत्र में अखिलेश यादव ने प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से अभद्रता की थी। हालाँकि बात एक ओर से नहीं बढ़ी, बल्कि दोनों ही ओर से बढ़ी थी। अखिलेश यादव के यह कहने पर कि उनकी सरकार में प्रदेश की सड़क परिवहन व्यवस्था बेहतर हुई थी, क्योंकि उन्होंने कई सड़कें बनवायीं केशव प्रसाद मौर्य ने उन पर तंज़ कसा कि सड़कें बनवाने का पैसा क्या आप अपने गाँव से लाये थे। इतना कहना था कि अखिलेश यादव का पारा चढ़ गया और उन्होंने कहा कि आप अपने पिताजी से पैसा लाते हैं, बनाने के लिए? बात इतनी बढ़ी कि योगी आदित्यनाथ को हस्तक्षेप करना पड़ा। हालाँकि अखिलेश पर योगी को क्रोध तो बहुत आया, परन्तु वह उसे स्पष्ट रूप से उजागर नहीं कर सके और अपने भाषण में मर्यादा में रहने की दुहाई देते दिखायी दिये। अब जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के कामकाज में कई कमियाँ दिखायी दे रही हैं, ऊपर से बुलडोज़र, दंगा जैसी स्थितियाँ चरम पर हैं, तब अखिलेश यादव लगातार योगी आदित्यनाथ पर हमलावर दिख रहे हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर तंज़
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर तंज़ कसा है। उन्होंने कहा है कि पिछले पाँच साल के भाजपा राज में स्वास्थ्य सेवाएँ निम्नतर स्तर पर पहुँच चुकी है, जिसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ही पूरी तरह दोषी है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भाजपा राज में $खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते उत्तर प्रदेश बदनुमा मॉडल बन गया है, क्योंकि भाजपा सरकार में न तो एम्बुलेंस हैं, न दवा है, न उपचार मिलता है, मिलता है तो केवल इंतज़ार मिलता है। नये स्वास्थ्य मंत्री इस सच्चाई से अवगत भी हैं, पर नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है।
अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने कार्यकाल में नये मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के साथ-साथ एमबीबीएस की सीटें भी बढ़ाई थीं। गम्भीर बीमारियों के उपचार की पूर्ण व्यवस्था की थी। कैंसर, किडनी, हृदय और लीवर के इलाज की मु$फ्त व्यवस्था की थी। परन्तु भाजपा सरकार ने ग़रीबों के इलाज में कोई रुचि नहीं दिखायी।
अखिलेश सच बोले या झूठ?
राजनीति में ऐसे नेताओं की कमी तो है, जो पूरी तरह से जनता के प्रति ईमानदार हों। ऐसा भी नहीं है कि नेता झूठ नहीं बोलते, चाहे वो सत्ता पक्ष के हों और चाहे विपक्ष के नेता हों। अखिलेश यादव की बात की बात करें, तो सरकारी अस्पतालों की दशा वास्तव में ठीक नहीं है। इन दिनों की अगर बात करें, तो ज़िला अस्पतालों में क्षमता से कई कई गुना अधिक रोगी वहाँ हैं और बेड, दवाओं व अन्य सुविधाओं की कमी से धक्के खा रहे हैं। भीषण गर्मी में जिन रोगियों को समय पर उपचार नहीं मिल पा रहा है, उनकी दशा और भी बिगड़ती जा रही है। लोगों के पास इतने पैसे नहीं कि वो निजी अस्पतालों में उपचार करा सकें। ग्रामीण रोगियों की अगर बात करें, तो वो ब्लॉक में बने चिकित्सा केंद्रों पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त गाँवों में ही निजी चिकित्सकों से सैकड़े वाली गोलियाँ लेकर स्वस्थ होने की इच्छा रखते हैं। ग्रामीण चिकित्सक, जिनमें अधिकतर बिना डिग्री वाले हैं, किसी रोगी को थोड़ी सी भी कमज़ोरी होने पर सीधे ग्लूकोज की बोतल चढ़ा देते हैं। इससे उन्हें रोगी से अच्छी कमायी हो जाती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि सरकारी अस्पतालों की दशा अभी ऐसी हुई है, पहले भी कभी इनकी दशा बहुत अच्छी नहीं रही। परन्तु यह भी सच है कि अब सरकारी अस्पतालों की दशा पहले से भी बदहाल हुई है, जिसे योगी आदित्यनाथ क वर्तमान सरकार को स्वीकार भी करना चाहिए और इस ओर ध्यान भी देना चाहिए। कहा जा सकता है कि अखिलेश ने प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था का जो मुद्दा उठाया है, वो अति आवश्यक मुद्दा है, जिस पर सरकार का ध्यान जाना चाहिए।
