लगभग साल ही पहले भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के तेज तर्रार नेता योगी आदित्यनाथ ने देश की सबसे अधिक आबादी वाले और राजनीतिक रुप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया था। तब वे संघ परिवार के सबसे पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरे थे।
आरएसएस ने योगी को विभिन्न राज्यों में हिंदुत्व के ब्रांड एंबेसडर के रूप में पेश किया और बड़े पैमाने पर योगी की संगाठनिक क्षमता का विस्तृत प्रयोग गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना व त्रिपुरा में किया गया। अब इसका कर्नाटक के होने वाले चुनावों में भी उपयोग कर रहे हैं। भाजपा के हलकों ने यह दृढ़ता से महसूस किया गया कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान हुई बड़ी रैलियों ने 2019 के विधानसभा और संसदीय चुनावों के लिए योगी का मार्ग प्रशस्त किया है।
ध्रुवीकरण की आलोचना और हिंदू धर्म के प्रति कट्टरता ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को बदलने की महत्वपूर्ण चुनौती दी। मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर में अपनी पहली रैली में उन्होंने कहा,’मैं मुस्लिम विरोधी नहीं हूं। लेकिन पिछली सरकार की नीतियों के खिलाफ हूं जो उनको खुश करने के लिए थी।Ó मेरी सरकार सबका विकास एक समान करेगी परन्तु कोई भी तुच्छ नहीं। हालांकि कुछ समय बाद इस तरह की नरमी गायब हो गई और वे पिछली बयानबाजी में वापिस चले गए।
आदित्यनाथ जो अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर बनाने के मज़बूत समर्थक हैं, उन्होंने उत्तरप्रदेश में भाजपा के हिंदुत्व अभियान का नेतृत्व किया और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उसे जारी रखा। उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी के किनारे 1.70 लाख दीपक जलाकर दिवाली मनाई। बाद में होली और देव दीपावली मनाने के लिए बरसाना और वाराणसी गए। जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि दिवाली और होली मनाने के बाद क्या वह ईद भी मनाएंगे। तब उनकी प्रतिक्रिया काफी उग्र थी। ‘मैं ईद क्यों मनाऊंगा मैं एक हिंदु हूंÓ उन्होंने कहा। उनकी इस प्रतिक्रिया की भारी आलोचना हुई। क्योंकि यह बयान एक मुख्यमंत्री का था जिन्होंने सविधान को बनाए रखने की शपथ ली थी। जिनसे धर्म निरपेक्ष रहने की अपेक्षा थी। बाद में उन्होंने अपने बयान में सुधार करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म, रीति-रिवाज को मानने के लिए स्वतंत्र है।
उत्तरप्रदेश चुनावों में प्रचार के दौरान योगी ने दावा किया कि भगवा पार्टी राज्य में राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। वह पार्टी के हिंदूत्व में लिपटे विकास के एजेंडे का तावीज है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे गोरखपुर के प्रसिद्ध मठ मंदिर के महंत (मुख्य पुजारी) बने रहे। वह बहुत महत्वपूर्ण समारोह के दौरान मठ में उपस्थित रहे। यह मठ संतों के ‘नाथÓ संप्रदाय से जुड़ा है जिसकी दूसरे राज्यों में भी मज़बूत उपस्थिति है।
योगी निजी सेना ‘हिंदू युवा वाहिनीÓ (एचवाईवी) के अध्यक्ष भी हैं जो ‘वेलेंटाइन डेÓ और ‘पश्चिमी कपड़ोंÓं का विरोध करने के लिए मशहूर है। यह हिंदू संगठन विशेष रूप से राज्य के पश्चिम में महराजागंज, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, संत कबीर नगर और सिद्धार्थ नगर में सक्रिय है।
भाजपा ने 2017 में लोगों के कल्याण की श्रृंखला और विशेषकर किसानों और युवाओं को लक्ष्य बना कर सत्ता हासिल कर ली थी। सरकार ने अपने शासनकाल का एक साल पूरा कर लिया है और पांच साल के कार्यकाल का दूसरा बजट भी पेश किया है। पिछले बजट में कृषि कजऱ् के 36,000 करोड़ रुपए और सांतवें वेतन आयोग को लागू करने के बोझ ने अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं को वास्तव में कम कर दिया। मौजूदा बजट में भी उनके चुनावी वादों और कल्याण योजनाओं को पर्याप्त वित्तीय सहायता नही दी गई है।
चुनावों के दौरान सबसे प्रचारित योजना थी छात्रों को कंप्यूटर देने की थी। इसे अभी तक वित्तीय (मौद्रिक) समर्थन नहीं मिला। इसी तरह सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को मुफ्त वाई-फाई और बिना पक्षपात के सभी छात्रों को लैपटाप और एक जीबी डाटा देने का भी वादा था। 50 फीसद अंक पाने वाले छात्रों को स्नातक तक मुफ्त शिक्षा देने का वादा भी संसाधनों की कमी के कारण लागू नहीं हो पाया है। इसके साथ ही घरों में 24 घंटे बिजली, गांवों को मिनी बस सेवा से जोडऩे जैसे कई वादे और योजनाएं सत्ता के गलियारों में धूल ही चाट रहे हैं।