बुलडोज़र नीति
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल में बुलडोज़र नीति का प्रकोप जनता में लगातार भय पैदा कर रहा है। योगी आदित्यनाथ का यह बुलडोज़र विरोध करने वालों पर चल रहा है। इनमें मुस्लिम समाज के विरोधी तत्काल निशाने पर आ जाते हैं। इसे लेकर भी अखिलेश यादव ने योगी सरकार को घेरा है। पीडि़तों का कहना है कि गुंडों पर बुलडोज़र चलाने की बात कहने वाले योगी आदित्यनाथ अब स्वयं ही न्यायाधीश बन बैठे हैं और जो भी उनका विरोध करता है, उसे बिना सुनवाई के बुलडोज़र का डर दिखाते हैं। हाल ही में कानपुर से लेकर प्रयागराज तक प्रदर्शन और हिंसा के बाद बुलडोज़र चला। सरकार की इस कार्रवाई से प्रदेश में राजनीति गरमा गयी है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस बुलडोज़र नीति पर राज्य सरकार को घेरा है। उन्होंने एक ट्वीट लिखा कि ये कहाँ का इंसा$फ है कि जिसकी वजह से देश में हालात बिगड़े और दुनिया भर में स$ख्त प्रतिक्रिया हुई, वो सुरक्षा के घेरे में हैं और शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को बिना वैधानिक जाँच पड़ताल बुलडोज़र से सदा दी जा रही है। उसकी अनुमति न हमारी संस्कृति देती है, न धर्म, न विधान, न संविधान। अखिलेश के इस ट्वीट के बाद प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने उन पर निशाना साधा। इसके बाद लोगों ने केशव प्रसाद मौर्य को आड़े हाथों ले लिया।
बुलडोज़र चलना सही या ग़लत?
जैसा कि सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोगों से राम राज्य का वादा करके सत्ता में आये हैं। इसके बाद उनका हर कहीं बिना न्यायालय में अपराधियों या आरोपियों पर मुक़दमा चलाये, बिना किसी न्यायाधीश के फ़ैसला सुनाये सीधे लोगों के घर पर, व्यावसायिक स्थल पर बुलडोज़र चलवा देना भी न्यायोचित तो नहीं है। किसी भी नेता को फ़ैसला करने का अधिकार न हमारा संविधान देता है और न मानवता इसकी अनुमति प्रदान करती है। राम प्रसाद कहते हैं कि इस तरह तो राजतंत्र में होता था कि जो भी राजा के मन में आता था, वही किया जाता था। परन्तु अब तो लोकतंत्र है। लोकतंत्र में सरकार को लोगों के द्वारा ही चुना जाता है। अगर वह लोगों पर ही इस तरह का दबाव बनाएगी, तो लोगों में भय भी पैदा होगा और सरकार, विशेषतौर पर मुख्यमंत्री व उनके अन्य नेताओं के प्रति घृणा का भाव पैदा होगा। जब लोकतंत्र में न्यायालय हैं, पुलिस है, प्रशासन है, तो फिर सीधे बुलडोज़र चलवाना कैसे सही हो सकता है? यह तो उचित नहीं है। दोषियों पर पुलिस कार्रवाई करे, न्यायालय उन्हें दण्ड दे, सरकार का काम है प्रदेश में विकास कार्यों पर ध्यान देना। कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ की बुलडोज़र नीति से अधिकतर लोग $खुश नहीं हैं। वहीं कुछ लोग ख़ुश भी हैं। उनका कहना है कि मुसलमानों को तो इस देश में रहने का अधिकार ही नहीं है, यह देश उनका है ही नहीं, वे तो बाहरी लोग हैं। परन्तु यह राय उचित नहीं है। क्योंकि जो भी यहाँ कई पीढिय़ों से रह रहा है, वह देश का नागरिक है। संविधान ने उसके लिए भी समान अधिकार व कर्तव्य निहित किये हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।