किसान अब सरकार की नीतियों से निराश हैं क्योंकि उनकी आय नहीं बढ़ी और अब गन्ना, आलू, गेंहू, चावल, दालों की फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाकर निर्धारित नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय दुगुना करने का वादा किया था। परन्तु कजऱ् के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं। राज्य में योगी सरकार बनने के बाद भी लगभग 100 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। बुंदेलखंड सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र है जहां आंधी तूफान के कारण फसलें बर्बाद हो गई थी। इस कारण कजऱ् के बोझ से दबे दर्जन से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। बुंदेलखंड क्षेत्र के भारतीय किसान यूनियन के प्रधान एसएनएस परिहार ने यह जानकारी दी।
भाजपा ने अपने चुनावी अभियान के दौरान बेहतर कानून व्यवस्था का वादा अपने नारे ‘न गुंडाराज, न भ्रष्टाचारÓ के साथ किया था। लेकिन राज्य में कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार की स्थिति अच्छी नहीं है। अपराध के बढ़ते ग्राफ के साथ मुख्यमंत्री ने अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस को अधिक शक्ति दी। इस शक्ति के दुरूपयोग के कारण मानव अधिकार कमीशन आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव राजीव कुमार को नोटिस जारी किया कि क्या कथित मुठभेड़ें अपराध को खत्म कर देंगी।
भाजपा के शासन काल में उत्तरप्रदेश पुलिस ने अपराध को रोकने के लिए 1309 ऑपरेशन किए जिनमें 42 अपराधी मारे गए और 3068 को पकड़ लिया गया। पुलिस के डीजी (डिप्टी जनरल) ने बताया कि अच्छे कार्य के लिए हमने 1574 पुलिस कर्मचारियों को पुरस्कृत किया। पुलिस में सुधार के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को लागू करने के बारे में डीजी ने कहा कि पहले मैं इनका अध्ययन करूंगा फिर जवाब दूंगा।
कानून व्यवस्था में सुधार का दावा करने के बाद भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदयिक हिंसा की घटनाएं सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के उकसाने और सरकारी मशीनरी की हिंसा को रोकने में हुई लापरवाही के कारण हुई।
लगभग 45 वर्षीय आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद बने। उनकी प्रतिष्ठा उनके द्वारा खाली की गई संसदीय सीट के लिए हुए उप-चुनाव में दांव पर थी। 1998 से वे इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जब वे सिर्फ 26 वर्ष के थे। अपनी विशेष राजनीतिक शैली के लिए वे उत्तरप्रदेश के पूर्वी इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं। जहां उन्होंने हिंदू भावनाओं को उकसाने और मज़बूत करने के लिए अपने अभियानों ‘घर वापसीÓ और ‘लव जिहादÓ को राष्ट्रव्यापी बनाया।
योगी ने गायों के वध का विरोध किया और इसे उत्तरप्रदेश में प्रतिबंधित भी किया। लेकिन पूर्वी उत्तरप्रदेश में यह अवैध रूप से चलता रहा। इसने उन्हें गाय सतर्कता आंदोलन का नेता बना दिया उन्होंने गाय वध और अवैध कसाई घर बंद करवा दिए। इस सांप्रदायिक उन्माद ने दादरी मामला और गाय जागरूकता के नाम पर सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया। यह सही है कि गाएं फसलों के लिए बहुत खतरा हो गई क्योंकि वे फसलों को नष्ट कर देती थीं जिससे किसानों को भारी वित्तीय नुकसान होने लगा।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार उत्तरप्रदेश में 2017 में बनी लेकिन उनकी सरकार किसानों, शिक्षा स्वास्थ्य देखभाल, भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था के प्रति किए गए अपने वादे पूरे नहीं कर पाई। उनका प्रदर्शन पूरी तरह से हिंदुत्व के एजेंडे के लिए प्रतिबद्ध था। बेरोज़गारी और आजीविका जैसे वास्तविक मुद्दे पीछे रह गए। अधिकांश समय नेता हिंदू-मुस्लिम विवादों में ही उलझे रहे। हालांकि सरकार ने नौकरी सृजन को बढ़ावा देने के लिए निवेशकों का एक सम्मेलन आयोजित किया और उत्तरप्रदेश में औद्योगिकरण को तेज करने के लिए 4.23 लाख करोड़ के समझौते वास्तव में एक बड़ा लक्ष्य और अत्यंत कठिन कार्य है।